किस्सा विवादित ढांचे से लेकर मण्डल और कमंडल तक |
(हस्तिनापुर के बोल)
यह नाम तो हम सभी ने सुना है और जब भी सुना है विवादों में ही सुना है। जहाँ तक मुझे याद है, जब से मैने होश सम्भाला, तब से जब भी बाबरी मस्जिद का ज़िक्र टी.वी. न्यूज़ में देखा है, हर बार एक नए सियासी मुद्दे के साथ, एक नए विवाद के साथ...लेकिन मस्ला वही पुराना। हर बार यह मुझे सोंचने पर मजबूर कर देता है कि आखिर क्या है इसका इतिहास, कहाँ से शुरू हुआ इस पर विवाद, क्यों आजतक नहीं सुलझ पाए हैं इस पर चल रहे मुद्दे...।
तो आज मै इसी बाबरी मस्जिद के बारे में ही कुछ लिखना चाहूंगी..
बाबरी मस्जिद..जिसका निर्माण सन् 1527 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अयोध्या शहर, जो कि हिन्दू धर्म के भगवान राम की जन्मभूमि है, में स्थित है। माना जाता है कि भारत के प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था, इसलिए इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों में एक हिंसक झड़प हुई और इसकी वजह थी मस्जिद को लेकर हिन्दुओं का आरोप। उनका कहना था, मस्जिद, भगवान राम के मन्दिर को तोडकर बनाया गया था। यह मामला तब तक ऐसे ही चलता रहा, जब तक सन् 1859 में ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुओं और मुस्लिमों, दोनो को ही तारों की एक फेंस खड़ी करके एक ही जगह अलग-अलग, अपनी प्रार्थनाएं करने की इजाज़त दे दी। लेकिन यह भी ज्यादा समय तक नही चल पाया, 1885 में पहली बार यह मामला अदालत तक पहुँच गया और फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मन्दिर के निर्माण के लिए अपील भी दायर कराई गई। सन् 1949 में हिन्दुओं ने जब वहाँ भगवान राम की मूर्ति रख कर पूजा करना शुरू किया तो मुसलमानों ने नमाज़ पढना बंद कर दिया। 1950 में न्यायालय से मूर्ति ना हटाने की मांग की गई और उसी साल बाबरी मस्जिद में राम मूर्ति रखने का मुकदमा भी दायर किया गया। साथ ही मस्जिद को 'ढांचा' नाम दिया गया।
फिर सन् 1961 में बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए मुसलमानों ने मुकदमा दायर कराया।
1984 में विश्व हिन्दू परिषद् ने एक समिति का गठन किया..बाबरी मस्जिद के ताले खोलने, राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मन्दिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया गया था। 1986 में हिन्दुओं को फैजाबाद न्यायालय से पूजा करने की इजाज़त तो मिल गई थी लेकिन इस बात से नाराज़ मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी का गठन क्र लिया। हिन्दुओं और मुस्लिमों में यह आन्दोलन ऐसा ही चलता रहा और 1989 में, पांचवा मुकदमा भी दायर हो गया, भगवान रामलला विराजमान के नाम से।
तत्कालीन प्रधान मंत्री राजिव गाँधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाज़त दे दी और विश्व हिन्दू परिषद को बीजेपी का समर्थन भी मिला और उसके अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। बस इसके बाद तो जैसे दंगो का सिलसिला शुरू हो गया था। और आडवाणी को भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था।
साम्प्रदायिक दंगे और भी बढ़ गए जब, 1992 में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया और अस्थाई राम मन्दिर बना दिया गया। लेकिन मुस्लिमों की भावनाओं को समझते हुए प्रधानमन्त्री पी.वी.नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया। बाद में एम.एस.लिब्रहान आयोग का भी गठन किया गया, जिससे कि मस्जिद की तोड़-फोड़ की ज़िम्मेदार स्थितियों की जांच की जा सके। इतना ही नहीं उसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरु किया। फिर 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक़ को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की|
इतने विवादों और दंगो के बाद सितम्बर 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारीज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया और उसके अगले दिन ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आखिरकार एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 21 मार्च,2017 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता करने को कहा था। और अब हाल ही में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि अब राममंदिर पर बहस नही होनी चाहिए, क्यूंकि जिन्होंने उसका विरोध किया था, आज वही रामभक्त हो गए हैं...
तो यह थी विवादों, दंगों और कई मुकदमों से भरी बाबरी मस्जिद का अब तक का सफ़र...अब आगे जाकर इसपर क्या निर्णय लिया जाएगा और लोग उसे कितना स्वीकारेंगे..यह जानने के लिए ना जाने और कितना इंतज़ार करना पड़े लेकिन लोगों में फिर से हिंसक झडपों का सिलसिला शुरू नही होना चाहिए।
--प्रियंका सिंह
अगर हमारी ख़बर पसंद आई तो हमारा पेज लाइक कीजिए ,👍👍👍
Comments
Post a Comment