फ़ेल और चौपट लोगों का जबरदस्त भविष्य बिहार में---
( दूर दराज )
बिहार जो कर्मस्थली है गौतम बुद्ध और महावीर की, जहाँ मौर्य वंश ,गुप्त वंश तथा अन्य कई राजवंशों ने देश के अधिकतर हिस्सों पर राज किया।
बिहार को शिक्षा व ज्ञान की भूमि के नाम से भी जाना जाता है जहाँ गौतम बुद्ध को शिक्षा की प्राप्ति हुई।जहाँ आर्यभट्ट और भास्कराचार्य जैसे महान व्यक्तियों का जन्म हुआ।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर से संदेह के घेरे मे आ गयी है।अब सिर्फ नीतीश को कोसने से काम नहीं चलेगा।दरअसल बिहार इंटर में छात्र ही नहीं फेल हुए है नीतीश सरकार भी फेल हुई है, जो उन्हे वो अच्छा माहौल ही नहीं दे पाई जहाँ वे पढ़कर अच्छे नम्बर लाते। तो क्या यह मान लिया जाए कि इस बार नीतीश कुमार के शासनकाल में कदाचार मुक्त एग्जाम हुए हैं? 2017 में नीतीश के सरकार ने कदाचार मुक्त एग्जाम करा दी है जैसा 21 साल पहले 1996 में हाई कोर्ट के आदेश पर हुआ था। और ज्यादातर स्कूल , कॉलेज ऐसे थे जहाँ कोई पास नहीं हुआ था ,करीब 11फीसदी छात्र ही सफल हुए थे।अब तक का बिहार का सबसे खराब रिजल्ट आया था और ऐसा नहीं की सरकार ने सिस्टम सुधारा था। कोर्ट की निगरानी में चोरी बंद हुई और नतीजा ऐसा की सबको हैरान कर दिया और यह एग्जाम पूरी तरह से कदाचार मुक्त रही थी। लेकिन 1990 के बाद शिक्षा व्यवस्था की और भी बुरी हालत हो गई और लगातार बेपटरी पर चल रही है।
नीतीश कुमार को सत्ता में 12 साल हो गए ,शिक्षा को लेकर खूब दावे हुए लेकिन हकीकत तो यह है कि सरकारी स्कूल ,कॉलेज बेहाल होती जा रही है । बिहार में लालू राज के शुरुआती दिनों में ही शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है।चरवाहा विद्यालय खोले जा रहे थे। और रही बिहार के टीचरों की बात तो उनके नॉलेज की तो दाद देनी होगी।टीचर के नॉलेज में बिहार की राजधानी दिल्ली । और इसी तरह अध्यापकों की संख्या में भी ,2-3 अध्यापकों के हवाले पूरा हाई स्कूल और ठीक यही हाल प्राइमरी स्कूल का भी था । पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं लेकिन बिहारी समाज आज भी जाति और धर्म की लड़ाई में उलझा हुआ है।
खैर आज अध्यापकों की नियुक्ति के विषय पर बात करते हैं। 1994 से 1997 तक हाई कोर्ट ने सरकार को लताड़ा तो अध्यापकों की नियुक्ति हुई, हालाँकि तब भी आधे से ज़्यादा पद खाली ही रह गए थे। 2005 में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो बिहार के तमाम स्कूल,कॉलेजों में अध्यापकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।नीतीश ने अध्यापकों की नियुक्ति के लिए एक अभियान चलाया और सोचा की ग्राम
पंचायतों को अध्यापकों के नियोजन का अधिकार देकर, मुखिया -सरपंचों को कमाई का मौका देकर वो अपने आगे के चुनावों में फायदा उठा लेंगे।लेकिन हुआ क्या मुखिया -सरपंचों ने अधिकारीयों से मिल कर अध्यापकों के पदों को ही बेच डाला। नीलामी में जिसने सबसे ऊँची बोली लगाई वो मास्टर साहब हो गया। अपने ऊपर आक्षेप न आए इसलिए नीतीश कुमार ने कई एग्जाम टेट,एस्टेट लिए।और इसके बाबजूद हुआ क्या टेट और एस्टेट पास करने के बाद अभियार्थी सड़क पर आ गए। बड़ी ही चालाकी से नीतीश कुमार ने नियुक्ति प्रक्रिया बंद कर दी और अध्यापकों को दिहाड़ी मजदूर बनाकर छोड़ दिया।नीतीश कुमार किस मुंह से बिहार के विकास की गाथा सुनाते है, वही जाने। खैर, अभी अभी आर्ट्स टॉपर गणेश, जिसका रिजल्ट खारिज कर दिया गया उसने 1990 में मैट्रिक पास किया और अभी उम्र कम करवा कर परीक्षा दे रहा था। इससे यह साफ ज़ाहिर हो जाता है कि हमारा सिस्टम ऊपर से लेकर नीचे तक लीकेज कितना है।
पर जो शराब बंदी नीतीश ने की ऐसी शराब बंदी आपने न कभी देखी और न सुनी होगी। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि फेल लोगों का या खिंच-खांच के पढ़े-लिखे लोगों का मेहनत कितना है वो आजतक पर यह ऊपर की पिक्चर दिखा रही है।
फ़ेल हो या चौपट हज़ार
एक बार आइये बिहार |
दिवाकर
Nice story but this is not true
ReplyDeleteThat's real motive for education in Bihar more children are educated in Bihar
That's real truth but bad luck of bihar politics