वाघेला के बग़ावत के मायने
( हस्तिनापुर के बोल )
1995 में गुजरात भारत का ऐसा पहला राज्य था, जहां बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। उस वक्त बीजेपी ने 182 सीटों में 121 सीटों पर जीत दर्ज की थी और यह बीजेपी के लिए अब तक का बड़ा रिकॉर्ड हासिल करने की तरह है।
हालांकि इस सफ़लता के पीछे बीजेपी के तीन लोगों की बहुत बड़ी भूमिका रही थी। उस समय गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला की भूमिका एहम थी । उसके बाद केशुभाई पटेल और उस वक्त के संघ प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी की भूमिका...। आज भी बीजेपी की भूमिका देखी जा सकती है। इन तीनों ने ही गुजरात के 18000 गावों का दौरा कर बीजेपी के विचारधारा को घर-घर तक पहुँचाया था।
आपको बता दें गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के वरिष्ठ नेता रहें हैं। नरेंद्र मोदी और शंकर सिंह वाघेला ने कई समानताएं है। दोनों ही महत्वकांक्षी, अच्छे वक्ता और कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति हैं। हालांकि किस्मत के मामले में वाघेला उतने धनी नहीं है।
गौरतलब है कि इस शुक्रवार को शंकर सिंह वाघेला ने खुद को कांग्रेस से अलग कर लिया। वह विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर वे 57 कांग्रेसी विधायकों का नेतृत्व कर चुके है । इससे कोई ठुकरा नहीं सकता यहाँ तक की कांग्रेस के नेता भी नहीं ठुकरा सकते कि वाघेला गुजरात में उनके सबसे करिश्माई नेता थे जिनके पास बड़ा जन समर्थन और पहचान थी।
चाहे वह जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , जनता पार्टी, बीजेपी, उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी हो या फिर कांग्रेस ... । वाघेला ने हमेशा अपनी पार्टी और सांगठनिक ढांचे को दरकिनार कर फैसले लिए है। उन्होंने आपातकाल के दौरान भी गुजरात में जनता पार्टी का दामन थामा और उसका नेतृत्व भी किया था। उसी दौरान उन्होंने इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा जमकर बुलंद किया था।
अस्सी के दशक में बीजेपी का निर्माण हुआ और गुजरात में बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में एक थे। वाघेला और नरेंद्र मोदी दोनों गुजरात के दूर-दराज इलाकों में मोटरसाइकिल से जाया करते थे। जब बीजेपी ने देश में अपनी पहली दो सींटे पाई थी तब उसमे से एक मेहसाण की सीट थी और दूसरी सीट आंध्रप्रदेश की हनामकोंडा थी। उस समय शंकर सिंह वाघेला को राज्यसभा की सदस्यता देकर उन्हें सम्मानित किया था। वाघेला को गुजरात में लोग उन्हें प्यार से बापू कहकर पुकारते है।
आज भी कांग्रेस के साथ दो दशक पुराने रिश्तो के बाद उन्होंने वही किया जो वो करने में माहिर रहे है.. या हो सकता है की वाघेला पर अमित शाह और बीजेपी की ओर से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के मामलों पर दवाब हो.. या फिर हो सकता है कि वाघेला को यह लग रहा हो की कांग्रेस राज्य में एक डूबता जहाज है और उससे नाता तोड़ने का यह सबसे अच्छा समय है। लिहाज उन्होंने तो पार्टी के खिलाफ कदम उठाते हुए राष्ट्रपति चुनाव में मीरा कुमार के विरोध में वोट डाला था और राम नाथ कोविंद का समर्थन भी किया। वाघेला ने कई बार मोहभंग स्तिथि बदली है लेकिन यह बात पक्की है की इससे कांग्रेस के लिए चिता का विषय बन सकता है।
कुमार अलका
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