यार !हम भी आदमी है।
(हस्तिनापुर के बोल )
कितना आसान है यह कहना कि ' तारीख़ पर तारीख़'। फ़िल्म भी देखी होगी। अरे वही जो दामनी वाली। जिसमें वकील उसे न्याय नहीं मिलने देते। और आखिर में वह चलचित्र का अभिनेता आता है , बस यार वही हिंदी फ़िल्मो वाली कहानी।
कुछ यूं ही किस्से हमें छवि गढ़ने में मदद कर देते है। पूरा पुलिस प्रशासन भ्रष्ट है, नेता चोर है और वकील तो लुटेरा।
भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलानाभले जा के जंगल में धूनी रमानामगर मेरे बेटे कचहरी न जानाकचहरी न जानाकचहरी न जाना
कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं हैअहलमद से भी कोरी यारी नहीं हैतिवारी था पहले तिवारी नहीं है
कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलानाभले जा के जंगल में धूनी रमानामगर मेरे बेटे कचहरी न जानाकचहरी न जानाकचहरी न जाना
कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं हैअहलमद से भी कोरी यारी नहीं हैतिवारी था पहले तिवारी नहीं है
कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे
यह कविता कैलाश गौतम की है। सब मिलकर वकील को दलाल कहना एक आम बात है। पर कुछ बात तो उधर भी है। थाली उधर भी तो है। कभी किसी जूनियर वकील के को गले से लगाकर हाल तो जानकार कर देखिये। कुछ की माली हालत तो मनरेगा वालों से भी खराब है। बड़े वकीलों को मत देखिये। यहाँ वही स्थिति है जैसे जमींदार और बंधुवा।
वैसे आज कल हड़ताल पर चल रहे हैं। यूँ तो वकीलों की हड़ताल और हड़ताल की वकालत बहुत ही मशहूर हैं।
इस बार उसी बंधुआ मजदूर को दबाने के लिए विधि आयोग ने ' अधिवक्ता अधिनियम 1961' बदलाव की सिफ़ारिश की है। बात ये है कि अगर यह अधिनियम बदल गए तो वकील भी उपभोक्ता कानून के अंदर आ जयेगा। इस कानून में एक बात यह है कि इसमें बदलाव में से सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के सीनियर वकीलों को बहुत ही चालाकी से बाहर रखा गया है। इन बड़े वकीलों का वकालतनामा कोर्ट में नहीं लगता है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में यही जूनियर वकील ही वकालतनामा लगाते हैं। और जब वे उपभोक्ता कानून में आ जायेंगे तो वाट तो इन्हीं जूनियर वकीलों की लगेगी। इस बात के विरोध बार काउंसिल ऑफ इंडिया हड़ताल तो कर रही है। वैसे सरकार या किसी भी बात करने का विरोध तो करना हमरा मौलिक अधिकार है लेकिन इस नए वाले अधिवक्ता अधिनयम में यह भी छीनने का प्रयास हैं। अगर अधिवक्ता हड़ताल करते है तो उनका लाइंसेस रद्द कर दिया जायेगा।
यह बात भी ठीक है कि वकीलों को रोज़ रोज़ हड़ताल भी नहीं करना चाहिए। पर जिस प्रकार उन पर हमलें हो रहें हैं,तो उसका क्या? कुल मिलाकर यही तो एक तरीका है अपनी बात रखने का।एक बड़ी ही कमाल की बात है। अंग्रजो के जमाने से लेकर अब तक वकीलों को समुदाय एक व्यापक प्रतिनिधित्व प्राप्त करता रहा। मगर गज़ब की बात है कि आज तक किसी नेता को सदन में इनके लिए लड़ते नहीं देखा।
मुद्दे तो कई हैं। लेकिन अभी तो वे सिर्फ प्रोटेक्शन एक्ट चाहते हैं। अब सरकार क्या करती हैं देखने वाली बात होगी।
- रजत अभिनय
विशेष आभार - मंटू जी (अधिवक्ता पटना उच्च न्यायलय)
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