ये ख़त बतायेगा कि AAP कार्यकर्त्ता कितना नाराज़ है-
(वायरल)
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ता कैसे अपने पार्टी से नाराज हैं। इस बात को हम आपको को पहले भी बता चुके हैं।
http://somethingsunal.blogspot.in/2017/03/blog-post_29.html
अब एक खुला खत वायरल हुआ हैं । आप खुद ही पढ़ लीजिये।
आप की महिला विंग के दर्द के पीछे कारण की तलाश में एक खुला पत्र।
प्रिय भावना गौर (दिल्ली राज्य महिला विंग अध्यक्ष और ममता कुंडू (दिल्ली राज्य महिला विंग सचिव)
आम आदमी पार्टी की स्थापना के बाद से, मैं पार्टी की एक मेहनती स्वयंसेवक रही हूं। *मैंने कभी भी किसी भी चुनाव में टिकट नहीं मांगी* और ना ही सोशल मीडिया पर नेताओं के साथ फोटो-ऑप्स का दिखावा किया है। मैं मेरी विधानसभा की महिला विंग अध्यक्ष थी और तीन दिन पहले अपनी पोस्ट त्याग दी परन्तु अभी भी मैं ‘आप’ पार्टी की सदस्य हूं।
आज, मैं आपको आम आदमी पार्टी की जुझारु महिलाओं के बारे में याद दिलाना चाहती हूँ जो कि स्थापना के बाद से ‘आप’ के साथ रही हैं। उनमें से कई पहली बार एक राजनीतिक दल की सदस्य बनी क्योंकि उन्होंने समझा की 'एक राजनीतिक क्रांति' शुरू हो गई है! मैं भी उनमें से ही एक थी।
मैडम जी, यह हमारी 'महिला शक्ति' ही थी जिन्होंने दिल्ली में घर-घर जा कर लोगों से आम आदमी पार्टी के लिए वोट देने की अपील की, वह लोकसभा 2014 के चुनावों के दौरान अमेठी, वाराणसी भी गईं और पंजाब और गोवा में भी प्रचार किया।
चाहे कोई प्रदर्शन हो या संगठन को मज़बूत करना हो, हमारी महिला शक्ति सबसे आगे रही है।
मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि, आप हमारी बैठकों में कहते थे कि इस बार ‘आप’ ने एमसीडी चुनावों के लिए महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का फैसला किया है और आप कहते थे कि, "मेरी बहनों बस अब तैयार हो जाओ, आर अपने अपने वार्डों में जुट जाओ ताकि मेरी बहनों को ही टिकट मिले". आप कहते थे की आप सुनिश्चित करोगे की आपकी बहनों (आप वालंटियर्स) को ही महिला आरक्षित सीटों पर टिकट मिले ना की 'डमीज' को'।
मैडम आपको याद आया?
शायद आपको याद हो, आप कहतीं थीं, " मेरी बहनों, एकमात्र शर्त यह है कि आप जमीन पर काम करो , ताकि आप कह सकें कि ये मेरी बहनें हैं, जो काम करती हैं और टिकटों के लायक हैं'।
मैडम, क्या आपकी, बहनों ने काम नहीं किया?
अपने दिल पर हाथ रख कर सोचियेगा की कैसे पिछले 5 वर्षों से इन्हीं बहनो ने हर पल कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है।
यहां तक की दिल्ली प्रदेश के कन्वीनर, दिलीप पांडे ने आधिकारिक तौर पर मीडिया को भी कहा है कि सिर्फ असली कार्यकर्ताओं को ही महिला आरक्षित सीटों पर टिकट मिलेगा और 'डमी' को नही।
अब, प्रिय मैडम क्या हुआ?
पूरी ‘महिला विंग’ का दिल टूट गया है यह देख कर की उनको नकार डमी और पैराशूटर्स को टिकट दिया गया है।
ज्यादातर महिलाओं में आरक्षित सीटों के लिए, या तो डमी को टिकट या 'पैराशूटर्स' के उम्मीदवारों को दिया गया है और गौर करने की बात है कि यह एक अच्छी तरह से योजनाबद्ध तरीके से हुआ है।
अब, क्या है यह योजना?
यह समझना बहुत सरल है।
वे सब कुछ समय पहले पार्टी में शामिल हुए और फिर कुछ पद उनके लिए बनाए गए, और बस कार्यकर्ता वाला जुमला पूरा ही गया! और अब मीडिया और जनता को आसानी से कहा जा सकता है कि हमारी AAP महिला सशक्तिकरण के लिए हैं !!
*मैं चकित हूँ! जब मैं अपनी बहनों का दर्द महसूस कर सकती हूं और मैंने महिला विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ दिया तो आप सब कैसे चुपचाप देख रहीं हैं?*
और वह भी तब जब मैंने टिकट पनहीँ मांगा, यानी मैनें नामांकन फॉर्म नहीं भरा।
आप क्यों अपनी "बहनों"का दर्द महसूस नहीं कर रहे हैं? लगभग सभी हमारी बहनों नें आप दोनों तक पहुंचनें की खूब कोशिश की है।
सुमन कौशिक, आभा मित्तल, शशि गौतम, शुभलाता अवस्थी, सविता मिश्रा, गुरप्रीत, प्रीती तिवारी, नीतू भट्टी, पूनम जोशी, भावना, कुलवीर कौर, सपना बंसवाल, पुष्पा सिंह, रोबीना खान, कुमकुम सिंह, रंजीता गुररानी, सीमा भारद्वाज, धारना सेठ, रेखा, ममता, शगुफ्ता, पवित्रा .... उनमें क्या गलत था?
