फुटबॉल टीम की ट्रेन टिकट आरक्षित कराने की औकात नहीं

(गिल्ली डंडा)





एक खिलाड़ी या एक टीम को खेल के साथ-साथ मूलभूत सुविधाओं की भी जरूरत होती है। खिलाड़ी, टीम और एक कोच को अपने खिलाड़ीयों से यहीं उम्मीद रहती है कि वो अच्छा खेलें और टीम के लिए गोल्ड मेडल जीते। लेकिन उन्हीं खिलाड़ीयों को कुछ मूलभूत सुविधाएँ भी चाहिए होती है। ऐसा ही कुछ हुआ अंतर्राजीय फुटबॉल टीम के साथ। ईस्ट बंगाल, मोहन बागान के साथ अपना सेमीफाईनल मैच खेल कर कोलकाता वापस लौट रही थी। लेकिन हवाई जहाज और ट्रेन में सीटें फुल होने के कारण उन्हे बिना आरक्षण के कोलकाता वापस आना पड़ा। ऐसे में उन्हें जनलर बॉगी के डिब्बे में बाथरूम के पास अपने किट बैग पर बैठकर सफर करने पर मज़बूर होना पड़ा। टीम मैनेजर और पूर्व भारतीय खिलाड़ी मनोरंजन भट्टाचार्य ने कहा कि सभी उड़ानों में सीटें भर गई थीं और इसलिए उन्होंने बस की व्यवस्था की लेकिन पूर्व भारतीय खिलाड़ी मेहताब, वर्तमान खिलाड़ी मंडल, दास, मोहम्मद रफीक, शुभाशीष राय चौधरी और गोलकीपिंग कोच अभिजीत मंडल ने बिना आरक्षण के पहली रेलगाड़ी से कोलकाता आने का फैसला किया। ऐसे में यहीं कहा जा सकता है कि देश के पदासीन महाशयों को इन खिलाड़ीयों से सिर्फ गोल्ड मेडल की ही आस लगी रहती है। लेकिन उनकी जरूरतों पर इन महाशयों का नज़र ही नहीं जाता।

-विवेक खेलची
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