कहीं ब्रिटेन चुनाव में मोदी और ट्रम्प तो नहीं लौट रहे।

(विदेशी बक बक)




ब्रिटेन में होनेवाले 8 जून को होनेवाला आम चुनाव कई मायनों में दुनिया के नजर में बना हुआ है। एक ओर जहां यह आम चुनाव समय से पहले हो रहा है वहीं दूसरी ओर इस चुनाव में दक्षिणपंथियों की हवा भी दिख रही है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने अपनी राजनीतिक स्थिति को और मजबूत करने के लिए समय से पूर्व चुनाव कराने का जुआ खेल रही हैं। अगर कुछ दिन पहले की बात की जाए तो वे इस चुनाव के पक्ष में बिल्कुल नहीं थी लेकिन फिर अचानक उन्होंने ने यू टर्न लेते हुए चुनाव कराने के पक्ष में आ गयी। उनके अनुसार ब्रिटिक्स के समझौते को सही ढंग से आगे बढ़ाने के लिए उनका पक्ष और मजबूत होना चाहिए। वर्तमान समय में ब्रिटेन में राजनीतिक स्थिरता नहीं है। उन्हें उम्मीद है कि चुनाव के बाद वह स्थिरता आयेगी। चुनाव में अपने जीत को लेकर आस्वस्त और अपनी स्थिति मजबूत बनाने को लेकर थेरेसा मे ने कहा कि चुनाव के लिए यह समय सबसे उपयुक्त है। एग्जिट पोल भी उनका बहुमत स्पष्ट दिखा रहा है।


इस चुनाव की सबसे रोचक बात है वहां के राजनैतिक पार्टियों द्वारा प्रस्तुत किये गये चुनावी घोषणा—पत्र। लेबर पार्टी ने जहां अपने चुनावी घोषणा—पत्र में एक दावा किया है कि अगर वो सत्ता में आये ब्रिटेन में जंक फूड का विज्ञापन पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जायेगा। क्योंकि जंक फूड के कारण लोग मोटापा का शिकार हो रहे हैं जो सेहत के लिए हानिकारक होता है। इसलिए वे वहां के लोगों को एक स्वस्थ जीवन देना चाहते हैं। वहीं यूके इंडिपेंटेंस पार्टी ने अपने घोषणा—पत्र में बुर्का बैन को शामिल किया है। यूके इंडिपेंडेंस पार्टी एक धूर दक्षिणपंथी पार्टी मानी जाती है। ब्रिटेन जैसे उदारवादी देश में अगर इस तरह की घोषणा सामने आती है तो स्वाभाविकत: ये दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करेगी। भले ही अभी इस पार्टी से वहां के वर्तमान सरकार को कोई डर नहीं हो। लेकिन निकट भविष्य में अपने दक्षिणपंथी विचारधारा के कारण ये पार्टी ब्रिटेन की राजनीति को पलट सकती है। यूनाईटेड किंगडम शुरू से ही प्रवासियों को लेकर शुरू से ही लिबरल रहा है। जिसका परिणाम आज वहां सबसे ज्यादा प्रवासी मुसलमान है। पाकिस्तान और सीरिया जैसे कई मुस्लिम देश के लोग वहां बहुत तेजी से बस रहे हैं जिससे वहां मुसलमानों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। अगर हम इतिहास को लेकर देखें तो यूरोप में क्रिश्चियनिटी और मुस्लिमों के बीच संघर्ष साफ तौर पर दिखता है। अभी जो हालात बन रहे हैं उससे इतिहास के दोहराने की संभावना बिल्कुल साफ नजर आ रही है। ब्रिटेन में जहां एक तरफ कंजरवेटिव (राष्ट्रवादी पार्टी) है तो दूसरी तरफ लेबर पार्टी (वामपंथी)। अगर देखें तो ये दोनों पार्टी का रूख बढ़ते इस्लाम के तरफ कुछ खास नहीं है। क्योंकि ये दोनों उसे अपना पूरक ही मानते हैं। ऐसे में वहां के लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए निश्चितत: दक्षिणपंथी की ओर रूख  कर सकते हैं। वैसे में आनेवाले समय में यूके इंडिपेंडनेस पार्टी वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल हो सकती है। हम थोड़ा पीछे जायें तो अमेरिका और यूरोप ने भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (तत्कालीन मुख्यमंत्री) को सिर्फ इसलिए वीजा की अनुमति नहीं दिया था कि मोदी मुसलमान विरोधी है। लेकिन आज अमेरिका और यूरोप जैसे शक्ति उसी का अनुसरण कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आज मुसलमानों के विरूद्ध जो रवैया अपनाए हुए हैं वो जगजाहिर है।
हाल ही में इंग्लैंड के एक शहर मैनचेस्टर में एक दर्दनाक आतंकी हमला हुआ, जिसमें लगभग 20 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए। उस आतंकी हमले का सीरिया के इंग्लैंड में रह रहे सीरया के एक नागरिक से है। आज एक अखबार क रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में 28 हजार से ज्यादा आतंकी रह रहे हैं। लगभग 60—70 साल के लंबे अंतराल के बाद ब्रिटेन के सड़कों पर सेना मार्च कर रही है। यह ब्रिटेन के लिए काफी चिंताजनक है। मैनचेस्टर के इस आतंकी हमले ने वहां के लोगों को झकझोरा है। अगर ऐसे ही कुछ और हमले वहां हुए (जिसके होने की संभावना मानी भी जा रही है) तो कंजरवेर्टिव पार्टी को निश्चितत: ही इसका घाटा होगा। यूके इंडिपेंडेंस पार्टी ऐसे में वोटों का  ध्रुवीकरण करने में सफल हो सकती है।
अगर हम भारत की ही बात करें वर्तमान में जो स्थिति ब्रिटेन की है वैसे ही कुछ हालात आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व भारत की थी। उस समय इस मुद्दे को उठाया था भारत के दक्षिणपंथी पार्टी जनसंघ ने जो आज वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के नाम से जानी जाती है। आज माहौल के अनुसार भारत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ब्रिटेन की राजनीति भी आज ठीक वैसे ही दिख रही है। एक समय में भारत के जिस दक्षिणपंथी सोच का अमेरिका और यूरोप विरोध कर रहे थे आज उसी के नक्शे कदम पर चल रहे हैं उसमें ब्रिटेन भी शामिल है। इस लहजे से यह कहा जा सकता है कि कभी विश्वगुरू माना जाने वाला भारत धीरे—धीरे अपने आप को विश्वगुरू के पटल पर उतर रहा है।

- अश्वनी भैया

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