मायावती का इस्तीफा या नौटंकी !

(हस्तिनापुर के बोल )
                                                            
"अगर मैं सदन में दलितों की बात नहीं उठा सकती तो मेरे राज्यसभा में रहने पर लानत है ।" मैं अपने समाज की रक्षा नहीं कर पा रही हूँ ।  अगर मुझे अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा है तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं है । मैं सदन की सदस्यता से आज ही स्तीफा दे रही हूँ । " ये शब्द मायावती के हैं जिसने एक बड़ा दाव खेलते हुए राज्यसभा से स्तीफा दे दिया । दलितों के मुद्दे पर बोलने से रोके जाने से नाराज़ मायावती ने कहा कि अगर उन्हें दलितों का मसला नहीं उठाने दिया जाता तो फिर उनके  राज्यसभा में रहने का कोई मतलब नहीं है । दरअसल  मायावती अपने खिसकते आधार को रोकने के लिए एक बड़ा दांव चल रही है जैसा कि सियासी पंडितों का मानना है। मायावती  के  दलित वोट में एक तरफ बीजेपी सेंध लगा रही है तो दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चन्द्रशेखर नाम का एक नया दलित नेता खड़ा हो रहा है । मायावती के समर्थन कहते हैं कि उन्होने दलितों कि खातिर कुर्सी को ठोकर मार दी लेकिन सियासत के जानकार कहते हैं कि अगर वह ऊना कांड से लेकर सहारनपुर कांड तक किसी बड़े दलित मुद्दे पर इस्तीफा देती तो  उसका ज़्यादा असर हुआ होता ।
                                       

                          
इस मामले में दलित चिंतक डॉ॰ लालजी निर्मल का कहना है, "समय को लेकर के संसद से त्यागपत्र दिया जाना यह दलित राहे राजनीति के लिए बहुत अच्छे संकेत नहीं हैं ।  यह संसदीय इतिहास की शायद पहली घटना हो कि समय न मिलने के कारण किसी सदस्य ने आराज्यसभा अथवा लोकसभा को इस्तिफ़ा दिया हो । "
यह साफ है कि मायावती के लिए उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में नयी चुनोतियाँ खड़ी हो चुकी हैं ।

  

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