किसान अपने खेती से दिन में दो पान नहीं खा सकता...
( विचार अड्डा )
एक दिन बैलों की दो जोड़ी बैलगाड़ी के साथ लगातार चक्कर लगा रहे थे। शाम होते होते घर के सामने प्याज़ का ढ़ेर लग गया। मेरे चेहरे पर ख़ुशी थी क्योंकि मुझे पता था कि बड़ा माल पैदा हुआ है। पर दादा जी ने बताया कि ज़्यादा पैदा होने से सारा काम खराब हो गया है। कुछ 150₹ किवन्तल ही मिलेंगे इसके। बात मेरे समझ नहीं आई कि अभी 3 महीने पहले जब पहली बार साईकिल से बाज़ार गया था तब तो 150 में बस 2.5 किलो ही मिले थे। शुक्र थे उन रद्दी कागजों के जिसमें कई बार प्याज़ को लेकर हाय तौबा मचा था। उसी हाय को बेचकर नया कैरम बोर्ड आया। ये कोई बहुत पुरानी घटना नहीं , बस ये याद नहीं कि कितने साल का था। पूरे घर में प्याज़ था और उसे देखकर कोई खुश नहीं था।
ये प्याज़ की कहानी साल दर साल महाराष्ट्र में घटती है। आत्म हत्यों का दौर , राजनीति का दौर फिर सत्ता का दौर सब कुछ आता है। बस कुछ नहीं आता तो किसान का दौर। जब इस नई सरकार अपने सपनों के रथ पर दौड़ रही थी तब मोदी बताते थे कि कैसे इजराइल में बिना पानी के फ़सल पैदा होता है। और फिर सवाल पूछते कि "क्या भारत में नहीं हो सकता?"। हम ये तो नहीं कह सकते हैं कि मोदी जी ने भारत को इजराइल बनाने का वादा किया था। लेकिन घोषणा पत्र में 2022 तक किसानों की आय दुगना करने की बात की थी।
अब दुगना हो न हो लेकिन मरना जारी है। मध्य प्रदेश सरकार ने धौक दी गोली। अभी तक इस बात की चर्चा है कि किसान मरे या वो अराजक तत्व हैं जो उत्तर प्रदेश से योगी के हड़काने के बाद भाग कर मध्य प्रदेश पहुँच गए थे। अब जो मर गए वो उन्होंने बस आत्मा बदली है क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है। जो मर गए उनकी बात छोड़ते हैं जो जिंदा हैं उनकी बात करते हैं।
अब ये पगले मांग कर रहे है कि स्वामीनाथन कमीशन की मांगी जाए। जिसमें लागत का 50% जोड़ कर फ़सल का दाम मिले। असली बात तब सामने आई जब बीजपी के अध्यक्ष अमित शाह जी ने बताया कि वे लागत का 43% जोड़ कर दे रही है। अब समझ में नहीं आ रहा कि फिर किस बात की लड़ाई है।
लड़ाई तो है और रहेगी। ये अलग बात है कि उसे कौन सा राजू शेट्टी या चरण सिंह बनता हैं। ये भी नहीं मालूम कि कौन से नेता जी खेती कराते हैं। हां , ये पता है कि कुछ महान अर्थ शास्त्री 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। कितना कमाता है एक किसान ये मूल प्रश्न है? नेंशनल सैम्पल सर्वे की माने तो 6000 हजार रुपये प्रति महीना। जिसमें 3000₹ बाहरी आय है जो मनरेगा जैसे स्कीमों से आता है। ये आकंड़े 2012 के हैं , वहीं अब 2017 में जो आर्थिक सर्वे आया उसकी हिसाब से मात्र 1700₹ प्रति माह। लेकिन सच्चाई इससे बहुत अलग है। माना कि दस जनपथ वाले बैग उठा कर गाँव तो नहीं जा सकते हैं।लेकिन वे तो जा सकते हैं जा सकते हैं जो मोतिहारी से आकर नॉएडा के बड़े वाले न्यूज़ रूम में बैठे हैं। वे ना गए पर मैंने पकड़ लिया दो किसानों को मांग लिया इस हिसाब।
एक हेक्टर गेंहू बोने वाला कितना कमाता है-
प्रेम बहादुर सिंह जो कि ख़ानदानी किसान हैं। इस वर्ष ही इंटर कॉलेज से अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के पद से रिटायर होने वाले हैं। सारा हिसाब एक डायरी में लिखतें हैं। बड़ा आसान था ये जानना कि जब इतना अच्छा मानसून गुजरा इस बार तो कितना काम लिया खेत से। उन्हें 1हेक्टयर के हिसाब पूरा खाका बयाँ कर दिया।
