नीतीश सबसे कमजोर खिलाड़ी हैं।

                 (हस्तिनापुर के बोल)



नाम और छवि दोनों का पूरा योगदान होता है किसी भी नेता को गढ़ने में। वैसे इस समय भारत में छवि और व्यक्ति आधारित राजनीति का बोलबाला है। छवि ही गढ़ने के चक्कर नेता जी के बेटा जी तो नप लिए। वही अपनी छवि से लालू की छवि को ढक कर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बन लिए। इस छवि की राजनीति के छावनहार मोदी के खिलाफ किसी खड़ा किया जाए, इसको लेकर पान वाले भैया से लेकर ऋषभ प्रतिपक्ष तक व्यस्त हैं। अब नाम तो कई हैं। हम दोनों को छोड़ दे तो केजरीवाल, राहुल गांधी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी अनादि। फिर भी मीडिया और राजनीति के बिना पोथी वाले पंडितों के अनुसार नीतीश कुमार के बड़के वाले नेता हैं। यही वह नेता है जो मोदी के सामने 2019 में टांग फैलाये खड़े होंगे।  पर हम इस बात कदापि सहमत नहीं रहें हैं। हम आपको बता रहें हैं कि क्यों सबसे कमजोर नेता नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री के दावेदारी में सबसे पीछे हैं।

सिर्फ 17 सीटों  पर चुनाव लड़ेगी जदयू 

  अगर महा गठबंधन होता है तो बिहार में तीन पार्टियां एक साथ लड़ सकती हैं। कांग्रेस , राजद और जदयू । इसमें नीतीश कुमार की जदयू को कुल 17 ही सीटें मिलेंगी। जो प्रधानमंत्री बनने के लिये सौदा तो नहीं ही करा सकती। 
                   दो सालों के भीतर वे देशव्यपी नेता तो नहीं बन सकते हैं। इनकी पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में लड़ती रही है पर कभी कोई भी प्रभाव नहीं छोड़ पाई।जबकि सपा और बसपा का उत्तर प्रदेश से बाहर कुछ तो प्रदर्शन तो है। वही कांग्रेस ही पुरे भारत में चुनाव लड़ती है और जीत दर्ज़ करती रही है।

लालू तो मान जाएं ,कांग्रेस को पागल कुत्ते नहीं काटा


वैसे तो नीतीश को प्रधानमंत्री के रूप में सबसे ज़्यादा कूदेगा तो वह हैं लालू प्रसाद यादव। उनका अपना स्वार्थ सिद्धि की बात है। चूँकि लालू कूद तो चुनाव लड़ नहीं सकते हैं और न ही प्रधानमंत्री बन सकते है। उनके बेटों को अभी राजनीति के ककहरा में इतनी ताकत तो आई नहीं कि वे ख़ुद को इसके लिए खड़ा कर सके। जब नीतीश कुमार चुनाव में उतरे तो मुख्यमंत्री का पद खाली करना पड़ सकता हैं , बस यही तो चाहते हैं लालू। नीतीश जाएं दिल्ली और तेजस्वी हो जाए मुख्यमंत्री ।
                      परन्तु कांग्रेस इस बात को जानती हैं कि लोक सभा चुनाव में छोटा भाई बनकर लड़ना उसके अस्तित्व पर खतरा है। फिर अगर बिना किसी चेहरे का ही महागठबधंन चुनाव लड़ता है तो जीत के बाद राहुल ही तो बड़े चेहरे हैं। कांग्रेस के बाद सबसे ज़्यादा सीटें भी कांग्रेस के पास होंगी और सबसे बड़ा पद भी।


सोशल इंजीनियरिंग के खिलाड़ी नहीं


 कभी जब लालू प्रसाद यादव माई समीकरण के दम पर चुनाव जीते जा रहे थे, तब नीतीश कुमार ने कुर्मी को आगे कर अति पिछड़ा वर्ग का कार्ड खेला। आज भी वह इसके दम पर आगे बनाये हुए हैं। लेकिन यह रणनीति सिर्फ़ बिहार में ही लागू होती है। क्योंकि बिहार के बाहर तो वह कुर्मी नेता भी नहीं। अगर देखें तो उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पूर्वांचल के कुर्मियों पर अपना पकड़ रखने वाली अपना दल, कांग्रेस से ज़्यादा सीटें हासिल कर लिया। 
          अब अति पिछड़ा कहें या गैर यादव पिछड़ा वर्ग। यहाँ मोदी और अमित शाह ने अपनी बहुत शानदार पकड़ बना ली है। इसका असर चुनाव दर चुनाव दिखाई पड़ रहा है। तो यह बात तो तय हैं कि नीतीश बाबू इसके अकेले नेता तो नहीं।
     वही जब बात सोशल इंजीनियरिंग की हो रही है तो मायावती इसकी सबसे बड़ी खिलाड़ी हैं। उन्हें दो अलग ध्रुवों ( दलित और ब्राह्मण) को मिलाकर दो बार चुनाव जीता। पंरतु आज उनकी गणित पूर्ण रूप से फैल हो चुकी है। नीतीश कुमार इस मामले में कही नहीं टिकते हैं।

भ्रष्टाचार को मुद्दा नहीं बना सकते 


वो कभी भी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं । यह उनके लिए सबसे कमज़ोर कड़ी हैं। वैसे तो नीतीश की छवि तो भल्म चोंक है पर वे अभी फ़िलहाल लालू के साथ में सरकार में हैं। लालू यादव चारा घोटाले के मामले में जमानत पर घूम रहें हैं। अगर ऐसा न होता तो नीतीश का यही सबसे बड़ा प्लस पॉइंट होता। वही अगर नवीन पटनायक को इस मामले में फ़िलहाल कोई काट नहीं सकता।

ख़ुद ही पला बदल सकते हैं


 नीतीश कुमार समझौते की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। वें भले ही मोदी का विरोध कर राजग का साथ छोड़ा है पर वे कभी उनके खिलाफ जम कर नहीं उतरे। गठबंधन के विपरीत वे नोट बंदी जैसे मुद्दों पर मोदी के साथ रहे। यहाँ तक कि शारद यादव के विरोध में बावजूद भी वह खड़े रहे। 
        एक तरफ़ जहाँ केजरीवाल ने बिहार चुनाव में उनकी मदद की तो दूसरी ओर वे दिल्ली नगर निगम में बीजेपी के फ़ायदे के लिए अपने प्रत्याशी उतार दिए। और संभावना तो यह भी है कि चुनाव बाद ज़रूरत पड़ने पर पला बदल सकते हैं।



- रजत अभिनय और दिवाकर 

Comments