क्या अब कोर्ट किसान आत्महत्या रोक पाएगी?

( मुद्दा )




यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी, "अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत" अर्थात जो होना था वो तो हो गया, उस पर अब पछताने से क्या फायदा... लेकिन इसका मतलब अब यह भी  कि उसी की गई गलती को ही भूल जाओ, बल्कि उस गलती को ध्यान में रखकर आगे और सुधार करना ही  उचित है और समझदारी भी। लेकिन यह बात ना जाने हमारी सरकार को यह अब कब समझ आएगा कि ख़ुदकुशी के बाद मुआवजा देने का क्या फायदा, जब वह खुद जीवित ही नहीं होगा। और यही बात सुप्रीम कोर्ट  भी केंद्र सरकार को समझाने में लगी है कि सरकार को लोन के प्रभाव को कम करने  की ज़रूरत है ना कि ख़ुदकुशी के बाद मुआवजा देना समस्या का हल है।

यह बात शुरू हुई जब गुजरात में किसानों की ख़ुदकुशी को लेकर एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई है। और उस याचिका में यह भी कहा गया है कि किसानों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को भी लागू नहीं किया जा रहा है। तो इस पर सुप्रीम कोर्ट ने इसका दायरा बढाते हुए सभी राज्यों और केंद्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट सरकार के बिलकुल खिलाफ नही है लेकिन जहां किसानों के आत्म ह्त्या के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं तो ऐसे हालातों को देखते हुए कोर्ट ने सरकार को यही निर्देश दिया है कि अब सरकार को किसानों के लिए तैयार कल्याण योजनाओं को कागजों से निकालकर उनपर काम करने की जरुरत है और इस दिशा में उठे हुए हर कदम के साथ कोर्ट साथ चलेगा।
हालांकि कोर्ट यह जानता है और समझता है कि यह मामला काफ़ी गम्भीर है और यह रातों-रात तो बिलकुल नहीं सुधारा जा सकता इसलिए केंद्र सरकार को कोर्ट ने छह महीने का वक्त दिया है, इन योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने के लिए। इसी दौरान केंद्र की तरफ से AG के के वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना से 12 करोड़ में से 5.34 करोड़ किसान जोड़े गए हैं, जोकि 40 फीसदी है। किसानों को विभिन्न स्तरों के जरिए, यहाँ तक कि पंचायत स्तर पर भी योजनाओं का प्रचार किया जा रहा है और जानकारी दी जा रही है।
तो सरकार भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है और कोर्ट भी एक-एक मामले की जानकारी ले रही है ताकि किसानों को अपने कारोबार किसी भी तरफ की मुसीबत का सामना ना करना पड़े और ख़ुदकुशी की संख्या कम ही नहीं बल्कि बंद हो जाए।

--प्रियंका सिंह
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