बताया कि गेंहू बोने के लिए सबसे पहले 2बाह( एक खेत को एकदिन में दो बार जोतना) जोतने का ख़र्च 3000₹ होता है। उसके बाद उसे एक बार पानी भरकर छोड़ा जाता है जिसे पलेवा कहतें हैं। जिसकी लागत 1200₹। फिर खेत को रोटरी से जोतें है जिसमें 4000 ₹ का ख़र्च आया। चूंकि ये आधुनिक तकनीक से खेती करते हैं इसलिए सीड ड्रिल से बीच की बोआई करतें हैं। इस साल उन्होंने बिजाई पर कुल 2800₹ ख़र्च किया। एक बार गेंहू पैदा करने के लिए कुल 4 बार पानी दिया जिसमें 4800₹ का ख़र्च आया।इसके बाद उर्वरक पर 9000₹ ख़र्च किया जिसमें उस सब्सिडी को काट दिया है जो जन धन और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के तहत खाते में आ गया। उनके खेत में सेविया ( एक प्रकार की घास) ज़्यादा थी और कीड़े का प्रकोप भी था जिसे ख़त्म करने के लिए कुल 800 ₹ ख़र्च किया। इसके बाद पजांब से आये हार्वेस्टरों ने 6000 ₹ में मड़ाई कर दिया। कुल 28 किवन्तल पैदा किया और ख़र्च किया 35000₹। चूंकि इनको बाहरी आमदनी है तो इंतेजार कर ऐसे सरकारी रेट पर बेच दें तो 1620 ₹ / किवन्तल के हिसाब से 45360₹ मिलेगा। अगर हम ख़र्च को कुल दाम से निकाल दें तो मिलेगा 10360 ₹। इन्होंने ने नवंबर शुरू में ही खेत जोत लिए थे और खेत खाली हुए मार्च के अंतिम सप्ताह में। जो कुल 5 महीने है। इस हिसाब से प्रति महीने मिले 2072₹। 1 हेक्टयर में 4 बीघा होता है और इस हिसाब प्रत्येक बीघा से एक महीने की कमाई 518₹ है। इसमें खेत की लागत नहीं जोड़ी है क्योंकि सरकार इसे मुफ़्त मानती है।
अब आप ही सोच लीजिये की 2072 ₹ में क्या होता है? अगर इस किसान को बाहरी आमदनी न होतो और उसका लड़का सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करना हो तो वह पूरे महीने खाने के लाले पड़ जाएंगे।
1.25 बीघा बोन वाले किसान की आमदनी-
इस किसान का नाम नहीं लिख रहा हूँ क्योंकि कुछ शर्तें हैं।
छोटा किसान
सवा बीघा
पानी-1500₹
उर्वरक-3450₹
जोताई- 2340₹
पानी(3 बार) - 4500₹
थ्रेसिंग-1500₹
वाहन-300₹
बीज-1000₹
कुल पैदा -10 किवन्तल
कुल खर्च-13,290
सरकारी रेट- 16,200
बचत -2000
इतना छोटा किसान कभी भी सरकार की खरीद का इंतेजार नहीं करता। और भूसा बेचकर कटाई का खर्च निकाला था। मैंने सरकारी के तय रेट पर दाम तय किया लेकिन उसने बेचा है। जो 1400₹/किवन्तल है। इस हिसाब उसको कुछ नहीं बचेगा। अगर सरकार के 43℅ लागत पर बेचा है तो 200₹ प्रति महीना। अगर वह रोज 2 पान भी खाता है तो 8₹ (4₹का एक पान) हिसाब से 240₹ होता है।
ये हिसाब उन टेक्निकल किसानों को नहीं समझ आएगा जो शहर में रहता है और घर पर टिम्बर का पेड़ लागते हैं। शायद तीन साल में 1करोड़ ₹ कमा लेतें हैं। अभी जो किसान जी रहा है या जीने का नाटक कर रहा है मुझे तो समझ में नहीं आता। हालांकि सरकार ने इस में बीमा योजना ले कर आई है। 7 अप्रैल 2017 को कृषि मंत्री साहब ने बताया कि कुल 4200 करोड़₹ का कवर किया। जिसमें नुकसान के बाद किसानों को 714करोड़ ₹ मिले। इसका प्रचार उसी पन्ने पर छपा था जिस पर 6 की मौत हुई थी। ये कोई तीन साल की कहानी नहीं है। ये चलाता आया रहा है निज़ाम बदल रहे। कभी सरपत(विलो) को गन्ना बताने वाला था कभी चाय बेचने वाला। हर साल उस 2% जमात की महंगाई भत्ता बढ़ा दिया जाता है और 20₹ किलों प्याज़ सीने ठोके जाते हैं। वहीं जीने का नाटक करने वाले किसान से कोई मतलब नहीं। बाकि आप इस बात को लेकर रात को टीवी के सामने अपने सुविधा के अनुसार पक्ष और विपक्ष को गरिया सकते हैं।
-रजत अभिनय
कॉर्टून- पुष्पी आज़ाद
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