वे कारण जिसकी वज़ह से कश्मीरी ब्राह्मण आज भूखे मर रहें हैं।
(भूले बिसरे)
Pic- Wikipedia
कश्मीरी ब्राह्मण..जिनकी पहचान "सारस्वत ब्राह्मण" के रूप में होती थी...वो भगवान शिव के अनुयायी थे...। और इस घाटी में जो संस्कृति, रीति-रिवाज,धर्म-स्थापना, और सभ्यता कश्मीर को सदियों से सींचती आ रही है वो कश्मीरी ब्राह्मण का ही देन है...।
कई सारी वजहें रहीं जो इन ब्राह्मणों को अपनी मातृभूमि को छोड़ कर कहीं और जा कर बसने के लिए मजबूर कर दिया...। आइये उन वजहों पर एक नज़र डालें :-
1. 1980 के दशक में कश्मीर में आतंकियों का दौर शुरू हुआ जिसने कश्मीरी ब्राह्मणों को काफ़ी प्रताड़ित किया....।
2.उन्हें अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया..। और इतिहास गवाह है की ये कश्मीरी मुस्लिम अलगाव नेताओं की रची-रचाई साज़िश थी..।
3. इन पर समस्याओं का यह गाज पिछले दो दसक से नहीं बल्कि मुग़ल काल से ही थी...जब कई सारे नियम-कानून लगा कर इन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर करता रहा...कुछ अज़ीबो-गरीब नियम थे जो सन 1720 में मुल्लाह अब्दुल नबी ने कश्मीरी ब्राह्मण के लिए एक हुक्मनामा जारी किया....उनका यहाँ ज़िक्र करना चाहूंगा:-
¶कोई हिन्दू घुड़सवारी नहीं कर सकता..और उसे जूते पहनने की अनुमति नहीं होगी..।
¶हिन्दू ब्राह्मण को मुस्लिम वस्त्र(जामा) पहनने की सख़्त मनाही होगी..।
¶वो नंगे पाँव ही चलें
¶हिंदुओं को किसी भी वाटिका में प्रवेश वर्जित होगी।
¶उनके ललाट पर तिलक नहीं होना चाहिए..।
¶ हिंदु के बच्चे किसी भी तरह के शिक्षा व्यवस्था से जुड़ने की अनुमति नहीं थी..।
4. इतना ही नहीं आज से दो दशक पूर्व की हालत इन कश्मीरी हिंदुओं के लिए और भी दर्द भरा रहा...। वो यूँ की 1980 के दशक में हिन्दू अल्पसंख्यकों के घरों पर आक्रमण किया गया..। हज़ारों ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया गया...। घर जला दिए गए।
2.उन्हें अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया..। और इतिहास गवाह है की ये कश्मीरी मुस्लिम अलगाव नेताओं की रची-रचाई साज़िश थी..।
3. इन पर समस्याओं का यह गाज पिछले दो दसक से नहीं बल्कि मुग़ल काल से ही थी...जब कई सारे नियम-कानून लगा कर इन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर करता रहा...कुछ अज़ीबो-गरीब नियम थे जो सन 1720 में मुल्लाह अब्दुल नबी ने कश्मीरी ब्राह्मण के लिए एक हुक्मनामा जारी किया....उनका यहाँ ज़िक्र करना चाहूंगा:-
¶कोई हिन्दू घुड़सवारी नहीं कर सकता..और उसे जूते पहनने की अनुमति नहीं होगी..।
¶हिन्दू ब्राह्मण को मुस्लिम वस्त्र(जामा) पहनने की सख़्त मनाही होगी..।
¶वो नंगे पाँव ही चलें
¶हिंदुओं को किसी भी वाटिका में प्रवेश वर्जित होगी।
¶उनके ललाट पर तिलक नहीं होना चाहिए..।
¶ हिंदु के बच्चे किसी भी तरह के शिक्षा व्यवस्था से जुड़ने की अनुमति नहीं थी..।
4. इतना ही नहीं आज से दो दशक पूर्व की हालत इन कश्मीरी हिंदुओं के लिए और भी दर्द भरा रहा...। वो यूँ की 1980 के दशक में हिन्दू अल्पसंख्यकों के घरों पर आक्रमण किया गया..। हज़ारों ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया गया...। घर जला दिए गए।
