जब छेड़खानी ने कमरे की ज़िंदगी दी।

( उधार )




आज पूरे भारत में स्वछता  अभियान   की धूम  मची  है।   क्या  सही  मायने में हम इस स्वछता अभियान का मतलब  भी समझ पाए है कि आखिर  ये  अभियान है क्या?या फिर यू हीं इस अभियान में ख़ुद को जोड़कर बेवजह ही भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी ने जो इस अभियान का आगाज हमारे राष्ट्र में किया तो उसका  अर्थ सिर्फ ये नहीं कि हम एक झाड़ू लेकर  सड़को की गन्दगी को साफ करने निकल पड़े बल्कि आज हमारे देश को तो ऐसी  स्वछता की जरुरत है जिसमें कि एक भी भ्रष्ट और बेईमान अफसर न हो।हमे ख़त्म  करना होगा अपने देश से ये भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को ताकि हमारी भारत माँ चैन  और सुकून की सांस लें सके। हमारे देश से गुंडे  मवालियो को चुन चुन कर निकलना  होगा जिससे कि फिर कोई  निर्भया कांड जैसी घटना न हो।
हमें स्वछता लानी  होगी  अपने अंदर  के रावण को ख़त्म कर के जिस से की हमारे समाज  में महिलाएं और लडकियां  खुद को सुरक्षित महसूस करा सकें। वे बेझिझक  घरों से बहार निकल देश के विकास  में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
मैं यहाँ एक घटना का जिक्र  करना चाहूंगी कि कैसे मैं ख़ुद ही छेड़खानी की त्रासदी से तंग आगई थी और अपनी पढाई बंद कर घर में ही रहने का फैसला ले लिया था।

पर उस समय मेरे पापा ने मेरी हिम्मत बढ़ाया और उन्होंने उस गुंडे को फोन  कर ऐसी ऐसी बातें कही जो किसी के अन्तर्मन को झकझोर के रख देती है। उन्होंने उस असभ्य लड़के को फोन कर के बस इतना ही कि "बेटा कल को जब तुम्हारी शादी होगी और तुम्हारी भी बेटी जब बड़ी होकर पढ़ने  जाया करेगी तो उसे भी लोग जब छेड़ेंगे तो तुम इसका विरोध कभी मत करना। उसे अपनी बेटी को कहना बेटी जा के इन गुंडों से  छिड़ क्योंकि तू तो एक लड़की है और लड़कियों की छिड़ना तो बनता है।इसमें कोई बुरी बात नहीं है।"

: इतना सुन  उस गुंडे की मनः  स्थिति बदल  गयी और वो लड़का फुट कर रोने लगा । फिर उसने मुझे कभी नहीं छेड़ा। इस तरह  मैंने अपनी बोर्ड की परीक्षा की तैयारी की और परीक्षा में बैठी ।
तो ये तो थी मेरी कहानी थी

तो क्या हम आज इतने कमजोर पढ़ गए  है कि इन गुंडे मवालियों के आगे अपने घुटने   दे। वो बस यू हीं बदस्तूर हमारे घर की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते रहे और महिलाओं की इज्जत को तार तार करते  रहें।
ये हक़ उन्हें  दिया किसने ? शायद हम ने ही तभी तो हम ऐसे जनप्रतिनिधियों  को चुनकर संसद और विधानसभा में भेजते हैं तो अंत में मैंबस इतना ही कहना चाहूंगी कि जिस तरह हम अपने पर्यावरण की साफ सफाई में लगे हैं। गंगा माँ को स्वच्छ और निर्मल बनाने में लगे है तो क्या कुछ समय हम अपने समाज और देश में फैले  कचरे  को साफ़  करने के लिए नहीं लगा सकते।
हम जरूर कर सकते है।ऐसा बस जरुरत है तो एक मशाल उठाने की। जिसकी लौ तब  तक रहे जब तक कि हम अपने समाज और देश में फैले असमाजिक कूड़े को साफ न कर दे। हमेसा के लिए उसका विसर्जन  न कर दें।

- श्वेता पाण्डेय

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