माया , मुलायम और लालू वाली गलती तो नही करने जा रहे मोदी?
(हस्तिनापुर के बोल)
दैनिक जागरण में आज पहले पेज पर एक ख़बर छपी थी। 'प्रमोशन में आरक्षण की तैयारी ' जिसमें कुछ बातें साफ़ तौर पर लिखी थी। ख़बर के अनुसार सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने को तैयार हो गई है। सरकार का मानना है कि सभी विभाग ख़ास तौर पर निचले कैडर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए तय सीमा तक आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है।
यह कोई गलत या सही प्रस्ताव के रूप से ज़्यादा राजनीतिक महत्व के रूप।में देखना भी ज़रूरी है। क्योंकि इसकी शुरुआत भी कुछ इसी तरह से हुई थी। मायावती के 2012 में यूपी में सरकार के कार्यकाल ख़त्म होने से पहले यह विधेयक केंद्र में भेज दिया था। यह एक रणनीति थी कि ब्राह्मणों और दलितों जैसे दो ध्रुवी को एक साथ रखा जा सके। चूँकि उस समय बसपा में ब्राह्मण नेता जैसे सतीष चन्द्र मिश्र , रंगनाथ मिश्र जैसे लोगों का कद काफ़ी बड़ा हो गया था। इसलिए अपने बेस वोट बैंक को साधने के लिए यह दावा चला गया।
मुलायम सिंह ने इसे पारित नहीं होने दिया और सवर्णो जिसमें ब्राह्मण भी शामिल थे उनको भी अपने साध लिया। आरक्षण अब भी उतना ही संवेदन शील मुद्दा है जितना की मंडल और वीपी सिंह के दौर में था। अब भी आप को वो पोस्टर दिख सकते हैं कि मेरे भाइयों की नौकरी मत लो। एक बड़े वर्ग में इसको लेकर गुस्सा भी रहता है। वास्तव में जो लोग आज विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण के लिए पटरी पर बैठे है यह उसी का परिवर्तित रूप है। जिस सवर्ण आरक्षण की बात यूपी के क्षेत्रीय दल कर रहें हैं उसको बड़ा वर्ग समर्थन कर सकता है। क्योंकि यह भी उसी भावना का परिवर्तित रूप होगा।
क्या है वह गलती जो कर सकती है बीजेपी सरकार-
प्रमोशन में आरक्षण दे कर मोदी सरकार एक वर्ग के वोट के लिए अपना बेस वोट बैंक में छेद कर सकती है। 2014 से अगर आप देखें तो चुनाव के बाद से लगतार उत्तर भारत में सवर्ण लॉबी में लगतार बीजेपी को बहुत भारी मात्रा में वोट किया है। यहाँ तक की बिहार जहाँ सामाजिक न्याय के दो बड़े नेताओं ने पुराने वोट बैंक को एक जुट किया , वहाँ भी बीजेपी को यह वोट मिला। यूपी में अगर जातीय समीकरण देखे तो सवर्ण +गैर यादव ओबीसी + गैर जाटव दलित । अब बीजेपी इससे ज्यादा दलित और ओबीसी वोट हासिल नहीं कर सकती है। इसे ज्यादा के लिए इन्हें भीम राव अम्बेडकर जितनी मेहनत करनी पड़ेगी। लेकिन आरक्षण लागू करने पर सवर्ण का वोट खिसक सकता है।
यह वही बात है कि प्लस वोट बैंक के चक्कर में बेस वोट बैंक को गवाना।
कभी यही गलती लालू और मुलायम में my में y के साथ किया था। और अब मुसलमान वोट के चक्कर में मायावती ने दलितों के साथ किया।
- रजत अभिनय
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