मैडम, काॅर्नर सीट नहीं मिलेगा...

                         (फ़िल्मची)





-प्रशांत रंजन

-’’मैडम, लाईन में लगिये प्लीज।’’ सिनेमाघर के टिकट खिड़की पर लगी लंबी लाईन में से एक आधुनिक युवक ने बाइज्जत अर्ज किया।

-’’लेडीज के लिए तो अलग लाईन होता है।’’ इतना कहकर नवयुवती लंबी कतार को बाईपास कर सीधे काउंटर पर दस्तक दी।

-’’क्या मजाक है यार। कहने के लिए महिलाएं किसी मामले में पुरुष से कम नहीं हैं, जब लाईन लगने की बारी आयी तो लेडीज फस्र्ट!’’ अंतिम छोर पर खड़े अजय देवगण टाईप युवक ने आपत्ति दर्ज करायी, लेकिन किसी ने उससे सहानुभूति जताना भी जरूरी नहीं समझा।

-’’भैया, दो टिकट चाहिए, काॅर्नर सीट वाला।’’ महंगा स्मार्टफोन वाला हाथ काउंटर पर रखते हुए युवती ने फरमाया। यहां अत्यंत ध्यान देने वाली बात है कि युवतियां अपने हमउम्र युवकों को अमूमन भैया बोलती हैं। ये अलग बात है कि लड़के कभी पलटकर दीदी या सिस्टर टाईप कुछ नहीं बोलते हैं। आप लाख भैया बोलते रहिए, वे आपको मैडम ही बोलेंगे।

-’’साॅरी मैडम, काॅर्नर सीट नहीं मिलेगा। कोई और चाहिए तो प्लीज बोलिए।’’ कंप्यूटर स्क्रीन पर कनखी से झाँकते हुए क्लीन शेव नवयुवक ने पूरे लखनवी तहजीब के साथ युवती से पेश आया। बंदे ने बमुश्किल बीस-बाईस बसंत अपनी जिंदगी में देखें होंगे, लेकिन मैच्यूरिटी तो चालीस साल वाली दिखी। मल्टीप्लेक्स आने का यह एक तमीजी फायदा है। पंद्रह-बीस साल पूर्व सिंगल स्क्रीन के जमाने में सिनेमा टिकट काउंटर वाले खुद को चालान काटने वाले सार्जेन्ट से कम नहीं समझते थे। उसी प्रोटोकाॅल में अकड़ के साथ पेश भी आते थे।

-’’व्हाॅट! व्हाॅट डू यू मीन? आई मीन ऐसा क्यों?’’ युवती ने अपना गुलाबी गाॅगल्स उतारते हुए काउंटर वाले से काउंटर-क्वेश्चन पूछा।

-’’साॅरी मैडम, लेकिन उपर से ऐसा ही आॅर्डर है।’’

-’’अब ये कौन सा अजीब आॅर्डर है? मुझे आपके आॅथोरिटी से बात करनी है।’’

-’’अरे मैडम जल्दी कीजिए, हमलोग भी लाईन में ही हैं।’’ किसी ने युवती को लंबी लाईन की याद दिलायी।

-’’साॅरी मैडम, आॅथोरिटी से मैं बात नहीं करा सकता। आपको टिकट चाहिए, तो प्लीज जल्दी कीजिए।’’

-’’ओ माई गाॅड! लेट आप खुद कर रहे हो और मुझे जल्दी करने कह करे हो।’’

-’’हां तो मैडम बोलिए कितनी टिकट चाहिए आपको?’’

-’’पहले तो आप ये बताओ न कि काॅनर सीट क्यों नहीं मिलेगा?’’

-’’मैडम, उपर से आॅडर है।’’

-’’बस आप इतना बताकर एहसान कर दो कि ऐसा आॅर्डर क्यों है?’’

-’’अरे एक टिकट में कितनी देर लग रहा जी?’’ इस बार किसी लाईन वाले ने अप्रत्यक्ष रूप से टिकट वाले लड़के पर ही तंज कसा।

-’’ऐक्चुअली मैडम, आॅथोरिटी का मानना है कि रोमांटिक फिल्मों के समय किसी यूथ कपल को काॅर्नर सीट नहीं दिया जाएँ क्योंकि डिसिप्लीन का प्राॅब्लम हो जाता है।’’

-’’व्हाॅट नाॅनसेंस! काॅनर सीट को डिसीप्लीन से क्या मतलब?’’

-’’मैनेजर सर कहते हैं कि काॅर्नर सीट मिल जाने पर कपल्स मूवी देखना छोड़कर, बाकी सारे काम करते हैं।’’ इस बार लड़के ने मुस्कान मिश्रित तहजीब के साथ जवाब दिया। दरअसल, मुस्कुराते वक्त उसने दाँते भी दिखायी थी। दाँते निपोरना हलांकि उसे ट्रेनिंग में नहीं सिखाया गया था और न ही ऐसा करना उसके ड्यूटी का हिस्सा था। फिर भी बंदा आउट आॅफ वे जाकर मुस्कुराया था। अपने उत्तर से वह मैडम को इत्मिनान करना चाहा था अथवा इम्प्रेस, यह तो उसे ही पता होगा।

-’’अरे भाई, टिकट बेच रहे हो या इंटरव्यू दे रहे हो!’’ अधीर होती पंक्ति में से कोई बोल पड़ा। इस बार युवती इशारा समझ गई एवं झट काउंटर से खिसक कर साइड में आ गई। अब वह फोन करने की तैयारी में थी।

