किसान आंदोलन के पीछे इस आदमी का दिमाग़ है-

(हस्तिनापुर के बोल)



जब से भाजपा सरकार आई है तब से लगतार वह बांग्लादेश जैसे विपक्ष से क्रिकेट खेल रही थी। लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद से बहुत कुछ बदल गया। पूरे देश में आग सी लग गई। वो मुद्दा जिसे राहुल गांधी भट्टा परसौली से साधने में लगे थे वह तब जम कर खेला जब वे गर्मी की छुटियों में नानी के घर जा रहें हैं। अगर आज किसी भी परीक्षा में सवाल आये कि सबसे असफल नेता कौन है तो जवाब बिना किसी विकल्प के ही राहुल गांधी का होगा। 
शायद यह एक ब्रांडिंग का कमाल ही है कि चॉकलेट बॉय राहुल से कब वे पप्पू बन गए।  इसी बॉडिंग ने ही नेताओं को अपने पीछे पूरी ब्रैंडिंग टीम का सपना दिया। आज कल तो छुट्ट भाइयों ने भी एक लड़का रख रखा है। जो लगतार फ़ोटो के साथ ये लिखते हैं कि 'तेरही में पूड़ी खाते नेता जी'। इस सबके पीछे और इस ट्रेंड को जन्म देने वाले भारतीय प्रशांत किशोर ने एक ऐसा दाव खेला जो तुक्के पर बैठा। कहानी शुरू हुई 6 सितंबर 2016 को देवरिया से। बिहार की जीत का ओस चाट कर राहुल और pk की टीम खाट पर बैठ गई।  इसी यात्रा के ख़त्म होते होते ही लगभग 24 सितम्बर को  मैं मोदी की चाय की चर्चा की कोर टीम के एक सदस्य से मिला। जिसे लगता था कि राहुल का प्रभाव तो है कम से कम 'कर्ज़ माफ़ और बिजली बिल हाफ़' तो लोंगों के जुबां पर चढ़ गया। चारपाई जरूर ही लोग उठा गए लेकिन जमीन पर कोई ख़ास असर तो नहीं था। इसके बाद सपा से गठजोड़ की बातों के बीच कांग्रेस और उसके मुद्दे सब कुछ दब चुका था। यह पहला चरण था इसके बाद नोटबन्दी ने मामले और सभी मुद्दों को मोड़ दिया था। सदन इसी बात पर सुलग रहा था तभी सभी पार्टियों की एकता को नकारते हुए राहुल गांधी और कांग्रेस के सदस्यों का समूह मोदी से मिला। मिलने के बाद हस्ताक्षरों का एक जखीरा दिया जिसमें कर्ज़ माफ़ी की बात थी। यह वह दौर था जब यूपी में बीजेपी का संकल्प पत्र तैयार हो राह था। जब पिटारा 28 जनवरी 2017 को खुला तो साथ लाया फसली ऋण माफ़ी की बात। यह तब तो ठीक था तभी मोदी जी ने पहले कैबिनेट में इसे पास कराने की बात कर दी। जब ये बातें हो रही थी तब यूपी में ये बातें बहुत मायने नहीं रखती थी। यहाँ तक भक्त भाजपाई लोगों को यह भी समझा चुके थे 2008 की मंदी का मुख्य कारण 2007 का कर्ज़ माफ़ी थी। भाजपाइयों ने इस बात को लगतार 5 साल कहा कि बैंकों का माली हालत ख़राब करने और देश पीछे रखने के लिये कांग्रेस ने लोगों को मुफ्तखोरी की आदत डाल रखी थी। यूपी चुनाव में इस घोषणा से पहले केजरीवाल और जयललिता को गरियाते हुए भगवा तौलिया लपटे मिल जाते। यहाँ तक अब भी खाँटी भाजपाई इसको लेकर संतुष्ट नहीं हैं।

     इस सबके बाद वह क्या था जो ये घोषणा हुई। वो थी pk टीम का प्रोपोगंडा जो बीजेपी के ऊपरी लोगों यह समझने में सफल रही कि कर्ज़ माफ़ी से चुनाव जीता जा सकता है। बस और क्या था 36 हजार करोड़ का कर्ज़ माफ़ी की घोषणा कर दिया गया। अगर आप को लगता है कि किसानों के हित में लिया गया फैसला है तो शायद इसे 2014 में और सबसे पहले महाराष्ट्र में लिया जाता। जहाँ लोग ज़्यादा आत्महत्या कर रहे थे। लेकिन माफ़ी आई तो उत्तर प्रदेश में और सारा आग यहीं से लगी है। अब जल रहा मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र। 
अब अगर कहीं और भी लगेगी तो वो भी भाजपा शासित प्रदेश होगा।
         अब तो यह बात साफ है कि प्रशांत किशोर ने मोदी को अपने जाल में फसा लिया। शायद उत्तर प्रदेश नहीं जीता लेकिन 2019 के लिए मौका तो खड़ा कर दिया है।

- रजत अभिनय 
कॉर्टून- राजेश चौहान


 

Comments