ईमानदारों की पार्टी से ईमानदार हो रहे गायब!
(हस्तिनापुर के बोल )
तथाकथित ईमानदारों की पार्टी (आम आदमी पार्टी) आजकल फिर चर्चा में है। यह पार्टी अपने जन्म से ही नकमारात्मक राजनीति को लेकर चर्चित रही है। दिल्ली के जंतर-मंतर में जन लोकपाल के गर्भ से जन्मी इस पार्टी ने बदलाव की राजनीति का झांसा देकर लोगों को शुरु में अपनी ओर आकर्षत किया। पार्टी के संस्थापक-संयोजक एंव दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के जनता को ईमानदारी एवं बदलाव का झांसा देकर 2013 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में ऊभरे। फिर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर दिल्ली में सरकार भी बनाई। हालांकि ये अलग बात है कि वे कांग्रेस को भ्रष्ट पार्टी बताकर उसके निवर्तमान मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्टाचार के लिए जेल भेजने के मुद्दे पर चुनाव लड़े थे। यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही टिक सकी। उसके बाद जनता 2015 में फिर इनके झांसे में आ गई। वजह थी फ्री बिजली, फ्री पानी और फ्री वाई-फाई का लालच, जो इन्होंने दिल्लीवासियों को दिया। इस बार ये पूरी बहुमत के साथ सरकार में आये और 70 में से 67 सीटें अपने नाम की।
इस बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद केजरीवाल का एजेंडा में बदलाव था। वो पार्टी में सबसे बड़े तानाशाह के रूप में उभरे और साथ में काम से ज्यादा ध्यान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने पर केंद्रित किया। इसका विरोध इन्हीं के पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने किया। यह विरोध केजरीवाल को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने इन दोनों को पार्टी से बर्खाश्त कर दिया। वैसे योगेन्द्र यादव की छवि राजनीति में साफ मानी जाती है। फिर पार्टी में ईमानदारी से काम करने वालों की निष्कासन का सिलसिला अब तक जारी है। आश्चर्य की बात तो यह है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली इस पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक एवं मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे और कुछ को तो जेल की भी हवा खानी पड़ी।
हाल ही में संपन्न हुए पंजाब विधान सभा और दिल्ली में नगर निकाय की चुनाव में करारी हार मिलने के बाद पार्टी में कुछ ज्यादा ही हलचल मची हुई है। नगर निकाय के चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जनता से कहा भी था कि ‘‘अगर दिल्ली वाले डेंगू चाहते हैं तो ही वो भाजपा को वोट देंगे।’’ लेकिन परिणाम इसके उलट आया। शायद लोग दिल्ली में डेंगू को केजरीवाल से बेहतर समझा। क्योंकि डेंगू का ईलाज संभव है लेकिन उनका......।
इस बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद केजरीवाल का एजेंडा में बदलाव था। वो पार्टी में सबसे बड़े तानाशाह के रूप में उभरे और साथ में काम से ज्यादा ध्यान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने पर केंद्रित किया। इसका विरोध इन्हीं के पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने किया। यह विरोध केजरीवाल को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने इन दोनों को पार्टी से बर्खाश्त कर दिया। वैसे योगेन्द्र यादव की छवि राजनीति में साफ मानी जाती है। फिर पार्टी में ईमानदारी से काम करने वालों की निष्कासन का सिलसिला अब तक जारी है। आश्चर्य की बात तो यह है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली इस पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक एवं मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे और कुछ को तो जेल की भी हवा खानी पड़ी।
हाल ही में संपन्न हुए पंजाब विधान सभा और दिल्ली में नगर निकाय की चुनाव में करारी हार मिलने के बाद पार्टी में कुछ ज्यादा ही हलचल मची हुई है। नगर निकाय के चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जनता से कहा भी था कि ‘‘अगर दिल्ली वाले डेंगू चाहते हैं तो ही वो भाजपा को वोट देंगे।’’ लेकिन परिणाम इसके उलट आया। शायद लोग दिल्ली में डेंगू को केजरीवाल से बेहतर समझा। क्योंकि डेंगू का ईलाज संभव है लेकिन उनका......।
एक दिन पहले पार्टी के एक और नेता को अपनी ईमानदारी का ईनाम मिला। वे हैं दिल्ली के जल मंत्री कपिल मिश्रा, जिन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। दिल्ली के उप मंुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह दलील दी कि दिल्ली में पानी के किल्लत की बढ़ती शिकायतें देख यह फैसला लिया गया। जबकि कपिल मिश्रा का कहना है कि वे टैंकर घोटाले को उजागर करना चाहते थे। उनके अनुसार, वे टैंकर घोटाले के तथ्य को लेकर कई बार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिले और इस पर बात की। लेकिन अरविंद केजरीवाल इसे नजरअंदाज करते रहे। बाद में उन्होंने एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के चीफ एमके मीणा को एक पत्र लिखकर घोटाले से संबंधित तथ्य देने की बात कही। इससे खफा होकर केजरीवाल ने उन्हें मंत्री पद से हटा दिया।
क्या है टैंकर घोटाला?
