मैं.. पटना विश्वविद्यालय..एक सच हूँ आज का...!!

(विचार अड्डा)




मैं हूँ.. पटना विश्वविधालय....! देश की सबसे पवित्र नदी माँ गंगा के तट पर विराजमान  मैं.....बिहार का गौरव माना जाने वाला एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हूँ....! 1917 के  इतिहास की कोख से जन्मा हूँ मैं...जिसके साथ वर्षों के अनगिनत कहानियों ने जन्म लिया और दम तोड़ा...। पर मैं अडिग हूँ..अटल हूँ...आज भी....क्यूंकि उन कहानियों का इकलौता गवाह जो हूँ...। मेरे लिए यह बहुत ही फ़क्र की बात है कि मैं  माँ भारती  का सातवां सबसे प्राचीनतम विश्वविद्यायल हूँ..।

यह सच है कि मेरी आधारशिला अंग्रेजी हुकूमत में रखी गयी थी...। पर यह भी सच है कि देश-विदेश के कई बच्चे मेरी छत्र-छाया में पढ़ कर अपने पंखों को ऊँची उड़ान के काबिल बनाया है...। और आज भी मैं इसी सफ़र में हूँ..। मेरे कई प्रमुख अंग हैं जो बिहार समेत पूरे भारत को सदियों से विश्वगुरु का दर्जा दिलाया है....इन महाविद्यालयों में सायंस कॉलेज(केवल विज्ञान की पढ़ाई), पटना कॉलेज (केवल कला विषयों की पढ़ाई), वाणिज्य महाविद्यालय, पटना (केवल वाणिज्य विषयों की पढ़ाई), बिहार नेशनल कॉलेज (बी एन कॉलेज), पटना चिकित्सा महाविद्यालय, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लॉ कालेज, पटना, मगध महिला कॉलेज तथा वुमेंस कॉलेज पटना सहित 13 महाविद्यालय अवस्थित हैं। 1924 में बिहार कॉलेज ऑफ़ इंज़ीनियरिंग बना.... जो इंजीनियरिंग शिक्षा का यह केंद्र मेरा ही  एक अंग हुआ करता था जिसे जनवरी 2004 में "एन आई टी" का दर्जा देकर स्वतंत्र कर दिया गया...।

इसी साल 2017 में मैंने अपना 100 वर्ष पूरा किया...बहुत लंबा समय होता है ये...चंद  दशक नहीं बिताये मैंने...! शताब्दी काल तक मैंने अपने ज्ञान से इस धरा को सींचा है...।

और अब इतने लंबे अरसे का मूल्यांकन करता हूँ तो मुझे बहुत कुछ बदला सा नज़र आता है...। वक़्त के साथ कई सारे दिग्गजों ने मेरा नाम रौशन किया.."महान गणितज्ञ , वशिष्ठ नारायण सिंह" , वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व  उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव...बिहार के ये तमाम बड़े नेता मेरे छात्र रह चुके हैं...।

आज के सन्दर्भ में जब मैं खुद को देखता हूँ तो मुझमें कुछ नाकारात्मक बदलाव दिखने लगे हैं...। जो  मुझे बूढ़ा और विवश होंने का अहसास दिलाने  लगा है...। अपनी पुरानी उपलब्धियों को याद कर आज के वर्तमान को बदलने की कोशिश में लगा हूँ...क्यूंकि आज का वर्तमान जब कल का अतीत होगा... और आने वाले भविष्य की पहचान वर्त्तमान में होने लगेंगी...तब ये एक सवाल मुझसे ही पूछा जायेगा..कि "क्यों" मैं नहीं बचा सका अपने गौरव को...? आने वाले समय में इस तरह के सवाल का मैं क्या जवाब दे पाऊंगा...? इसी भय ने मुझे आज के लिए और ज्यादा चिंतित कर दिया है...?

इस सन्दर्भ में स्वामी विवेकानन्द की एक बात याद आ रही है जो उन्होंने शिक्षा के मूल अर्थ के सन्दर्भ में कहा था....

स्वामी जी ने  कहा था कि " जो शिक्षा व्यक्ति को जीवन संग्राम लड़ने के योग्य नहीं बना सके वह शिक्षा नहीं। हमें ऐसी शिक्षा और ऐसी शिक्षा पद्धति चाहिए जो हमारी नई पीढ़ी का चरित्र निर्माण कर सके, मानसिक शक्ति बढ़ा सके और देश के युवाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद कर सके। हमें अपनी वर्तमान शिक्षा पद्धति को इस कसौटी पर कसना होगा। "

आज वक़्त है कि मेरे जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों को एक बार फिर सुदृढ़, सबल और सुव्यवस्थि होने का....। क्योंकि समाज और देश के वर्तमान हालात चुनौतियों वाले हैं....। जिसके लिए मुझ जैसे विश्वविद्यालयों को कमान संभालनी ही होगी... और बेहतर भविष्य निर्माण करने की पहल एक नए सिरे से करना होगा....।


विश्वगुरु का गौरव भारत को दिलाना है..!
माँ भारती की धरती पर
शिक्षा का अलख जगाना है..!!
       

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