यह गठजोड़ मोदी को हिला सकता है।
(हस्तिनापुर के बोल)
मायावती दिल्ली से सहारनपुर के एक गांव शब्बीरपुर जाती हैं। वह भी दिल्ली से रोड के रास्ते। मायावाती के साथ ऐसा बहुत ही कम होता है। वह अपने पहले ही बार सरकार से ही उड़नखटोले(हेलीकाप्टर) के लिए जानी जाती थी। इस वक्त सहारनपुर अपने इसे गांव शब्बीरपुर की वजह से ही चर्चा में हैं।यह वही गांव हैं जहाँ 9 मई को जातिय हिंसा हुआ और पैदा हुए नए जवान ' चंद्रशेखर आजाद'। पत्रिका ने स्टोरी में लिखा कि मायावती किसी डरती हैं तो वो हैं ये रावण।
यह बात कितना सच हैं यह बसपा सुप्रीमो मायावती के उस बयान से लगाया जा सकता है जो उन्होंने आज दिया। उन्होंने कहा कि ' आप को कोई पर्दशन करना है तो किसी संघठन के अंदर न करें। बसपा के झंडे के तले करें, अगर कोई कुछ भी कर बताएं।'
यह बात इसलिए की गई क्योंकि लोग बसपा का हाथी वाल झंडा छोड़ भीम आर्मी के तले अपनी आवाज़ दे रहे थे। इसका चमक उनकी आँखों पर तब पहुँची जब कुछ नीली टोपी वाले जंतर मंतर पहुँच गए। और वोट बैंक खिसकता दिखा तो पहुँच लिया। कुछ महान राजनीति के पंडितों का मानना है कि यह पूरा कांड बसपा द्वारा प्रायोजित है। जो मायावती अपना पहला चुनाव इसी जिले लड़ी और कभी बसपा इस पर सफ़ाया किया। लेकिन इस चुनाव में सात की सातों सीटें हार गई।
- इस आंदोलन के राजनीतिक महत्व-
यह अंदोलन का असर राजनीति में बहुत कुछ कहती है। बसपा का चुनाव हारने के बाद उसका अपनी राजनीति दलितों से कुछ भटक सी गई। वह मुस्लिमों और दलितों की ओर मुंह मारने लगी। चूँकि बसपा सिर्फ़ यूपी की दलित राजनीति का चेहरा नहीं हैं। बल्कि आरपीआई और उदित राज वह कभी नहीं बन सके। फ़िलहाल ये लोग सत्ता का टोंड करने में लगे है। वही कांग्रेस कब तक पीएल पुनिया के सहारे कुदेगी। इस दलित राजनीति में बड़ा गैप हो गया था ।जिसे भरने के लिए कई नेता उभर रहें है। इन्हीं में से रावण और जिग्नेश मेवाणी । ये दोनों ये बात खुल कर स्वीकार्य करते हैं कि वे राजनीति करने आये हैं। मेवाणी तो साफ़ साफ़ कहतें है कि 200% वे राजनीति करने आये हैं। उन्हें सिर्फ़ प्रतिनिधि नहीं सत्ता चाहिए।
इसमें एक और पहलू भी उभर कर आ रहा हैं। वह मुस्लिम और दलित गड़जोड़ की। अगर आप जंतर मंतर और देखें तो वह आपको उमर खालिद भी नज़र आ जाएंगे। वहाँ वह लाल सलाम छोड़ कर नीला सलाम बोल रहें हैं। वही जब बात ऊना में हुए दलित उत्पीड़न हुई तो वह गाय से जुड़ी थी। यह मुद्दा मुस्लिमों को भी उतना ही प्रभावित करती है। अगर आप जिग्नेश की तकरीरें देखें तो उसमें लगतार आरएसएस को निशाने पर रख मुस्लिमों को साधने की कोशिश हैं। यहाँ तक की आरएसएस में शामिल दलितों को मुस्लिमों से तुच्छ बताने में कोई गुरेज़ नहीं ।
- नये वाम विपक्ष का उदय -
अगर आप देखें तो भारत में वाम मोर्चा समाप्त हो रहा है। बंगाल से लेकर केरल तक बहुत ही अच्छी स्तिथि नहीं कही जा सकती है। लेकिन एक और विपक्ष उभर रहा है जो विशुद्ध रूप से वाम विचार वाले नहीं है पर मिलते जुलते हैं। जो सरकारी मशीनरी का उपयोग मुफ्त शिक्षा , भोजन , माकन और ज़मीन आवंटनों की बात कर रहें हैं। यह बात आप आम आदमी पार्टी में भी देख सकते है और इन नए उभर रहे नेताओं में। अगर आप देखें तो गुजरात में भूमि आवंटन को लेकर एक आंदोलन चल रहा है जिसके नेता हैं जिग्नेश मेवाणी। कुछ यही बातें उमर खालिद और कन्हैया जैसे शुद्ध वाम विचार वाले भी कर रहें हैं। आम आदमी पार्टी जो कि स्थिर है और उसकी अपनी एक आधार है। वह इनको जोड़ सकती है। वहीं मेवाणी तो आप के गुजरात में प्रवक्ता भी हैं। जब सब लोगों को मोदी के सामने एक विपक्ष का अभाव दिख रहा तब ये काम कर सकते हैं। थोड़ी परेशानी राष्ट्रवाद को लेकर हो सकती है। यह वह मुद्दा है जो इस समय बड़े हिस्से को अपने साथ जाति से ऊपर जोड़ रखा है। अगर आप विज्ञापनों पर गौर करें तो इसके हनक और औकात पता चल जाएगी। इसी मुद्दे पर खालिद और लाल जैसे नेता इसे कमज़ोर बना सकते हैं। वार्ना हम एक नए गठजोड़ और बीजेपी विरोध के बड़े चेहरे को देख सकते हैं।
-रजत अभिनय
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