समाजवादियों के सरकार में भूखे मर रहे लोग ---------------------/

(विदेशी बक बक)




विश्व का एक ऐसा देश जो कई बातों को लेकर दुनिया के नज़र में है।एक ऐसा देश जिसने विश्व को सबसे ज्यादा सुंदरी दिया। एक ऐसा देश जिसके पास सऊदी अरब से भी ज्यादा तेल के भंडार है। एक ऐसा देश जिसमें आज भी समाजवादियों का शासन है। वहां के लोग आज भूखे मर रहे हैं वो भी अपने शासन के नीतियों के कारण। दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में बसे इस देश का नाम है वेनेज़ुएला
 एक ऐसा देश जो अमेरिका में होने के बावजूद अमेरिकी राजनीति को नकारता है। एक ऐसा देश जिसमें आज भी समाजवादियों का शासन है। वहां के लोग आज भूखे मर रहे हैं वो भी अपने शासन के नीतियों के कारण। अब तक आप शायद समझ चुके होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में बसे एक देश वेनेज़ुएला की। इस देश का नाम है वेनेज़ुएला। वेनेज़ुएला के वर्तमान राष्ट्रपति हैं मादुरो। मादुरो वेनेज़ुएला के पूर्व राष्ट्रपति (जनता के लिए मसीह पर देश के लिए डच डिजीज) ह्यूगो शावेज के उत्तराधिकारी हैं। 2014 में ह्यूगो शावेज की सत्ता में रहते मृत्यु हो जाने के कारण मादुरो को शासन की बागडोर मिली। लेकिन इसे मादुरो की फूटी किस्मत कहें जो शावेज के कर्मों की सजा भुगत रहे हैं। शावेज ने जिस तरह से वेनेजुएला के लोगो के नजर में वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था की माँ-बहन एक किया उसे मादुरो आज तक नही उबर पाए। वैसे वेनेजुएला की हालत माता जानकी जैसी है जिन्हें जीवन भर संघर्ष ही करना पड़ा। इस देश की आज तक कि हालात कुछ ऐसी ही है। और शायद आगे भी कुछ ऐसी ही रहने वाली है।
पहले स्पेन के कब्जा फिर अमेरिका का दंश
3.5 करोड़ वाला यह देश पर प्रकृति की भी ठीक ठाक कृपा बनी रही। पहले 1522 में इसे स्पेन के अधीन होना पड़ा। वहां के लोगों ने आजादी की एक संघर्षपूर्ण पर असफल कोशिश की। भले ही लंबे अरसे बाद लेकिन अपने तरफ के देशों में सबसे पहले (1830) में इस देश ने आजादी पाई। आजादी के बाद में 1855 में यहां लोकतंत्र आया और साथ में यहां के लोगों के लिए दाल-रोटी का साधन (तेल) भी। परंतु बदकिस्मती ने यहां भी इसका साथ नही छोड़ा। इस समय तक तेल और भी कई देशों में पाया जाने लगा था। फिर भी यहां सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि तभी अमेरिका ने 1877 में तेल का पैदावार बढ़ दिया जिसको देख कर यूरोप और रूस ने भी तेल का पैदावार बढ़ा दिया। इससे घबराया बेचारा इराक नें भी ऐसा ही किया। सबने सोचा ज्यादा तेल बेचने से ज्यादा पैसे आएंगे। लेकिन हुआ ठीक इसके उलट। तेल का खपत पैदावार के अनुसार नही बढ़ी। इससे तेल के दाम में गिरावट आने लगी। लेकिन किसी ने उत्पादन कम नही किया । सब को अपनी अपनी पड़ी थी। कोई इजरायल की मदद की बात करता था तो कोई ‘गरीब देश’ की। लज़ुएला को। इसपर धीरे धीरे कर्ज बढ़ता चला गया। इस बीच वहां के राष्ट्रपति लुसिंचि नें किसी तरह देश को संभाला। फिर 1989 में नई सरकार बनी और राष्ट्रपति बने  पेरेज। उन्होंने चुनाव से पहले जिस IMF को न्यूटन बम बताया उसी की सलाह पर नीतियों में बदलाव किए। सरकारी चीजों को प्राईवेटेज किया गया, पेट्रोलिम पर सब्सिडी काम कर दी गयी, टैक्स बढ़ा दिया गया। इससे महंगाई बढ़ने लगी।  लोगों में रोष उत्पन्न होने लगा। लोग सड़क पर प्रदर्शन करने लगे।  इससे सरकार सकते में आ गयी और इस आंदोलन को दबाने के लिए उसे गोली चलानी पड़ी।
ऐसा माना जाता है कि इस आंदोलन में शावेज की पार्टी ने भी हाथ बटाई थी। जिसके लिए शावेज को जेल भेज दिया गया। यनये कहने में कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि शावेज खुद की योजना के तहत जेल गए। उनका जेल जाने का मुख्य मकसद आम लोगों के दिल में जगह बनाना था। जिसमें वो कामयाव यो गए। चुनाव से नफरत करने वाले शावेज नें अपने एक दोस्त के सलाह पर एक सर्वे कराया और लोगों का रुझान खुद की ओर देख कर चुनाव भी लड़ा एवं जीत भी हासिल की। इस समय शावेज किस्मत वाले थे। यह समय था 2000 ईसवी। इस समय तेल की कीमत काफी बढ़ गयी थी। जिससे शावेज नें तेल पर सब्सिडी फिर से बढ़ दी और खुद को लॉन का मसीहा बनाने के चक्कर में  सरकारी खजाने के पैसे से लोगों को खूब सुविधा दी। और सिर्फ एक ही दिशा में कदम बढ़ाया । बांकी सब कुछ चौपट होता चला गया।  इससे 2010 आते आते परेशानी फिर बढ़ी। 2013 में शावेज की मृत्यु के बाद निकोलस मादरु नें स्थिति सुधारने की एक नाकाम कोशिश की।
वर्तमान में यहां महंगाई और हिंसा  चरम पर है। एक आंकड़े के मुताबिक 2004 आए 2014 तक यहां हिंसा में मारे गए लीगों की संख्या ईरान - इराक़ में आतंकवादी द्वारा मारे गए लोगों से ज्यादा है। लोगों को राशन की दुकान पर दो दिनों तक लाइन में लगने के बाद राशन मिलता है। यहां हर 20 मिनट में एक लोग की हत्या कर दी जाती है। यहां महंगी दर 800 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है। जानकारों के अनुसार यह दर अगले साल बढ़ कर लगभग 1600 फीसदी जा सकती है। वेनेज़ुएला को तेल छोड़ कर सब कुछ बाहर से आयात करना पड़ता है। लोगों में गुस्सा इस कदर बढ़ गया है कि लोग पुलिस पर टट्टी बम फेंक रहे है। शायद ये दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां टट्टी बम का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

