चाचा इतिहासकर के न्याय का होला

बबुवा इतिहास मैं बड़ा झोल झाल हैं अब जो पूछा हैं तो उदाहरण से हम तोहके समझावत है
इतिहासकारो का मानना है की गुरू गोविंद सिह ने ​अपने पिता का बदला लेने के लिय तलवार उठाई थी
क्या संभव है विस्व इतिहास की ऐसी अनुठी धटना मिले जिसमे 9 बर्ष के बालक ने अपने पिता
को आत्मबलिदान के लिए प्रेरित कीया हेा गुरु गोविंद सिह जी को किसी से बैर न था उनके
सामने तो पहाड़ी राजाओ की इर्ष्या पहाड जैसी उची थी तो दुसरी तरफ औरंगजेब की धार्मिक
कट्टरता की आंधी लोगो के आस्तित्व को लील रही थी । ऐसे समय मे गुरू गोबिंद सिहं ने समाझ
को एक नया दर्शन दिया उन्हाने आध्यत्मिक स्वतंत्रता की प्राप्ती के लिए तलवार उठाई।
गुरु गोबिंद सिंह ने केशवगढ आंनदपुर मे 30 र्माच 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की इसके साथ
ही 30 हजार लोगो ने इसे उसी दिन धारण किया इस प्रकार पुनर्गठित सिख सेना बनाकर
उन्हाने दो र्मोचो पे सिखो के शत्रुओ के खिलाफ कदम अठाये पहला मु्गलो के खिलाफ
तथा दुसरा विरोधी पहाड़ी राजाओं के खिलाफ उनका प्रेरक उदबोधन था
सवा लाख से एक लडाऊ चिडियों से मै बाज तडउ तबे गोबिंदसिह नाम कहाउ
सैन्य टुकरीया सिक्ख आदशो के प्रति पूर्ण समर्पित थी स्वतत्रता के लिए सबकुद दाव पर लगाने केा तेयार । उनके परदादा अजुनदेव जी दादा हरगोविंद जी पिता तेगबहादुर तथा उनके चारो बेटो ने अपने उदेश्यों की प्राप्ति के लिय आज भी पाथेय है
बबुवा अबतक त समझ गवा होगा की इतिहास से सारा पढ़ाई गोल काहे हो गवा


नियमित पाठक की मन की बात जिसे हमने जगह दी
Seen by Diwakar Vishwash at 10:42pm

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