राष्ट्रपति की राह आसान नहीं
(हस्तिनापुर के बोल)
जैसा कि हम सब जानते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के चुने हुए सांसद और देश भर की विधानसभाओं के विधायक वोट करते हैं। देश के 776 सांसद और 4120 विधायक मिलाकर कुल 4896 लोग होते हैं जो नया राष्ट्रपति चुनेंगें। इनके वोटों की कुल कीमत होती है 10 लाख 98 हजार। अब इस हिसाब से जीतने के लिए चाहिए 5 लाख 49 हजार वोट। अगर देखें तो पिछले महीने हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी और उसकी सहायक पार्टियों के पास कुल 4 लाख 57 हजार वोट थे यानि उसे अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने के लिए उस समय 92 हजार वोटों की जरूरत थी। लेकिन पांच राज्यों में चुनाव के बाद बीजेपी से चुनकर आये हुए विधायकों के वोटों की कुल कीमत होती है 96 हजार, जिससे बीजेपी आसानी से अपना राष्ट्रपति बना सकती है। लेकिन यहां भी कहानी में एक ट्विस्ट है क्योंकि इन विधायकों में वे विधायक भी शामिल हैं जो पिछली विधानसभा में एनडीए के साथ थी। और ऐसे विधायकों के वोटों की कुल कीमत बैठती है 20 हजार। अब अगर इस 20 हजार वोट को हटा दें तो बीजेपी को अपना राष्ट्रपति बनाने के लिए चाहिए और 16 हजार वोट।
वैसे बीजेपी अपने तीन सांसद (योगी आदित्यनाथ, केशव प्रताप मौर्य एवं मनोहर पर्रिकर) के इस्तीफा को रोककर 2100 वोट का तो जुगार कर लेगी लेकिन अभी भी उसे 16 हजार को अंतर को पार करना होगा। क्योंकि बीजेपी के पास शिवसेना जैसे दोस्त भी हंै जिसके रहते दुश्मनों की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। क्योंकि शिवसेना वाले के दिमाग का कोई भरोसा नहीं है कि वो अपना वोट बीजेपी के पसंदीदा राष्ट्रपति को ही देगी। और इसके अलावा राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और विधायक पार्टी के व्हिप से बंधे भी नहीं होते हैं। जिससे उसकी राह में गड्ढ़े और बड़े हो जा रहे हैं। इसलिए बीजेपी अब 9 अप्रैल को 12 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव पर भी बगुले की भांति अपनी नजर गड़ाये बैठी है। क्योंकि इसके वोटों की कुल कीमत 4 हजार है। अगर बीजेपी इसमें से ज्यादा सीट हथियाने में सफल रहती है तो वे अपने इस 16 हजार के अंतर को काफी हद तक कम कर पायेगी।
कुल मिलाकर अगर देखें तो बीजेपी की हालत अभी ऐसे शिकारी की तरह है जो अपना शिकार तो कर चुका है लेकिन उसे पका कर खाने के लिए मसाले व अन्य सामानों का जुगाड़ करना पड़ रहा है.
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