सहारनपुर को लेकर कुछ नई बातें हैं जो सवाल खड़ा करती हैं।
(हस्तिनापुर के बोल)
सहारनपुर, यह जगह तो आजकल सुर्ख़ियों का हिस्सा बनी हुई है। आय दिन किसी न किसी बात को लेकर सहारनपुर में विवाद बने ही रहते हैं। कभी वहां के लोगों के बीच हुए दंगों की वजह से, तो कभी पैनल मेंबर्स की अलग-अलग राय की वजह से।
लेकिन इन सब के साथ, चंद्रशेखर की खबरें कभी बंद नहीं होती, वो हमेशा सहारनपुर के दलितों के लिए हीरो ही बने रहते हैं। और अब, चंद्रशेखर नहीं तो उनकी माँ ही सही। सहारनपुर जातीय हिंसा के मास्टरमाइंड और भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर तो अब पुलिस से गिरफ्तार होने के बाद, जेल जा चुके हैं।लेकिन अब उनके के बाद दलित आन्दोलन और चंद्रशेखर की सेना का कमान उनकी माँ, कमलेश देवी ने संभाल लिया है। अब यह बात तो मेरे समझ में नहीं आई कि आखिर चन्द्रशेखर के बाद उनकी माँ ने ही क्यों इस भीम आर्मी की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।उनके अलावा भी तो सेना में कई लोग होंगे, उनसे ज्यादा सूझ-बुझ रखने वाले, और शायद उनसे ज़्यादा अनुभवी भी।
इसे देखकर तो मेरे मन में बस यही ख्याल आया कि यहाँ भी पॉलिटिक्स शुरू हो ही गई, यहाँ भी आ ही गया यह नेताओं का भाई-भतीजा वाद। लगता है भीम आर्मी को चलाने का ठेका चन्द्रशेखर के परिवार ने ही ले रखा है। तभी तो कमलेश ने हाल ही में एक 22 सेकंड का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर अपील की है कि 18 जून को दिल्ली के जंतर-मंतर पर होने वाले धरना प्रदर्शन में ज़्यादा से ज़्यादा लोग आये ताकि भीम सेना की शक्ति और बढ़ सके और बाबा साहेब का यह मिशन रुकना नहीं चाहिए। देखते हैं कि आखिर चंद्रशेखर के नहीं होने पर भी, उनकी माँ के साथ कितने लोग खड़े रहेंगे धरना प्रदर्शन में।
अब चंद्रशेखर के परिवार से नज़र हटाया, तो यहाँ एक और ख़बर जानने को मिली। एक तरफ जहां अपने चीफ, चन्द्रशेखर के जाने के बाद भी, भीम आर्मी के लोग एक साथ हैं, तो वही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग(एनसीएम) के सदस्य और उसके चीफ के विचारों में ही मतभेद हो रहे हैं। एनसीएम के अध्यक्ष, ग्यारुल हसन रिज़वी का उसके ही सदस्य सुलेखा कुंभारे के पैनल के सदस्यों द्वारा संघर्ष-प्रभावित सहारनपुर की यात्रा करने की बात पर कहना है कि सहारनपुर में हुए दलितों और ठाकुरों के बीच के संघर्ष में अल्पसंख्यक आयोग कुछ नहीं कर सकता। यह आयोग के दायरे में नहीं है। और बस इसी बात पर एनसीएम के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ बोलते दिख रहे हैं और बात-विवाद का यह सिलसिला चलता ही जा रहा है।
वैसे बात तो मुझे रिज़वी साहब की एकदम सही लगी कि दंगा जब दलित-ठाकुरों में हुआ तो भला अल्पसंख्यक आयोग क्यों इसकी जाँच करें।
हसन रिज़वी के साथ-साथ शैक्षणिक और पूर्व एनसीएम सदस्य, जोया हसन का भी कुछ ऐसा ही कहना है कि यह मुद्दा एनसीएम नहीं बल्कि एससी आयोग द्वारा उठाया जाना चाहिए। एनसीएम धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए है।
जितने लोग, उतनी बातें...लेकिन एक ही आयोग के सदस्य अगर इस तरह से एक-दूसरे के खिलाफ हो जाएँगे तो फिर आम लोगों की परेशानियों का हल कौन निकालेगा? तो अब एनसीएम के सदस्यों को भी भीम आर्मी से सिख ले ही लेनी चाहिए और अपने चीफ का साथ देना चाहिए।
--प्रियंका सिंह
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