दिल्ली में 2006 में शीला दीक्षित की सरकार थी। इस समय दिल्ली सरकार ने स्टील टैंकर मंगाने का फैसला किया। इसका टेंडर 400 करोड़ था जिसे 600 करोड़ में दिया गया। सरकार पर यह भी आरोप लगा कि टैंकर में जीपीएस लगाने का ठेका 60 करोड़ में बिना टेंडर के ही दे दिया गया जबकि यह काम 15 करोड़ में भी हो सकता था। इसके साथ ही किराए पर चलनेवाले 3000 करोड़ लीटर का स्टील का टैंकर का किराया 1 लाख 11 हजार रूपया जबकि 9000 लीटर टैंकर का किराया 1 लाख 40 हजार बताया गया।
हालांकि इस मामले पर अरविंद केजरीवाल अब तक चुप हैं लेकिन उनके कथित ‘छोटे भाई’ और पार्टी नेता कुमार विश्वास ने ट्वीटर के माध्यम से कपिल मिश्रा का समर्थन किया है जिससे पार्टी में एकजुटता की कमी साफ दिख रही है। कुछ दिन पहले कुमार विश्वास के खिलाफ बोलने वाले विधायक अमानतुल्लाह खान पर भी कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। कार्रवाई के नाम पर अमानतुल्लाह खान का पार्टी की पोलिटिकल अफेयर्स कमिटि (पीएसी) से इस्तीफा लिया गया। इसको लेकर पार्टी के टाउन विधायक अखिलेश त्रिपाठी ने असंतुष्टि जताते हुए इस पर कड़ी कार्रवाई की मांग भी की जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। इसके साथ ही कुमार विश्वास के करीबी माने जाने वाले विधायकों को भी पार्टी में कोई खास तरजीह नहीं दी जा रही है, जो कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच के खटास को साफ दिखाती है।
अब सवाल यह है कि कपिल मिश्रा द्वारा टैंकर घोटाले से संबंधित तथ्य दिये जाने के बावजूद भी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इसपर संज्ञान क्यों नहीं लिया? क्या केजरीवाल यह समझ चुके हैं कि निकट भविष्य में कांग्रेस के बिना उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इसलिए कांग्रेस से बैर समझदारी की बात नहीं होगी।
हालांकि इस मामले पर अरविंद केजरीवाल अब तक चुप हैं लेकिन उनके कथित ‘छोटे भाई’ और पार्टी नेता कुमार विश्वास ने ट्वीटर के माध्यम से कपिल मिश्रा का समर्थन किया है जिससे पार्टी में एकजुटता की कमी साफ दिख रही है। कुछ दिन पहले कुमार विश्वास के खिलाफ बोलने वाले विधायक अमानतुल्लाह खान पर भी कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। कार्रवाई के नाम पर अमानतुल्लाह खान का पार्टी की पोलिटिकल अफेयर्स कमिटि (पीएसी) से इस्तीफा लिया गया। इसको लेकर पार्टी के टाउन विधायक अखिलेश त्रिपाठी ने असंतुष्टि जताते हुए इस पर कड़ी कार्रवाई की मांग भी की जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। इसके साथ ही कुमार विश्वास के करीबी माने जाने वाले विधायकों को भी पार्टी में कोई खास तरजीह नहीं दी जा रही है, जो कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच के खटास को साफ दिखाती है।
अब सवाल यह है कि कपिल मिश्रा द्वारा टैंकर घोटाले से संबंधित तथ्य दिये जाने के बावजूद भी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इसपर संज्ञान क्यों नहीं लिया? क्या केजरीवाल यह समझ चुके हैं कि निकट भविष्य में कांग्रेस के बिना उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इसलिए कांग्रेस से बैर समझदारी की बात नहीं होगी।
- अश्विनी भैया
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