यार! अब तो इस्तीफ़ा दो
(हस्तिनापुर के बोल)
जब दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आये तब भारत के विवादित और अब वरिष्ठ हो चुके पत्रकार रवीश कुमार ने एक बहुत ही शानदार बात रखी। जब बीजेपी 325 सीटें जीत कर आती है और उसका अध्यक्ष कोयम्बटूर में होता है। जब बीजेपी दिल्ली नगर निगम का चुनाव जीत कर कूद रही थी तब बीजेपी अध्यक्ष बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए पहुँच जाता है। वही यूपी चुनाव के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया जी बीमार हैं और उपाध्यक्ष राहुल गांधी कहाँ है कोई ख़ास ख़बर नहीं।
अरुणाचल प्रदेश में पूरी कांग्रेस सरकार ही पार्टी बदल लेती है। उसका कारण यह है कि दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उनसे मिलने का समय नहीं है। फिर यह बहुत दूर है , वहीं दिल्ली में ही बरखा शुक्ला जैसी कार्यकता से भी मिलाने का समय नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो उन्हें पार्टी कार्यलय में बैठने का सुझाव देती हैं। आख़िर जब इतना आवाज उठ रही है तो इसे नकार तो नहीं जा सकता है। अब जब कांग्रेस में इस्तीफ़ा का दौर शुरु हुआ तो फ़िर राहुल को लेकर चर्चा हो रहा हैं। अभी तो कोई भी बात नहीं दिख रही है कि वे पद से हटने वाले हैं। कांग्रेस को कैसे जिन्दा किया जा सकता है? हम बता रहें हैं और आपकी पहुँच कांग्रेस तक हो तो बात दीजिए। वैसे अभी तो राहुल जी किसी से मिलते तो नहीं।
कांग्रेस में बग़ावत-
कांग्रेस को बग़ावत हो सकती है क्या ? वैसे तो कांग्रेस का इतिहास विद्रोहों से बना हुआ है। वह सिंडिकेट और इंदिरा से शुरू हो कर अजीत जोगी तक का है। लेकिन अगर एनसीपी को छोड़ दिया जाय तो कोई क्षेत्रीय छत्रप तक नहीं बन पाया। लेकिन इस वक्त कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व सबसे कमज़ोर हैं। वही अजय माकन , सचिन पायलट , ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे लोग अपने राज्यों में अच्छा कर रहें हैं। लेकिन कोई भी ऐसा कार्यकर्त्ता या नेता नहीं जो सबको एकजुट रख सके। कांग्रेस ने कभी किसी को भी इतना मौका ही नहीं दिया कि वह अपनी छवि गढ़ सके। वास्तव उनके पास अच्छे क्षमता वाले नेता भी होकर वे नेता नही बन सके। बगावत कोई सही तरीका नहीं होगा। क्यों कि वह गुट भी उसी समस्या से जूझता रहेगा जिससे अभी कांग्रेस जूझ रही है। वह नेतृत्व संकट।
राहुल खुद पद छोड़ दें
अगर राहुल गांधी ख़ुद ही पद छोड़ कर एक नेता के तौर पर कार्य करते है तो यह सबसे सही तरीका होगा। यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है कि ऐसा करने में उनका खुद का अस्तिव समाप्त हो जायेगा। लेकिन अगर उनको आगे करके ही पीछे एक अच्छा टीम कार्य करे जो खुद भी मुखर हो। यह प्रशान्त किशोर जैसी नहीं जो परदे के पीछे काम कर हैं। अब सवाल यह भी है कौन हो जो अध्यक्ष बनाया जाय ? मतलब यह नहीं है कि आप दिग्गी राजा और मोतीलाल वोरा को लेकर चले। ये वो है जिन्हें अब सुझाव टीम में डाल कर उसकी कमान सोनिया को दे देनी चाहिए।
किसे बनाये नया अध्यक्ष
कॉग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं हैं। फिर भी ऐसा नेता चाहिए जो वी पी सिंह और नरसिम्हा राव की तरह गांधी खानदान से ग़द्दारी न करे। क्योंकि सबसे ज़्यादा खतरा इसी का हैं। इसी डर से कांग्रेस राहुल की ही ढोह रही है।
- शशि थरूर- इनके बनाने के कई कारण है। ये वो नेता है जिनकी गांधी परिवार से क़रीबी रही है। जब कांग्रेस युवाओं के बीच अपनी औकात के लड़ रही तब भी थरूर की अपनी अलग छवि हैं। आज कांग्रेस में सबसे ज़्यादा ट्विटर फॉलोवर उन्ही के पास हैं। जो फ़िलहाल 5.2 मिलियन हैं। 16 किताबें लिख चुके शशि थरूर नए विचारों के समर्थक हैं। जो ठीक बीजोपी के उल्ट हैं। जैसे कि निजी जीवन और उसकी स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दे। यही वह विषय है जो बीजेपी और कांग्रेस के बीच अंतर पैदा करती है। वैसे शशि थरूर को अभी जनता ने उतना नहीं परखा हक़ जो कि बड़ी अच्छी बात हो सकती है। ये दक्षिण से आते है जहाँ अभी बीजेपी पैर पसारने की कोशिश कर रही हैं। इस कदम से कांग्रेस इसे वापस अपना गढ़ बना सकती है
- सचिन पायलट -युवा और नए जमाने के नेता हैं। अभी हाल के दिनों में राजस्थान में जम कर काम कर रहें हैं। राहुल के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं। बड़ी खूबी यह है कि इनके पास लोगों से जुड़ने का बहुत ही अच्छा तरीका हैं। अशोक गहलोत के बाद राजस्थान में संघठन में काम करने का तजुर्बा हैं।
- ज्योतिरादित्य सिंधिया- ये वो नेता हैं जो आजकल अपनी वाक पटुता से लोगों को कायल किया है। राहुल गांधी से अच्छी पटती है। जमीन से जुड़े नेता है और जमीनी हकीकत को समझ रखते हैं। मध्य प्रदेश से है तो हिंदी पट्टी में वापसी के रास्ते ख़ोज सकते हैं। जतिन प्रसाद जैस नेताओं का अच्छा उपयोग कर सकते हैं। इन सबमें एक बात सामान्य है कि ये अभी परखे हुए नहीं है
वैसे तो कांग्रेस के वेतन वाले सलाहकार हैं लेकिन मेहनत तो नेताओ को खुद करनी पड़ेगी। राहुल गांधी के पास अभी मौका है कि वे खुद को सिर्फ दाढ़ी कुर्ते वाले पप्पू टाइप नेता से बदल सके। भारत में रहें , चिन्तन के लिए कालाहाण्डी जाएं न कि स्वीडन।
- रजत अभिनय और दिवाकर
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