अक्षय पर आक्षेप अशोभनीय
(फ़िल्मची)
अभिनेता अक्षय कुमार को फिल्म रुस्तम एवं एअरलिफ्ट के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। पुरस्कार की घोषणा होते ही बुद्धिजिवियों के एक वर्ग ने इसकी आलोचना शुरु कर दी। आक्षेप की पराकाष्ठा तब हुई जब कुछेक मीडिया संस्थानों ने भी इस पर सवाल उठा दिये। और आपत्ति भी कैसी। जरा गौर फरमाये। अलोचकों के अनुसार पुरस्कार इनको क्यों मिला, उनको क्यों नहीं मिला? तर्क दिया गया कि अक्षय से अच्छा काम तो ’अलीगढ़’ में मनोज बाजपेयी तथा ’दंगल’ में आमिर खान ने किया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि अक्षय के साथ-साथ मनोज व आमिर भी बेजोड़ अभिनेता हैं, और इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए, लेकिन पुरस्कार किसको मिले, यह तो ज्यूरी तय करेगी न! पुरस्कार देने का एक अपना मापदंड होता है। स्मरण रहे कि 2003 में फिल्म ’हम-तुम’ में अभिनय के लिए सैफ अली खान को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। सबको पता है कि अक्षय की प्रतिभा के मुकाबले सैफ कहां खड़े हैं, फिर भी किसी ने उस वक्त आपत्ति नहीं की थी। बस इसीलिए न कि पुरस्कार किसे दिया जाये यह ज्यूरी तय करेगी। फिर इस बार इतनी चित्कार क्यों?
चुकि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, इसलिए असहमति व्यक्त करने का अधिकार है। लेकिन पुरस्कार पर इस असहमति का आधार पूर्णतः सिनेमाई होना चाहिए, न कि किसी विशेष विचारधारा से प्रेरित। भारत में प्रतिवर्ष एक हजार से अधिक फिल्में बनती हैं। इनमें से सैंकड़ों को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए विभिन्न वर्ग में नामित किया जाता है। इनमें से किसे पुरस्कार देना है यह ज्यूरी तय करती है, जिसे संबंधित संस्था नियुक्त करती है। ज्यूरी सदस्य सिनेमा विधा के विशेषज्ञ होते हैं। किसको पुरस्कार दिया जाये, इसके लिए उनके द्वारा एक मापदंड निर्धारित किया जाता है। फिल्मों, कलाकारों व तकनिशियनों के काम को उस कसौटी पर कस कर देखा जाता है, फिर ज्यूरी को जिनका काम सर्वश्रेष्ठ लगता है, उनका पुरस्कार के लिए चयन किया जाता है। यद्यपि, भारतीय सिनेमा में प्रतिभवान कालाकारों व तकनिशियनों की कमी नहीं हैं। इनके कारण हम हरेक साल एक से बढ़कर एक उम्दा फिल्मों का आनंद लेते हैं। तथापि, पुरस्कार एक औपचारिक मामला है, जो यांत्रिक तरीके से संचालित होता है। जबकि, सिनेमा एक कला विधा है जो अन्य कलाओं की भांति औपचारिकता एवं यांत्रिकी से परे है। इसलिए दिल छोटा करने के बजाए, पुरस्कार जीतने वाले विजेताओं को तहे दिल से बधाई देना चाहिए। सिने प्रेमी द्वारा सिनेमा का यही सबसे बड़ा सम्मान होगा।
दरअसल बात पुरस्कार से कहीं ज्यादा बड़ी है। ध्यान दीजिये कि अक्षय पर आक्षेप करने वाले कौन लोग हैं। ये वही हैं जिन्होंने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश पर संकट बताया था। इन्हीं लोगों ने पिछले वर्ष अवार्ड वापसी का अभियान चलाया था। यह सर्वविदित है कि राष्ट्रीय पुरस्कार कोई नेता या राजनैतिक दल नहीं देता है, बल्कि यह देश द्वारा उसके नागरिकों को दिया जाता है। आपको किसी नेता या राजनैतिक दल से आपत्ति हो सकती है, लेकिन देश से भला किस बात की आपत्ति? देश तो मां-बाप होता है। लेकिन इन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता। जब तक चीजें इनकी मर्जी से होती रही, सबकुछ ठीक था। जैसे कोई इनसे भिन्न विचार वाला सत्ते में आ गया, तक से इन्हें हरेक तकलीफ होती है। कितना स्तरहीन होकर इन्होंने विरोध किया है, जरा इसे देखिये। अक्षय की अभिनय क्षमता पर सवाल उठाने से भी जब इनका मन नहीं भरा, तो ये कहने लगे कि चुकि अक्षय कुमार राष्ट्रवादी विचार के पक्ष में बोलते हैं, इसलिए उन्हें यह पुरस्कार मिला है। आखिर दिल की बात जुबां पर आ ही गई।
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