पीरियड्स हो या सेक्स हो !चर्चा जरूरी !!

(फिल्मची )
पर्दे में रहने दो ...पर्दा ना हटाओ .. पर्दा जो उठ गया तो ... उठ गया तो क्या ??? अजी, इतना भी नहीं समझते की पर्दा उठ गया तो ....हर बात बेपर्दा हो जाएगी !!!
अब वो जमाना नहीं रहा, जहां समाज की तमाम चीजों का बसेरा पर्दे के अंदर हुआ करता था।अब जमाना बेपर्दा हो चुका है। हर मुद्दे पर बेबाक टिप्पणी की जाती है ,पर्दे के अंदर से मुद्दों को बाहर खींचकर उसपर चर्चा होती है।सही गलत का फैसला होता है।तमाम बातों पर आज फिल्में बन रहीं हैं।अब चाहे वो टॉयलेट हो,रेप केस हो ,पीरियड्स हो या सेक्स हो !!

कुछ ऐसी ही बेबाक टिप्पणिबाज़ी अभी "मेंस्ट्रुल साइकिल" यानी कि "पीरियड्स" पर की है,राधिका आप्टे ने।ऐसे भी, राधिका आप्टे की यह कोई पहली बोल्ड बयानबाज़ी नहीं है।इससे पहले भी वो महिलाओं के सन्दर्भ में कई बार अपनी बोल्ड बयानबाज़ी के लिए सुर्खियों में रह चुकी हैं।

राधिका का कहना है कि "पीरियड्स पर बात करने या उस छिपाने की कोई जरूरत नहीं।किसी भी महिला को इसे अपनी कमजोरी नहीं समझना चाहिए।इसको लेकर सहज होने की खासी जरुरत है।उन्होंने ने यह भी कहा कि किसी भी महिला को कोई भी कैरियर चुनते समय पीरियड्स जैसी चीजों को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए।यह  समान्य चीज है। अगर हम इसी बारे सोचते रहेंगे तो हम जिंदगी कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे।"

हालांकि,राधिका अक्षय कुमार के साथ, पीरियड्स पर बन रही फिल्म "पैडमैन"में  नजर आने वाली है।इससे पहले भी राधिका कई गंभीर मुद्दों पर फिल्में कर चुकी हैं।और उन मुद्दों को सामाजिक करने में सफल भी रहीं हैं।

सही भी तो है,ऐसे मुद्दों पर फिल्म बनने से लोगों के कई भ्रम टूटते हैं,और उनकी समझ थोड़ी बड़ी होती है। "वल्गैरिटी" को पीछे छोड़कर अगर ऐसे मुद्दों पर बेबाकी से अच्छी फिल्में बन रही हैं,तो इसमें कुछ बुरा नहीं।ऐसे फिल्में समाज को एक नया रास्ता ही दिखाती हैं।  


पायल

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