एक सच्चा मुसलमान कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि और हिंदुओं को अपना भाई मानाने को तैयार नहीं होगा-अम्बेडकर आरएसएस से होकर

                       (विचार अड्डा)


अंबेडकर और दलित दोनों ही फ़िलहाल भारत की राजनीति की के केंद्र में हैं। केंद्र में सिर्फ इसलिये नहीं कि उन्हें केंद्र की सरकार अपने प्रतीक की राजनीति को जरिया बनाया है बल्कि महागठबन्धन के सूरत पर दलित वोट के बिखराव पर भी बातें टिकी हैं। एक बात इसे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि आरएसएस को अम्बेडकर को लेकर क्या सोचती है? क्या बताना चाहती है?
चूँकि आरएसएस की विचारधारा में गांधी उतने उपयुक्त नहीं थे जितने कि भीम राव अंबेडकर। यह ठीक उसी प्रकार की बात है जैसे कि नेहरू के सामने सरदार वल्लभ भाई पटेल। अब जब दलित पर बात हो रही तब आरएसएस के पास अंबेडकर को लेकर सबको बताने को बहुत कुछ है। वह अंबेडकर को अपने खाँचे में दिखना चाहता है। वास्तव में वह अंबेडकर को लेकर दो बातें बताने की कोशिश करता है। आरएसएस के वर्तमान सर कार्यवाह डॉ . कृष्ण गोपाल ने एक किताब का संकलन किया है। किताब का नाम है 'राष्ट्र पुरुष डॉ. भीमराव आंबेडकर' । इसका प्रकाशन आरएसएस के अनुषांगिक संगठन सेवा भारती ने किया है। यह किताब पूरा आरएसएस को तो नहीं समझा सकती परंतु यह जरूर बताती है कि वह अंबेडकर को कैसे दिखना चाहती है।

