मासिक धर्म पर इतना बवाल क्यों ?

(विचार अड्डा)




 माहवारी,मासिक धर्म या मासिक धर्म चक्र- यह शब्द बोलते ही पीछे से आवाज़ आ जाती है,अरे ज़रा धीरे बोलो कोई लज्जा बची है या सब बेच खाया! बस इतना सुनते ही शर्म सी आ जाती है और मन में  कई सवाल उठने लगते है जो मन तक ही सिमित रह जाते है। यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं भारत में लगभग हर लड़की की है। अशुद्ध, अपवित्र और न जाने किन किन नामो से पुकारा  जाने वाला यह मासिक धर्म हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैे। परन्तु क्या सच में यह कुछ अपवित्र है। नहीं मेरे अनुसार तो ऐसी सोच सिर्फ पर्याप्त जानकारी के अभाव से है। और अभाव हो भी क्यों न हमारे देश में यह सिर्फ एक हउआ माने जाने वाली बात है जिसके बारे में खुलेआम बात नहीं की जा सकती क्योकि यह हमारे संस्कारो के विरुद्ध है। परंतु क्या आपको पता है  कि सिर्फ इसी ज्ञान के अभाव के कारण न जाने कितनी ही महिलाये गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर (cervical cancer)का शिकार होती है और उसके बाद भी उन्हें पता नही चल पाता की यह उन्हें हो क्या रहा। मासिक धर्म न ही कोई रोग होता है और न ही कुछ ऐसा जिससे लज्जा आये या छुपाना पड़े। मासिक चक्र एक ऐसा चक्र होता है जो हर लड़की को किशोरावस्था में होता है और सबको इसकी जानकारी की आवश्यकता है। यह ऐसा समय होता है जिसमे स्वच्छता रखने की पूरी आवश्यकता होती है। परंतु पूर्ण रूप से जानकारी के कारण भारत की न जाने कितनी ही महिलाये सुखी पत्तियों,सुखी घास और कपडे का इस्तेमाल करती हैं। जो की सर्वाइकल कैंसर का एक कारण होता है। विद्यालयो में इसकी पूर्णव्यवस्था के अभाव  से लाखो लड़कियो को अपनी शिक्षा कम उम्र में छोड़नी पड़ती है। आज अगर हम किसी दूकान में सेनेटरी नैपकिन खरीदने जाते है तो वो हमें काली थैले में अखबार में लपेटकर दिया जाता है। कभी कभी तो ऐसा एहसास होता है की बस नुक्लेअर बम बनाने का सामान ले जा रहे है। आखिर कब तक?? कब तक यही चलेगा की लोगों को किसी भी बारे में कुछ ज्ञान न होते हुए भी कोई भी टिप्पणी करते रहेंगे। कब तक लाखो लड़कियो के विद्यालय शिक्षा पूरी होने से ही छूटेंगे। कितनीऔरते कैंसर का शिकार होंगी? कब तक यूँ ही घुट घुट कर एक नारी का जीवन व्यतीत होगा? हालही में एक फ़िल्म का ट्रेलर देखा 'फुल्लू' ।

देखकर एक राहत सी मिली मन को की कोई तो है जो अपने कदम इस ओर बढ़ा रहा। परंतु फिल्में तो सिर्फ परदे तक रहेंगी असली मुकाबला तो अपने सोच में परिवर्तन लाकर करना है। यह कोई निषेध का विषय नही है यह एक ऐसा मामला है जिसे एक रहस्य की तरह नहीं बल्कि एक साधारण विषय की तरह देखने की ज़रूरत है। यह हमारे जीवन का एक आम और महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके अभाव से नए जीवन का निर्माण असंभव है।

JuSt खुसबू 

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