 इस हालात की वज़ह

इस सब का जड़ अगर माना जाए तो यहां को समाजवादी सरकार है। जो देन है शावेज की। अमेरिकी राजनीति से खुद को अलग कर इन समाजवादियों नें जो खतरा मोल लिया है। आनेवाले समय में वहां के लिए तवाही का एक संकेत है।  वर्तमान में लोग किसी तरह इस समस्या से निजात पाना चाहते हैं। लोग मदुरई से उम्मीद कर रहे हैं। जबकि मदुरई इस समय पूरी तरह असफल हो चुके हैं। अब वो संविधान में बदलाव लाने के लिए नीति पारित कर रहे हैं। वो वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तरह हो गए हैं। जैसे केजरीवाल काम करने में असफल होने पर मोदी पर काम न करने देने की आरोप लगाते नहीं थकते। उसी तरह मदुरई स्थिति में सुधार लाने की कोशिश करने के विजय अपने विपक्षी और अमेरिका पर आरोप लगाते नहीं थक रहे हैं। उनका कहना है कि विपक्ष और अमेरिका उन्हें काम करने नही दे रहा है। इसलिए वे संविधान का पुनर्निर्माण करेंगे। जो कि बेकार की बातें हैं। विपक्ष और सत्तापक्ष सत्ता हथियाने और बचाने के चक्कर में मसगूल है। दूसरी तरफ जनता भूखी मार रही है।
अब आगे क्या होगा वेनेजुएला का....?

वेनेजुएला अभी बर्बादी की जिस राह पर खड़ा है वहां से इसको वापस पटरी पर लाने के लिए दो रास्ते बचे हैं।  पहला यहां की पुरानी करंसी को बैंन कर नया करेंसी लाये । जो अब शायद संभावना  पूरी होती नही दिख रही। लोगों के दवाब में सरकार को नोटबन्दी का फैसला वापस लेना पड़ा।  लोग पहले से ही काफी परेशान है वो नोटेबन्दी नही रहे चाह  रहे है।  दूसरा यह कि वेनेजुएला अपना हाथ खड़ा कर दे। वो कर्ज चुकाने से साफ इंकार कर दे ताकि बाद में दूसरे बड़े देश इसकी आर्थिक स्थिति में कुछ मदद कर दे। लेकिन एक बात तय है खुद को जनता का सबसे बड़ा सेवक दावा करने वाले वेनेजुएला की जनता को इस कगार पर ला खड़ा किये हैं जिससे उनका जीवन नरकीय हो गया है। और इस नरक से उन्हें उबरने की उम्मीद उन्हें दूर दूर तक नज़र नही आ रही है। इस हालत के जिम्मेदार शावेज की यह नीति वेनेजुएला के लोगों के लिए 'रक्षा में हत्या'साबित हुई।

-अश्वनी भैया

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