ट्यूब लाइट देखने से अच्छा है कि घर पर टीवी देख लें।
( फ़िल्मची )
एक उड़ता हुआ बाज़ और बंदूक वाली इमेज। साथ में शानदार म्यूजिक के साथ एक भद्दी सी आवाज़ के साथ फ़िल्म रिव्यु करने वाले कमाल राशिद खान ने कबीर खान की फ़िल्म का सबसे शानदार आलोचना की। वैसे तो फ़िल्म यही आलोचना को लायक है। अगर आपके के दिमाग़ में ज़्यादा दही है तो उसकी छाछ थिएटर में निकाल सकते हैं।
फ़िल्म की कहानी हॉलीवुड फ़िल्म लिटल बॉय की कॉपी का गंदा सा पेस्ट है। फ़िल्म में एक भोला सा पागल है। जिसका नाम लक्ष्मण सिंह बिष्ट है। वैसे तो इस दौर अपने आराम वाले क्षेत्र से बाहर आकर कुछ नया करने की कोशिश की है। लेकिन वे पूरी तरह से असफ़ल हो जाते है। फ़िल्म 1962 की चाइना और भारत की जंग की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है। जिसमें सलमान खान ( लक्ष्मण ) का भाई भरत ( सोहेल खान ) जंग में चला जाता है। जिसके लौटने के लिए पागल भाई सारा काम करता है।जैसे कि पहाड़ हिलाना और युद्ध रोकने जैसे काम।
फ़िल्म की कहानी बहुत ही बोरिंग है। आप इंटरवल तक ही ऊब जाएंगे। एक बात जो सबसे ज़्यादा चुभती है वो है भाषा। जब हाफ़ गर्लफ्रैंड में मैथली और भोजपुरी को लेकर इतना बवाल मच जाता है। यहाँ आपको 1962 के दौरान अंग्रेजी के शब्दों
का उपयोग करते हैं। आपको कोई भी जीप को चैन बोलता नहीं दिखेगा जो आम बात है। ऐसे ही भाषा में लगातार अंग्रेजी शब्दों का भरमार दिख जाएगी। फ़िल्म के में सेट का चुनाव पर सवाल खड़े कर सकते हैं। कुल मिलकर फ़िल्म को गांधी जी नाम की एक खिचड़ी जैसी कही जा सकती है। एक्टिंग में जब आपके पास इरफान से राज कुमार राव तक है तब आप सलमान वैसे भी ज़्यादा उम्मीद नहीं की जाती है। लेकिन वे अदाकरी आपको सबसे ज़्यादा निराश करते हैं। फ़िल्म में आपको जीशान की अदाकारी खूब पसंद आएगी। वही आपको कहीं कहीं मनोरंजन करते नज़र आएंगे। जब आज के दौर में लोग भिन्न भिन्न मुद्दों पर आर्ट्स और कॉमर्सियल का कॉम्बो बना रहे तब ट्यूब लाइट बिना नमक वाली खिचड़ी बन जाती है। जिसमें बहुत कुछ डालने की कोशिश की गई है। पर इतना फीका है बीमार भी नहीं खा सकते।
आख़िर बात यह है कि चीन युद्ध में भारत को ज़्यादा ही कमज़ोर दिखाया गया। जो आपके अपने विचार से समझ सकते हैं।
- अभिनय कुमार
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