  1. अंबेडकर सवर्ण विरोधी नहीं थे

        किताब की शुरुआत में यही बताया गया है कि अंबेडकर सवर्ण विरोधी नहीं थे। इसके लिये इसी घटनों का जिक्र किया गया जिसमें ब्राह्मणों ने उनका सहयोग किया है। और उन घटनों का भी जिसमे वे दलितों को ब्राह्मण के तरीके से जीना सीखा रहें हैं।  कुछ जिनको हम आप तक पहुँचा रहें हैं-
  • 'अम्बावाडे'  गांव का होने के नाते प्रारम्भ में उनका नाम भीमराव अम्बावाडेकर था । सतारा के माध्यमिक विद्यायल में पढ़ते समय उनका सम्बन्ध एक कट्टर सनातनी ब्राह्मण अध्यापक अम्बेडकर से आया ।  वे बालक भीम से अत्यंत स्नेह रखते थे। वह अपने साथ उसके लिए साग रोटी बांधकर लाया करते और प्रत्येक दिन बीच के अवकाश में नियम पूर्वक भीम को बुलाकर भोजन कराते थे । डॉ अंबेडकर कहते थे कि- " मुझे यह कहने में अभिमान महसूस होता है कि उस प्रेम की साग - रोटी की मिठास ही कुछ और था। उस बात का स्मरण होते ही मेरा ह्रदय भर आता है।"
  • हम हिन्दू हैं। हिन्दू धर्म की परम्परों पर चलने का हमको पूरा अधिकार है। वे (अंबेडकर) चाहते थे कि हिन्दू समाज की व्यवस्था में ही आवश्यक सुधार हो जाएं और अछूतों को भी समानता का स्तर प्राप्त हो। इसी दृष्टि से अप्रैल 1921 में रत्नागिरि जिले में दलितजाति परिषद का अधिवेशन डॉ. साहब की अध्यक्षता में चिपलूण नामक स्थान में सम्पन्न हुआ जिसमें डॉ. अंबेडकर ने अपने ब्राह्मण सहयोगी श्री देवराज नाईक को भी बुलाया। श्री नाईक ने वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ हाजरों अछूतों को  यज्ञोंपवीत धारण करवाया।
  • अंबेडकर जी ने बम्बई में "समाज समता संघ" की स्थापना की जिसका मुख्य कार्य अछूतों को अपने नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना था । अछूतों को अपने अधिकारों को प्रति सचेत करना था । 6यह संघ बड़ा ही सक्रिय था।इस समाज के तत्वावधान में 500 महारों को जनेऊ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके ।  यह सभा बम्बई में मार्च ,1928 में सम्पन्न हुई जिसमें डॉ. अम्बेडकर भी मौजूद थे।
2. मुस्लिम विरोधी थे -
  • 1847 की क्रांति के पश्चात सेना में धीरे - धीरे मुसलमानों का प्रतिशत बाद गया । डॉ. अम्बेडकर जी को इस बात की चिंता थी ।मुसलमानों की भागीदारी पर उनका विश्लेषण -
" आज भारतीय सेना में  मुसलमानों की प्रमुखता है और वे प्रमुख रूप से पश्चिमोत्तर प्रान्त के हैं। भारतीय सेना के ऐसे संगठन का अभिप्राय है कि विदेशी आक्रमणों में भारत की रक्षा के लिये केवल उन्हीं को जिम्मेदारी सौंप देना। देश की गुलामी से मुक्ति के लिए हिन्दू कब तक इन पहरेदारों पर निर्भर रहेंगे।"
  • भारत की सीमा पर उस समय एक बड़ा मुस्लिम देश अफगानिस्तान मौजूद था । मुस्लिम मनोवृति को पहचानते हुये डॉ. अम्बेडकर लिखते हैं-
                               " यदि मान लें कि अफगानिस्तान स्वयं अकेले या मुस्लिम देशों के साथ मिलकर आक्रमण करता है तब ये पहरेदार प्रतिरोध करेंगे या प्रवेश के लिए रास्ता खोल देंगे। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके प्रति कोई हिन्दू निरपेक्ष नहीं रह सकता । प्रत्येक हिन्दू को उसका सन्तोष जनक उत्तर चाहिए। मुसलमान अपनी मातृभूमि के प्रति वफादार होंगे या ईमान की पुकार पर दूसरा रास्ता अख्तियार कर लेंगे?"
  • इस्लामी व्यवहार के सम्बन्ध में विश्वभर में जो उदाहरण  उनके सामने आये थे उनसे कोई भी समझदार विवेकशील व्यक्ति जो निर्णय निकालता वही निर्णय डॉ. अम्बेडकर जी का था। वे कहते हैं-
                      " इस्लामी भाईचारा विश्वव्यापी भाईचारा  नहीं हैं। वह मुसलमानों के प्रति भ्रातृत्व है।उनका भ्रातृत्व उन्हीं तक, उनके समाज तक ही सीमित है। जो इस समाज के बहार हैं उनके प्रति मुसलमान घृणा और शत्रुता रखते हैं। एक सच्चा मुसलमान कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि और हिंदुओं को अपना भाई मानाने को तैयार नहीं होगा। इसी कारण मौलाना मौहम्मद अली ने एक महान भारतीय और सच्चा मुसलमान होने के बावजूद मृत्यु के बाद येरुशलम की कब्र में दफनाया जाना पसंद किया।"

      वैसे तो यह किताब बड़ी ही सस्ती है। मेरे पास जो है उसमें सिर्फ 2₹ ही लिखा। लेकिन अगर इन बातों को देखें तो आरएसएस के डॉ. अम्बेडकर बड़े ही आसानी से अपनाये जा सकते है। वैसे तो आजकल कांग्रेस भी उनकी मूर्तियों को दूध चढ़ाने लगी है ,नहीं तो एक समय बाबू जगजीवन राम कांग्रेस में अम्बेडकर के काट हुआ करते थे। राजनीति में कुछ भी संभव है। कल को जिन्ना को गांधी का रुप बता दे तो भी अचरज नहीं होना चाहिए। 

-रजत अभिनय

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