वे वर्षों से 'आप' के लिए काम कर रहे हैं और वह भी कुशलतापूर्वक। यह सब एक एक दो पुरुषों के बराबर है, फिट क्यों उन्हें टिकट से वंचित किया गया?
जब कोई स्पष्टीकरण नहीं होता है, तो बस एक स्पष्टीकरण होता है: टिकट की मांग करना एक पाप है।
नहीं, मैडम, ऐसा नहीं है।
हमारे नेताओं ने भी चुनाव लड़ा है और महिला विंग राज्य अध्यक्ष एक निर्वाचित विधायक हैं यदि टिकट की मांग करना एक पाप है तो हमें एक राजनीतिक दल नहीं बनाना चाहिए था और एक नागरिक समाज आंदोलन के रूप में जारी रखना चाहिए था।
और हमारे शीर्ष नेतृत्व हमेशा चुनाव से दूर रहना चाहिए था।
मेरे पत्र लिखते समय तक 17 वार्डों में टिकट बदल दिए गए हैं, और कुछ समीक्षाधीन हैं।
यह तथ्य खुद ही इस बात का प्रमाण है कि गलत टिकट वितरण हुआ पर यह तो सर्फ गलत टिकटों का ट्रेलर है पूरी पिक्चर नहीं!
एक सवाल मुझे और बहुत सारे साथियों को हमेशा सतायगा:
*आखिर गलत टिकट वितरण हुआ ही क्यों और इसके पीछे क्या इरादा था?*
नीरू बहल
धन्यवाद
यह तो सिर्फ एक ख़त हैं। नगर निगम चुनाव से पहले काफ़ी नारजगी आप के भीतर है।
आज, मैं आपको आम आदमी पार्टी की जुझारु महिलाओं के बारे में याद दिलाना चाहती हूँ जो कि स्थापना के बाद से ‘आप’ के साथ रही हैं। उनमें से कई पहली बार एक राजनीतिक दल की सदस्य बनी क्योंकि उन्होंने समझा की 'एक राजनीतिक क्रांति' शुरू हो गई है! मैं भी उनमें से ही एक थी।
चाहे कोई प्रदर्शन हो या संगठन को मज़बूत करना हो, हमारी महिला शक्ति सबसे आगे रही है।
मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि, आप हमारी बैठकों में कहते थे कि इस बार ‘आप’ ने एमसीडी चुनावों के लिए महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का फैसला किया है और आप कहते थे कि, "मेरी बहनों बस अब तैयार हो जाओ, आर अपने अपने वार्डों में जुट जाओ ताकि मेरी बहनों को ही टिकट मिले". आप कहते थे की आप सुनिश्चित करोगे की आपकी बहनों (आप वालंटियर्स) को ही महिला आरक्षित सीटों पर टिकट मिले ना की 'डमीज' को'।
मैडम आपको याद आया?
मैडम, क्या आपकी, बहनों ने काम नहीं किया?
अपने दिल पर हाथ रख कर सोचियेगा की कैसे पिछले 5 वर्षों से इन्हीं बहनो ने हर पल कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है।
यहां तक की दिल्ली प्रदेश के कन्वीनर, दिलीप पांडे ने आधिकारिक तौर पर मीडिया को भी कहा है कि सिर्फ असली कार्यकर्ताओं को ही महिला आरक्षित सीटों पर टिकट मिलेगा और 'डमी' को नही।
अब, प्रिय मैडम क्या हुआ?
पूरी ‘महिला विंग’ का दिल टूट गया है यह देख कर की उनको नकार डमी और पैराशूटर्स को टिकट दिया गया है।
यह समझना बहुत सरल है।
वे सब कुछ समय पहले पार्टी में शामिल हुए और फिर कुछ पद उनके लिए बनाए गए, और बस कार्यकर्ता वाला जुमला पूरा ही गया! और अब मीडिया और जनता को आसानी से कहा जा सकता है कि हमारी AAP महिला सशक्तिकरण के लिए हैं !!
और वह भी तब जब मैंने टिकट पनहीँ मांगा, यानी मैनें नामांकन फॉर्म नहीं भरा।
आप क्यों अपनी "बहनों"का दर्द महसूस नहीं कर रहे हैं? लगभग सभी हमारी बहनों नें आप दोनों तक पहुंचनें की खूब कोशिश की है।
सुमन कौशिक, आभा मित्तल, शशि गौतम, शुभलाता अवस्थी, सविता मिश्रा, गुरप्रीत, प्रीती तिवारी, नीतू भट्टी, पूनम जोशी, भावना, कुलवीर कौर, सपना बंसवाल, पुष्पा सिंह, रोबीना खान, कुमकुम सिंह, रंजीता गुररानी, सीमा भारद्वाज, धारना सेठ, रेखा, ममता, शगुफ्ता, पवित्रा .... उनमें क्या गलत था?
नहीं, मैडम, ऐसा नहीं है।
हमारे नेताओं ने भी चुनाव लड़ा है और महिला विंग राज्य अध्यक्ष एक निर्वाचित विधायक हैं यदि टिकट की मांग करना एक पाप है तो हमें एक राजनीतिक दल नहीं बनाना चाहिए था और एक नागरिक समाज आंदोलन के रूप में जारी रखना चाहिए था।
और हमारे शीर्ष नेतृत्व हमेशा चुनाव से दूर रहना चाहिए था।
यह तथ्य खुद ही इस बात का प्रमाण है कि गलत टिकट वितरण हुआ पर यह तो सर्फ गलत टिकटों का ट्रेलर है पूरी पिक्चर नहीं!
एक सवाल मुझे और बहुत सारे साथियों को हमेशा सतायगा:
*आखिर गलत टिकट वितरण हुआ ही क्यों और इसके पीछे क्या इरादा था?*
नीरू बहल
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