5. आतंकवादियों का आतंक काफ़ी बढ़ चुका था...हिन्दू बहन- बेटियों की सुरक्षा खतरे में थीं...।
6.कई सारे मंदिरों को ध्वस्त कर दिया उन आतंकियों ने..। कश्मीरी ब्राह्मण अल्प-संख्यक हो चुके थे..।अतः अब लड़ने या मुकाबला करने की हिम्मत नहीं बची थी..।
7.19 जनवरी 1990 को हिंदुओं के लिए फ़रमान जारी किया गया कि वो 24 घंटे के अंदर या तो कश्मीर छोड़ दें या फिर इस्लाम कबूल लें...। या फिर मरने के लिए तैयार हो जाएं..।
8. बर्दास्त की भी एक हद होती है...ऐसे में एक ही उपाय रह गया था...जन्मभूमि का त्याग.... कश्मीरी ब्राह्मणों ने वही किया..।
7.19 जनवरी 1990 को हिंदुओं के लिए फ़रमान जारी किया गया कि वो 24 घंटे के अंदर या तो कश्मीर छोड़ दें या फिर इस्लाम कबूल लें...। या फिर मरने के लिए तैयार हो जाएं..।
8. बर्दास्त की भी एक हद होती है...ऐसे में एक ही उपाय रह गया था...जन्मभूमि का त्याग.... कश्मीरी ब्राह्मणों ने वही किया..।
9.एक साथ लाखों कश्मीरी पंडितों ने गृह-त्याग कर दिल्ली, हरयाणा, उत्तर प्रदेश के क्षत्रों में पलायन करने लगे...।
आपको बता दूँ की कश्मीरी पंडितों में शत-प्रतिशत साक्षरता थी.....सुप्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता "अनुपम खेर" भी कश्मीरी पंडित ही हैं..।
परंतु अपने घर वापस लौटने की उनकी कवायद दशकों से जारी है..परंतु अब इस पर राजनीतिक रंग चढ़ चूका है तो ये अब तो एक मुद्दा है चुनाव का...जिसमें कश्मीरी पंडितों की आह कहीं धूमिल हो चुकी है...।
अब तो प्रधानमंत्री भी अपने कार्यकाल का तीन साल पूरा कर चुके हैं.. अभी तक तो उस तरफ उनकी नज़रें नहीं दौड़ी हैं....। अब ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा या भारत-पाक के कश्मीर मुद्दे में उलझा रह कर मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर लेगी..।
अपना घर सब को अजीज़ है...और उससे दूरी एक एक पल के लिए कैसा होता है ये उन लाखों बेघर कश्मीरी पंडितों के अलावा कौन समझता होगा...। ये दर्द मौजूदा सरकार को समझना बेहद जरूरी है....क्यूंकि ये लाखों कश्मीरी हिन्दू परिवार का दर्द है...जिन्होंने भी मोदी जी को सिर्फ इसलिए वोट दिया होगा की उनकी जिंदगी में भी "अच्छे दिन आएंगे"....!!
परंतु अपने घर वापस लौटने की उनकी कवायद दशकों से जारी है..परंतु अब इस पर राजनीतिक रंग चढ़ चूका है तो ये अब तो एक मुद्दा है चुनाव का...जिसमें कश्मीरी पंडितों की आह कहीं धूमिल हो चुकी है...।
अब तो प्रधानमंत्री भी अपने कार्यकाल का तीन साल पूरा कर चुके हैं.. अभी तक तो उस तरफ उनकी नज़रें नहीं दौड़ी हैं....। अब ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा या भारत-पाक के कश्मीर मुद्दे में उलझा रह कर मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर लेगी..।
अपना घर सब को अजीज़ है...और उससे दूरी एक एक पल के लिए कैसा होता है ये उन लाखों बेघर कश्मीरी पंडितों के अलावा कौन समझता होगा...। ये दर्द मौजूदा सरकार को समझना बेहद जरूरी है....क्यूंकि ये लाखों कश्मीरी हिन्दू परिवार का दर्द है...जिन्होंने भी मोदी जी को सिर्फ इसलिए वोट दिया होगा की उनकी जिंदगी में भी "अच्छे दिन आएंगे"....!!
✍अंशु
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