नीतीश अपने पेट वाले दांत से चबा रहे लालू का आंत

(हस्तिनापुर के बोल)



बिहार के क्षत्रप लालू प्रसाद यादव अपने बकलोल टाइप अदा को लेकर लोगों में काफी लोकप्रिय रहे हैं। कैमरा देखते ही अपना रूप बदलने में वे माहिर माने जाते हैं। एक समय ऐसा भी था जब बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद नदी का दो किनारा माना जाता था। जिसका एकजुट होना शायद असभंव हो। 14 साल से बिहार के सत्ता पर काबिज लालू प्रसाद से जब 2005 में सत्ता छिनी थी तो उस समय उनका सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन नीतीश कुमार माने जाते थे। व्यक्तिगत बयानबाजी में माहिर लालू प्रसाद ने उस समय कहा था कि ''इ नीतीशबा के पेट में दांत है।'' इस वाक्य का अर्थ शायद बताने की जरूरत नहीं। समय बदला, राजनीति भी बदली। कहा जाता है राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। इस बात को नीतीश कुमार ने सच भी साबित किया। 2014 के लोकसभा के जब भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को अपना चेहरा बनाया तो नीतीश कुमार को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने व्यक्तिगत अहंकारवश खुद को भाजपा से अलग किया। शायद यह उनके राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। 2014 के लोकसभा में जहां बीजेपी की भारी जीत हुई वहीं जदयू बिहार में मात्र 2 सीटों पर ही सिमट गई। अपना अस्त्वि खतरे में देख उन्होंने 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में लालू प्रसाद से हाथ मिलाया और लालू प्रसाद की मदद से फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मिथिला में एक बहुत ही प्रचलित कहावत है 'अप्पन हारल और बहुअक मारल, कोय केकरो से नै कहै छै।'' (खुद की गलती से हारा और पत्नी से हुई पिटाई वाली बात कोई किसी को नहीं बताता) लालू यादव तो यह चुनाव डूबते को तिनका का सहरा हो गया लेकिन नीतीश कुमार के लिए गला का घेघ। इस बात का संकेत वे केन्द्र द्वारा किये गये नोटबंकी की तारीफ और बेनामी संपत्ति पर भी शिकंजा कसने की केन्द्र से मांग को लेकर दे दिया था। बिहार में घोटाले का पयार्य बन चुके लालू प्रसाद यादव फिर से अपने रंग में लौटे और नीतीश कुमार पर अपना दबदबा कायम रखा। बिहार के लिए विकास पुरूष के नाम से पहचान प्राप्त कर चुके नीतीश कुमार इस बार विकास से बहुत दूर दिखे। बिहार में विकास के नाम पर कुछ दिखा तो तथाकथित शराबबंदी। वो तो भला हो बिहार के विपक्ष का जिसके वजह से वे चैन की सांस ले पा रहे हैं। भगवान बिहार जैसा विपक्ष हर राज्य को प्रदान करे। बिहार में विपक्ष कबीर के उस दोहे—''कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। न केहु से दोस्ती, न केहु से बैर।।''का अनुसरण करती है। बिहार में विपक्ष की उदासीनता और लालू के दबाव से तंग नीतीश कुमार ने एक तीर से दो निशाना साधा। उन्होंने ने लालू प्रसाद के घोटाले के सारा कागजात विपक्ष को उपलब्ध करा दिया। जिससे विपक्ष को कुछ काम भी मिल गया और लालू से थोड़ी राहत भी। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। इस विषय में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी खुद कह रहे हैं कि लालू के कारनामें का सारा सबूत उन्हें जदयू के नेता के द्वारा दिया गया है। इस अवसर को विपक्ष ने भी आड़े हाथ लिया और लालू पर हल्ला बोला। उन्होंने राज्य सरकार से उनके सारे घोटाले की जांच की मांग की। इसपर नीतीश कुमार ने बड़े ही शातिराना अंदाज में जवाब दिया कि अगर आपके पास पुख्ता सबूत है तो कोर्ट में जाइये। (मानो वे कह रहे हैं कि खाना बनाकर तो मैंने दे ही दिया है। कम से कम खाने का कष्ट तो खुद करें।) इसके अगले ही दिन लालू प्रसाद के 22 ठिकानों पर 1000 करोड़ की बेनामी संपत्ति को लेकर आईटी का छापा पड़ा। अब ये तो जगजाहिर है कि अचानक आईटी का छापा किसके निर्देश पर पड़ता। है। आईटी के इस छापे से लालू प्रसाद इतने बौखला गए कि उन्होंने ट्वीटर के माध्यम से बीजेपी को नये अलायंस पार्टनर मुबारक हो जैसे ट्वीट कर डाले। पर जब उन्हें होश आया तो उन्होंने दोबारा ट्वीटर के माध्यम से उनके पार्टी के नेता सफाई दी कि वे नया पार्टनर नीतीश को नहीं बल्कि आईटी को कह रहे थे। गठबंधन अटूट है और अटूट रहेगा। बीजेपी ज्यादा खुश न हो। गठबंधन अटूट है और अटूट रहेगा। लालू प्रसाद आईटी के छापे के बाद लगातार ट्वीटर पर अपना भड़ास निकाल रहे हैं। उन्होंने एक ट्वीट में यह भी कह डाला कि मीडिया द्वारा जिन 22 जगहों पर छापे की खबर बताई जा रही है, मीडिया उन जगहों का नाम बताये। ये सब बीजेपी वाले की चाल है। लालू किसी से डरता नहीं हैं। लेकिन आज जिस तरह से उनके समर्थकों द्वारा बीजेपी कार्यालय पर हमला बोला गया और बीजेपी नेताओं की पिटाई की गई है, यह घटना कुछ और ही बयां कर रही है। लालू प्रसाद भी नीतीश कुमार के इस चाल को अच्छी तरह से समझ चुके होंगे। उन्हें अब लगता होगा कि वाकई में नीतीश कुमार के पेट में दांत है जिससे वह उनके आंत को कुतर रहा है।


-अश्वनी भैया

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