वे तीन नेता जिनको मोदी के खिलाफ भविष्य बताया जा रहा है।
(हस्तिनापुर के बोल)
भारत की राजनीति में आय दिन कोई न कोई नया चेहरा एक नए मसले के साथ तो आता ही रहता है लेकिन इस उठापटक वाली राजनीति के दौरान कुछ ऐसे युवा चेहरे भी सामने आए जिन्होंने अपना नाम यहाँ दर्ज ही करा लिया।इनके सपोटर्स के साथ-साथ अपोजिशन भी कई थे, और अपने विचार और आन्दोलन से हर जगह सुर्ख़ियों में बने रहे।
तो आज कुछ ऐसे ही युवकों के बारे में बात करेंगे,जिनकी उपस्थिति मुझे क्या, आप सभी को याद होगी... जिन्होंने कही न कही सिस्टम की नाक में दम कर दिया है और आने वाले समय मे भी इनकी बेबाक उपस्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। तो इन युवकों की लिस्ट में सबसे पहले बात करते हैं.
आज कल छाए हुए हैं चंद्रशेखर.......
चंद्रशेखर, जो कि छुटमालपुर के शब्बिरपुर के एक योग्य वकील हैं..जहां इस महीने के शुरुआत मे संघर्ष हुआ था और 2011 तक टॉप लॉयर बनने के लिए अमेरिका जाने की योजना में थे ताकि उच्च शिक्षा ले सके। लेकिन सहारनपुर अस्पताल में जब वो अपने बीमार पिता से मिलने गए तो उन्हें यहाँ के दलितों की परेशानियों के बारे में पता चला..जो की उनके ही समुदाय के हैं। तब वे अमेरिका जाने की बात को भुलाकर दलित कार्यकर्ता बनने का सोचने लगे। फिर 2015 में उन्होंने भीम सेना एकता मिशन का गठन किया। तब 9 मई के बाद, जब उन्हें सहारनपुर में महापंचायत रखने की मंज़ूरी नही मिली तो वे अपने समूह को लेकर सड़कों पे आ गए। सब ने हिंसावादी रूप से एक पुलिस पोस्ट क साथ दो दर्जन से ज्यादा वाहनो को आग लगा दी।
पुलिस का मानना है कि 5 मई को होने वाले संघर्ष के बाद चंद्रशेखर सन्देश भेजकर व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।इनका एक विडियो बहुत तेज़ी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमे वे शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की तरह बोल रहे हैं। इसमें उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर अपनी कौम के लिए मरना जानता है तो मारना भी जानता है। और लगभग दो हफ्तों के लिए बड़े पैमाने पर रखने के बाद, चंद्रशेखर नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर भीम सेना के बैनर के तहत दलित प्रदर्शनकारियों की एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए देखा गया था। हालाँकि जंतर-मन्तर पर एक रैली को आयोजित करने के लिए मना करने के बावजूद भीम सेना अपनी योजना के साथ आगे बढ़ गई और करीबन 5000 लोगों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए अपनी कुछ मांगे भी रखीं।
अब यहाँ दूसरा नाम आता है हार्दिक पटेल का....
हार्दिक पटेल, जो अहमदाबाद,गुजरात के निवासी हैं, ने अपनी शिक्षा सहजानंद कॉलेज, अहमेदाबाद से पूरी की। हार्दिक ने सांतवी कक्षा होते ही अपने पिता के साथ भूमिगत पानी के कुओं में नल लगाने के व्यापार में सहायता करने लगे थे। 2010 में वे अपने महाविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव के पथ के चुनाव में खड़े हुए और निर्विरोध निर्वाचित भी हो गए और फिर 2011 में वे समूह से भी जुड़ गए। हार्दिक पटेल ने एक पाटीदार अनामत आन्दोलन समिति का निर्माण किया था।
ये तो थी इनकी अतीत की बातें...अब आजकल जो खबर चर्चा में है, उसके बारे में बसत करते हैं..
ये तो थी इनकी अतीत की बातें...अब आजकल जो खबर चर्चा में है, उसके बारे में बसत करते हैं..
हार्दिक ने अपने 50 पाटीदार अनामत आन्दोलन समिति के साथ सिर मुड़वाया है जिसपर उन्होंने कहा था कि पिछले दो वर्षों में उनके समुदाय के सदस्योँ पर सरकार द्वारा किये गए अत्याचार को उजागर करने के लिए उनलोगों ने ऐसा किया है और उसके बाद न्याय मांगने क लिए वे न्याय यात्रा पर निकल पडे।इतना ही नही कुछ दिन पहले, हार्दिक ने अपने आगे के इरादों को भी स्पशट किया था। हार्दिक ने फिर से आन्दोलन शुरू करने की घोषणा की थी, गुजरात में आरक्षण की मांग को लेकर और साथ ही अपना मुख्या लक्ष्य भी बता दिया, जो कि आगे होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराना है।
अब इन दोनों के बाद नाम आता है, कन्हैया कुमार का...
यह वो नाम है, जो पिछले साल हर किसीके जुबां पर ज़रूर रही होगी। बेगुसराय, बिहार के कन्हैया कुमार ने अपनी पढ़ाई जेएनयू से अफ्रीकन स्टडिज़, स्कुल ऑफ़ इन्टरनेशनल स्टडिज़ से की। वे अखिल भारतीय छात्र परिषद के नेता हैं लेकिन उनपर देशद्रोह का मुकदमा भी चल चूका है, हालांकि उसमे उनकी नियमित ज़मानत मंजूर हो गई थी।
फरवरी 2016 में, उनके और उनके साथियों पर जेएनयू में संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी कन्हैया में कोई डर नही दिखा। उन्होंने फिर आज़ादी की बात दोहराई- आज़ादी सामन्तवाद से, गरीबी से, भुखमरी से, जातिवाद से। उनके भाषण से जहां कई युवा प्रेरित हुए तो कई ने देशद्रोही माना। कई विशेषज्ञों ने तो यह तक कहा कि कन्हैया का राजनितिक भविष्य उज्वल होने वाला है...
फरवरी 2016 में, उनके और उनके साथियों पर जेएनयू में संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी कन्हैया में कोई डर नही दिखा। उन्होंने फिर आज़ादी की बात दोहराई- आज़ादी सामन्तवाद से, गरीबी से, भुखमरी से, जातिवाद से। उनके भाषण से जहां कई युवा प्रेरित हुए तो कई ने देशद्रोही माना। कई विशेषज्ञों ने तो यह तक कहा कि कन्हैया का राजनितिक भविष्य उज्वल होने वाला है...
इन सब के बाद भी कन्हैया वैसे ही रहे और अपनी निर्भयता दिखाते हुए कहा था कि वह पीएम मोदी के दबाव में नही आने वाले और उनके नही बल्कि अम्बेडकर के रास्ते पर चलेंगे चाहे इसकी कितनी ही बड़ी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े।
....तो अब यह दखना बेहद ही दिलचस्प होगा कि क्या ये है वो पीढ़ी जो आगे नेतृत्व लेने वाली होगी।।
--प्रियंका
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