यही कलियुग है

(विचार अड्डा)




"यही कलियुग है।"
    जब बहने लगे बेगुनाहो का खून बेवजह और हत्यारे भी अपने हो तब समझलेना---" यही कलियुग है।"

हमारे आदर्श और इमानदारी, देश भक्ति और निष्ठा, जब बौनी होने लगे
तब समझ लेना--- यही कलियुग है।"
       पानी से सींचने वाली खेतो में  जब खून खुनो की धारा बहे ,
रक्षा करने वाले ही ताबूतों में बंद असफल वापस आने लगे
  तब समझ लेना--- यही कालियुग है"

अपने घर के भेदिए ही जब
अपने को बर्बाद करने लगे और
बेबजहो के नारे,बेबजहो की भीड़
जब एक इंसान भगवान बनने लगे
तब समझ लेना---" यही कालियुग है"



कहने को यह महज एक कविता भर है।मगर जनाब जरा इसके मर्म को समझने की भी कोशिश करिये । वैसे गलती हमारी नही है ,यह जो हमारा देश है जिसे हम भारत कहते है----इसने काफी कुछ स्वतंत्रता हमे दे रखी है जिसे हम बिना कुछ सोचे समझे बड़ी आसानी से अपने मतलब के लिए जी रहे है। हम आज के ' मोर्डेन जनरेशन' को फ़िल्मो का  बड़ा शौक चढ़ा रहता है। किसी फ़िल्म में यदि हीरो विलेन की जमकर ठुकाई करता है तो हमें बड़ा मजा आता है।सिनेमा हॉल में तालियों और सीटियों की बौछार लगा देते है और खुश तो ऐसे होते है जैसे कोई  जंग जीत ली हो ।
लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं है इन भाइयों से ।दरअसल हम भारतीय है भाई! और यहाँ स्वतंत्रता का अधिकार है जिसे जब जो करना है करे---रोकने वाला मैं कोन होता हूँ? भाई साहब यदि आप नाराज न हो तो मैं यहाँ यह बताने की कोशिस कर रहा हूँ की जिसे भारत ने हमें इतनी आजादी प्रदान की है ,उनके लिए हम क्या कर रहे है??
   
देखिए पहले ही कहा है, नाराज मत होना। ठीक है मैं आज के विषय को बताता हूँ । आज हमारे देश के माता- पिताओं की अपने संतानों को लेकर सबसे पहला सपना होता है की वो बड़ा हो कर डॉक्टर या इंजीनियर बने क्योंकिइकहने को यह महज एक कविता भर है।मगर जनाब जरा इसके मर्म को समझने की भी कोशिश करिये । वैसे गलती हमारी नही है ,यह जो हमारा देश है जिसे हम भारत कहते है----इसने काफी कुछ स्वतंत्रता हमे दे रखी है जिसे हम बिना कुछ सोचे समझे बड़ी आसानी से अपने मतलब के लिए जी रहे है। हम आज के ' मोर्डेन जनरेशन' को फिल्मो का  बड़ा शौक चढ़ा रहता है। किसी फ़िल्म में यदि हीरो विलेन की जमकर ठुकाई करता है तो हमें बड़ा मजा अत है।---सिनेमा हॉल में तालियों और सीटियों की बौछार लगा देते है और खुश तो ऐसे होते है जैसे कोई  जंग जीत ली हो ।
लेकिन मुझे कोई आपति नही है इन भाइयों से ।दरअसल हम भारतीय है भाई और यहाँ स्वतंत्रता का अधिकार है जिसे जब जो करना है करे---रोकने वाला मैं कोन होता हूँ? भाई साहब यदि आप नाराज न हो तो मैं यहाँ यह बताने की कोशिस कर रहा हूँ की जिसे भारत ने हमें इतनी आजादी प्रदान की है ,उनके लिए हम क्या कर रहे है??
   
देखिए पहले ही कहा है, नाराज मत होना! ठीक है मैं आज के विषय को बताता हूँ । आज हमारे देश के माता- पिताओं की अपने संतानों को लेकर सबसे पहला सपना होता है की वो बड़ा हो कर डॉक्टर या इंजीनियर बने क्योंकि इस क्षेत्र में नेम और फेम दोनों मौजूद रहता है। यह सच्चाई भी है कि प्रत्येक इंसान का यह सपना होता है की वह अपने जीवन में बहुत सारा पैसा कमाए ,आलीसान बंगला और ढेर सारे नौकर चाकर हो और खुशियां उसके कदम को चूमे। लेकिन जरा सोचिए !क्या हमारे देश के सैनिको को ऐसी जिंदगी नसीब होती है? यदि वह बहादुर पहरेदार है जो दुर्गम सर दुर्गम और विषम परिस्थियों से भी लड़कर हमारी हिफाजत करते है।
        दोस्तों आज का मेरा लेख उनकी जवान सैनिकों के ऊपर है तथा उन्ही के कुर्बानी को समर्पित है।
     सोचिए जब हम अखबारो या टी०वी● पर ताबूत में पड़े सैनिकों को देखते है तो क्या महसूस करते है---क्या वो मरा हुआ सैनिक आपको या आपके परिवार वालों को जनता था? या फिर पडोसी को? सचमुच कितने महान होते है यह सैनिक जो अपना जीवन ऐसे इंसान के लिए कुर्बान कर देता हूँ। जिसे वह जानता तक नहीं। अपने घर में मातम दे कर भी हमारे घरों में खुशियों की दीपक को जलाए रखता है---- ऐसे सैनिक सचमुच में भगवान ही तो है,उनकी बहादुरी को शत-शत-नमन ।
               लेकिन आज मुझे जो बात परेशान कर रहा है वह है देशके अंदर ही छिपे दुश्मनो से जो अपने हो कर ही अपनों के खून को बहाने में तुले हुए है।
मैं बात कर रहा हूँ हमारे देश में फैले माओवादी के बारे में।जो आए दिन अपने बेमतलब के इरादों के चलते अपने ही भाई का खून बहा रहे है।यदि हमारे जवान बिना लड़ाई लड़े इन सभी के चुंगुल में फंस कर अपनी जीवन को खो देते है तो बड़ा अफ़सोस होता है।अभी हाल ही में किए सर्वे पर नजर डाले तो CRPF की 76 जवानों की एक टुकड़ी को 24अप्रैल के दिन छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में लगभग 300 से ज़्यादा माओवादी ने घेर कर हमला कर दिया जिसमें लगभग 25 जवान मारे गए।
             यहाँ मैं यह बताना चाहता हूँ की भैया कब बदलेंगे हम??कब छोड़ेंगे अपने अंदर से हिंसा के  को कब बंद करेंगे ?रावण राज को बता दूँ की भले ही सर्वे आज बता रही है की अब पहले की अपेक्षा माओवादी का आतंक कम हुआ है और हमारा प्रशासन उनके कुनबो को काफी हद तक नष्ट कर दिया है लेकिन एक बात हमें हमेशा याद रखनी होगी की हमारे जवान (सैनिक) हमारे लिए बेहद खास है और हमें उनकी  बेनामी मौत पसंद नहीं ।
                     
-  अरुण रघुरती

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