पाक की दर्द को जीवंत करती भारत की ये फ़िल्म .
(फ़िल्मची)
2007 में भारत को बांग्लादेश ने हरा दिया और फिर 2008 में मुम्बई जल उठी। हमने वो दर्द झेले है तब से लेकर आतंक को लेकर कितने आँसुओ ने आँखों की काजल को गालों तक पहुंचा दिया। ये सब होने के बाद के दिल से गाली निकली तो आवाज पेशावर की ओर था। फिर एक दिन पाक के टीवी पर रोने की आवाज़ थी। एंकर से लेकर आम आदमी रो रहे थे। इसका दर्द इधर वालों को भी पता था। 16 दिसम्बर 2014 को पेशावर के पब्लिक आर्मी स्कूल से 132 लाशें निकली। ये उन बच्चों की थी जो 2000 के बाद पैदा हुए थे। आगे चलकर इन्हें ही भारत से लड़ना था। शायद प्यार भी जता सकते थे लेकिन वे सोच पाते इसे पहले तहरीके -ए- तालिबान के 7 आदमखोर मानुष तन वाले जानवरों ने सब कुछ छीन लिया।
इन्ही दर्द को महसूस कर के एक भारतीय ने इसे पर्दे पर उतार दिया। 2016 में एक शार्ट फ़िल्म आई। अनुषल अग्रवाल की कलम से निकली स्कूल बैग। कहानी एक बच्चे और उसके मां की है। जो उसी आर्मी स्कूल में पढ़ने जाता है और लौट कर सिर्फ़ बैग ही आता है। सरल उर्दू में बनी फ़िल्म की भाषा शानदार है। वही माँ की रोल राशिका दुग्गल ने जीवंत बना दिया है। राशिका दुग्गल इसी साल आप 'युद्ध के बंदी' के टीवी सीरीज में देखा होगा। फ़िल्म को कई फ़िल्म फ़ेस्टिवल में स्क्रीनिंग का मौका भी मिला है। इसका डायरेक्शन अंशुल अग्रवाल और धीरज जिंदल ने किया है। फ़िल्म आपको भारत में बैठे पाकिस्तान तक ले जाती। अगर आप भारतीय है तो पाक अपने दर्द को देखना चाहिए । 2016 में रिलीज फ़िल्म अब लार्ज शार्ट फिल्मस के यू टयूब के तले 13 जून को मार्केट में आ गई । एक बार तो 15 मिनट बनता है इसके लिए।
-रजत अभिनय
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