जब सांसद जी की जाति बदल गई.............

                         (हस्तिनापुर के बोल)


आज अनारक्षित जातियों की स्थिति दयनीय होती जा रही है।
जहाँ इस कोटि के लोग तथाकथित आरक्षितों के नाम से नाक मुह सिकोड़ते थे। आज वही स्वार्थवश उन्ही कोटि का नाम इस्तेमाल कर पद   प्रतिस्ठा प्राप्त करने से नही चूक रहे। अपने जात के गौरव गाथा का गुड़गान करने वाले आज अन्य श्रेडी के सरनेम लेने को लालायित हुए जा रहे है। एक तरफ आरक्षण के विरुद्ध नारे लगाए जा रहे है ,अन्य जाति पर आरोप -प्रत्यारोप किये जा रहे है। क्या इसका यही उपाय रह गया है कि अपनी जाति की पहचान छुपा लिया जाए।न जाने नेतागण छोटे बड़े आलाकमान अपने जाति के ऊपर अन्य जाति का तगमा लगाए शान से घूम रहे है। यहाँ चाहो किसी श्रेणी में सरीक हो जाओ। जब इच्छा अपनी श्रेणी में प्रवेश कर जाओ पूरा मस्तिष्क ही इसी जद्दोजहद में घूमता रहता है कि फलाँ है कौन ? किसी कोटि का ? किस श्रेणी का?  मैं आरोप नही लगती किसी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष परंतु असमंजस तो जरूर है जहन में कि क्या आवश्यकता है अपनी पहचान को स्वार्थवश विलुप्त किये जाने की।
इसी संवेदनात्मक पहलुओं पर नजर दौड़ते आज बात हो रही है मध्यप्रदेश  के लोकप्रिय बेतुल निर्वाचन क्षेत्र की  जहाँ 2009 से बीजेपी
सांसद ज्योति ध्रुवे की जिनके जाति प्रमाण पत्र पर सवाल उठ रहे है या यों जानो कि उनके जाती प्रमाण पत्र के फ़र्जी होने के दस्तावेजों के तहत मध्यप्रदेश सरकार को राज स्तरीय छानबीन समिति ने उनके आदिवासी होने के प्रमाण पत्र को ख़ारिज कर दिया है।श्रीमती ध्रुवे वहां प्रथमतः 2009 के लोकसभा चुनाव के जीती, उस वक्त भी उनकी जातीयता पर उंगलिया उठी थी परंतु उनके मुद्दे को जांच समिति के खाली डिब्बे में डाल दिया गया। परंतु 2014 के चुनावी जीत के पश्चयात तात्कालिक समय में पुनः प्रमाण पत्र के सत्यता पर जांच कमेटियों का सामना करना पड़ा। उन्हें इस आरोप से नवाजा गया कि वो आदिवासी जाति की नही है।जबकि बेतुल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र आदिवासी आरक्षित है। जाँच विभाग के अनुसार ज्योति ध्रुवे के पिता पवार जाति के थे परंतु उन्होंने अपने दस्तावेजों में मातृपक्ष को आधार बनाया है।उनकी शादी प्रेम ध्रुवे से हुई थी जो कि गौड़ आदिवासी जाति से ताल्लुक रखते थे।उन्हीं के जाति के आधार पर उन्हें 31 अक्टूबर 2002 को बेतुल के भैसदेही प्रखंड से जाती प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ परंतु इस पर भी सवाल खड़े हो रहे है।


यूँ तो भारतीय सभ्यता संस्कृति की जहाँ तक बात है एक स्त्री की पहचान पति से होती है। विवाह उपरान्त एक स्त्री की पहचान उसके पति से होती है। पति के सरनेम के आधार पर विवादों उपरान्त स्त्री का सरनेम परिवर्तन करने का आधिकार है।परंतु इस मोड़ पर सवाल उठ रहे है क्योंकि श्रीमती ज्योति ध्रुवे के जाति प्रमाण पत्र 1984 के रायपुरा के आदिवसी विभाग से उनके मातृपक्ष के आधार पर निर्गत किया गया। जब तक वे अविवाहित थी जिसे विवाहों प्रान्त भैसदेही में पुनः सत्यापित कर जारी किया।
इन सारे जांचों के दौरान संतुष्टिजनक साक्ष्य  मिले ना संसाद महोदया ने कोई सटीक प्रतिक्रिया दी। इस तरह की घटना विरले नही है, अक्सर देखने को मिलते है जो या तो साक्ष्य प्रमाण ना मिलने के कारण पेपर में ही दबकर धूलधूसरित हो जाते है।या इन बातों की  तवज्जो ही नही दी जाती। इस तरह की घटनाओं से आहत तो जनता होती है।जिनके मन मे उन तमाम कार्यालयों,निगरानी विभाग, प्रशासन के प्रति सवालिया निशान खड़े होते है कि आख़िर सत्यता या सरोकता किसमें तलाशा जाए इसका जवाब ना मीडिया के पास है ना ही आम नागरिक के पास सभी दर्शक मात्र है। नित नई कहानियों के आरम्भ और परक्षेप के लिए।

रीता the mam

Comments