इंग्लैंड का मौसम , बीबी का मूड और गाय की राजनीति कभी भी धोखा दे सकती है।

(हस्तिनापुर के बोल ) 



इस समय भारत की राजनीति 'पत्नी की मूड' की तरह हो गयी है। कब किस फालतू बात को लेकर गरमा जाय कह पाना बड़ा मुश्किल है। पिछले दो तीन साल में झांककर देखें तो देशहित या अन्य मुद्दों पर बात काम हो रही है और भावनात्मक विषय पर विशेष। आज अगर किसी यूनिवर्सिटी में कोई छात्र आत्महत्या करता है तो उस आत्महत्या के वजह और निवारण में कम बल्कि छात्र किस जाति का था, इसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। अगर छात्र दलित निकला तो फिर इस नाम पर दलितों की राजनीति शुरू हो जाती है। कहने को तो हम विकासशील देश में रहते हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसे कई मुद्दे पर राजनीति होती आ रही है जिसका विकास से दूर—दूर तक कोई नाता नहीं है। इन सब  मुद्दों में एक मुद्दा 'गाय' का भी है। अभी के राजनीति का मुख्य नायक और खलनायक दोनों गाय है। कभी यह विपक्ष के लिए  नायक से अचानक खलनायक हो जाती है तो कभी सत्तापक्ष के लिए। कांग्रेस ने अल्पसंख्यक यानि मुस्लिम (भारत की राजनीति के अनुसार) मतों के लिए गाय के प्रति कोई विशेष हमदर्दी कभी नहीं दिखायी। लेकिन पिछले दिनों केरल स्थित कन्नूर की घटना से कांग्रेस का नज़रिया गाय के प्रति अचनाक बदल गया। उस घटना के बाद जिन राज्यों में चुनाव होने है उन राज्यों में कांग्रेस खुद को गाय का सच्चा सेवक बताने में जुड़ी है। कन्नूर में जिस तरह से यूथ कांग्रेस के नेताओं द्वारा सरेआम गाय काटकर बीफ फेस्टिवल मनाया गया, जाहिर है उससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई। और इसमें भाजपा जरूरत के हिसाब से आग में घी डालने का काम करती रही। अल्पसंख्यक के चक्कर में बहुसंख्यक वर्ग को नाराज होते देख कांग्रेस को अब चीख—चीखकर खुद को बीजेपी को नकली और खुद को असली गौ—सेवक बताना पड़ रहा है। कांग्रेस और बीजेपी के खुद के प्रति इस प्रेम से शायद गौ माता खुद कन्फयूज हो गईं इसलिए उन्होंने अपने असली सेवक का दावा करने वाले भाजपा की परीक्षा लेनी शुरू कर दी। 

वर्तमान में भाजपा की स्थिति देश में काफी अच्छी है। वह केंद्र के साथ—साथ देश के कई राज्यों में अपना सरकार स्थापित कर चुकी है। कांग्रेस का गढ़ माना जानेवाला पूर्वोत्तर के राज्य में भी यह सरकार बनाने में सफल रही। अभी वह पूर्वोत्तर के बांकी बचे राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की होड़ में जुटी है। लेकिन पूरे देश में गाय को लेकर अपना स्पष्ट रूख रखने वाली बीजेपी इसी मुद्दे पर पूर्वोत्तर में घिरती नजर आ रही है। एक ओर जहां बीजेपी गौ हत्या का विरोध करती हैं वहीं पूर्वोत्तर में बीजेपी के ही नेता इसका विरोध करती दिख रही है। जहां एक ओर बीजेपी कहती है बीफ पर पाबंदी लगनी चाहिए वहीं असम अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि बीफ पर पाबंदी नहीं लगनी चाहिए। वे इसे अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ बता रहे हैं। आनेवाले समय में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह  पूर्वोत्तर का दौरा करने वाले हैं। वर्तमान में गाय का मुद्दा बीजेपी और अमित शाह के लिए गले का फांस बनता जा रहा है। भारत के पूर्वोत्तर के हिस्से में जहां गाय खाने की संस्कृति है वहीं बांकी हिस्सों में गाय को पूजने की संस्कृति। विपक्ष भी बीजेपी से गाय को लेकर अपना रूख स्पष्ट करने की मांग कर रही है। 

 गाय के इस परीक्षा में बीजेपी और उनके तारणहार अमित शाह कैसे पास होते हैं यह देखने लायक होगा......

-अश्वनी भैया

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