ये पुरुष भी इंसान होते हैं क्या ?

(करतूत)


आज खुलेआम महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। आखिर बलात्कार क्यों और कब तक !

पिछले दिनों से लगातार बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं। इन खबरों ने क्या सचमुच हमारे दिल दिमाग को विचलित किया है  ?

"बलात्कार" शब्द लिखते हुए एक दर्द रिसता है मन में, एक अआवाज़ आती है आत्मा से, कहाँ है स्वतंत्र आज की स्त्री ?कितनी स्वतंत्र है ? कहाँ से शुरू करेंं हम महिलाओं के हक़ की असली लड़ाई ? उसकी अपनी लूटी जाती है देह ,छल्ले छल्ले किए जाते है कोमल मन। बलात्कारी सिर्फ अपनी यौन भुखमरी मिटाने के लिए क्रूरता से औरतों का अंग भंग कर देता है। ऐसी परवरिश से वह खुद को औरत का मालिक समझने लगता है।


आज फिर से एक बार महाराष्ट्र के लातूर जिले में इंसानियत को शर्मसार करने वाला हैवानियत भरा मामला सामने आया है। आज फिर से लूटी गई किसी की इज्ज्ज़त ,आज फिर से किसी की गरिमा को बल्कि पूरे समाज की गरिमा को रौंदा गया। हवस के भूखे  भेड़ियोोंं ने आज फिर नोच खाया किसी को ,और उन में ज़रा सी भी इंसानियत न बची तो पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में पत्थर मारे और कितना नीचे गिरेंगे ये दरिंदे वहशी जानवर महिला के अंग और आत्मा को तो क्षति पहुंंचाई ही साथ ही उसके प्राइवेट पार्ट में रॉड डाल दिया।मदद के लिए कोई नहीं सुनसान जंगल में महिला चीखती चिल्लाती रही और उसे उसी हालत में मरने को छोड़ कर फरार हो गए दरिंदे। इन पुरुषों ने महिलाओं को अपने बाप की चल संपत्ती समझ रखा है ,जब चाहे उसकी गरिमा को भंग करे।                                                    

न यह शब्द नया है और न ही यह काम नया, बस हर बार पीड़िता नई होती है और पशुता की सीमाओं को लांघने वाला पुरुष नया होता है। एक स्त्री पर किसी पुरुष का जबरन शारीरिक अत्याचार या इससे भी कहीं और ज्यादा........

इंसानियत की यह कैसी परीक्षा देनी होती है एक स्त्री को, इंसान के नाम पर पशु बना व्यभिचारी को कुछ सजा के बाद समाज उसको स्वीकार कर लेती है और बिना किसी गुनाह के सारी उम्र के लिए गुनाहगार बना दिया जाता है स्त्री को!

दरअसल यह कानून व्यवस्था से ज्यादा समाज और संस्कृति का मसला है। इसकी जड़ेंं पुरुषवादी , सामाजिक संरचना या पितृसत्ता में धंसी हैंं। ऐसे समाज में बच्चों के परवरिश की प्रक्रिया लिंग भेद भाव पर टिकी होती है जिसकी वजह से बचपन में ही बलात्कारी मानसिकता के बीज बोए जाते हैंं ।युवाओं के दिमाग में कहीं न कहीं यह बात डाल दी जाती है कि स्त्री एक वस्तु है, एक चीज़ है जिस पर आप कब्ज़ा कर सकते हैंं!

प्रकृति ने स्त्री को कितना खूबसूरत वरदान दिया है। स्त्री शरीर को लेकर बने सस्ते चुटकुले से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर बेहूदा कमेंट तक में सिर्फ पुरुषों की घटिया सोच है। न तो सोच बदली है और न समाज ,अभी

भी हालात 70% शर्मनाक ही हैं।

महिलाओं पर हो रहा अत्याचार न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी नष्ट कर देता है। यह शरीर के साथ आत्मविश्वास को भी कमजोर कर देता है।

कहने को तो भारत को लड़कियों के लिए सुरक्षित बना दिया है। हर दो मिनट में एक महिला पर अत्याचार और हर सातवें मिनट में एक लड़की छेड़ी और परेशान की जाती है।

ये कैसा सुशासन है सरकार का ,कैसे लड़कियाँ सुरक्षित है भारत में ? न जाने कब लड़कियाँ खुद को सुरक्षित  महसूस करेंगी।कब सरकार के वादे सच होंगे।

समाधान की दिशा में पहल अब स्त्री को ही करनी होगी जिसे प्रकृति ने शक्ति का भी रूप दिया है। अगर इस देश का कानून रूस के कानून की तरह बलात्कारियों को नपुंसक बना देने का साहस नही दिखा सकता तो कम से कम स्त्री को इतना ताकतवर बनाए की वह स्वयं बलात्कारी को दंड दे ,और जब वह  अत्याचारी को दंड दे तो उसके हिस्से में आई क़ानूनी जाँच का मानवीय दृष्टि से मूल्यांकन हो, क्या ऐसा हो सकेगा  ........?

            दिवाकर 

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