-’’भाई जल्दी से दो टिकट दे दो, कहीं का भी। मुझे काॅर्नर-वाॅर्नर से कोई मतलब नहीं है।’’ कहीं का भी टिकट दे दो- यहां तक तो ठीक था, लेकिन ’काॅर्नर-वाॅर्नर’ जानबुझकर कहा गया था। पंक्ति हँस पड़ी।



-’’मैडम, लाईन में लगिये प्लीज।’’ सिनेमाघर के टिकट खिड़की पर लगी लंबी लाईन में से एक आधुनिक युवक ने बाइज्जत अर्ज किया।

-’’लेडीज के लिए तो अलग लाईन होता है।’’ इतना कहकर नवयुवती लंबी कतार को बाईपास कर सीधे काउंटर पर दस्तक दी।

-’’क्या मजाक है यार। कहने के लिए महिलाएं किसी मामले में पुरुष से कम नहीं हैं, जब लाईन लगने की बारी आयी तो लेडीज फस्र्ट!’’ अंतिम छोर पर खड़े अजय देवगण टाईप युवक ने आपत्ति दर्ज करायी, लेकिन किसी ने उससे सहानुभूति जताना भी जरूरी नहीं समझा।

-’’भैया, दो टिकट चाहिए, काॅर्नर सीट वाला।’’ महंगा स्मार्टफोन वाला हाथ काउंटर पर रखते हुए युवती ने फरमाया। यहां अत्यंत ध्यान देने वाली बात है कि युवतियां अपने हमउम्र युवकों को अमूमन भैया बोलती हैं। ये अलग बात है कि लड़के कभी पलटकर दीदी या सिस्टर टाईप कुछ नहीं बोलते हैं। आप लाख भैया बोलते रहिए, वे आपको मैडम ही बोलेंगे।


-’’साॅरी मैडम, काॅर्नर सीट नहीं मिलेगा। कोई और चाहिए तो प्लीज बोलिए।’’ कंप्यूटर स्क्रीन पर कनखी से झाँकते हुए क्लीन शेव नवयुवक ने पूरे लखनवी तहजीब के साथ युवती से पेश आया। बंदे ने बमुश्किल बीस-बाईस बसंत अपनी जिंदगी में देखें होंगे, लेकिन मैच्यूरिटी तो चालीस साल वाली दिखी। मल्टीप्लेक्स आने का यह एक तमीजी फायदा है। पंद्रह-बीस साल पूर्व सिंगल स्क्रीन के जमाने में सिनेमा टिकट काउंटर वाले खुद को चालान काटने वाले सार्जेन्ट से कम नहीं समझते थे। उसी प्रोटोकाॅल में अकड़ के साथ पेश भी आते थे।

-’’व्हाॅट! व्हाॅट डू यू मीन? आई मीन ऐसा क्यों?’’ युवती ने अपना गुलाबी गाॅगल्स उतारते हुए काउंटर वाले से काउंटर-क्वेश्चन पूछा।

-’’साॅरी मैडम, लेकिन उपर से ऐसा ही आॅर्डर है।’’

-’’अब ये कौन सा अजीब आॅर्डर है? मुझे आपके आॅथोरिटी से बात करनी है।’’

-’’अरे मैडम जल्दी कीजिए, हमलोग भी लाईन में ही हैं।’’ किसी ने युवती को लंबी लाईन की याद दिलायी।

-’’साॅरी मैडम, आॅथोरिटी से मैं बात नहीं करा सकता। आपको टिकट चाहिए, तो प्लीज जल्दी कीजिए।’’

-’’ओ माई गाॅड! लेट आप खुद कर रहे हो और मुझे जल्दी करने कह करे हो।’’

-’’हां तो मैडम बोलिए कितनी टिकट चाहिए आपको?’’

-’’पहले तो आप ये बताओ न कि काॅनर सीट क्यों नहीं मिलेगा?’’

-’’मैडम, उपर से आॅडर है।’’

-’’बस आप इतना बताकर एहसान कर दो कि ऐसा आॅर्डर क्यों है?’’

-’’अरे एक टिकट में कितनी देर लग रहा जी?’’ इस बार किसी लाईन वाले ने अप्रत्यक्ष रूप से टिकट वाले लड़के पर ही तंज कसा।

-’’ऐक्चुअली मैडम, आॅथोरिटी का मानना है कि रोमांटिक फिल्मों के समय किसी यूथ कपल को काॅर्नर सीट नहीं दिया जाएँ क्योंकि डिसिप्लीन का प्राॅब्लम हो जाता है।’’

-’’व्हाॅट नाॅनसेंस! काॅनर सीट को डिसीप्लीन से क्या मतलब?’’

-’’मैनेजर सर कहते हैं कि काॅर्नर सीट मिल जाने पर कपल्स मूवी देखना छोड़कर, बाकी सारे काम करते हैं।’’ इस बार लड़के ने मुस्कान मिश्रित तहजीब के साथ जवाब दिया। दरअसल, मुस्कुराते वक्त उसने दाँते भी दिखायी थी। दाँते निपोरना हलांकि उसे ट्रेनिंग में नहीं सिखाया गया था और न ही ऐसा करना उसके ड्यूटी का हिस्सा था। फिर भी बंदा आउट आॅफ वे जाकर मुस्कुराया था। अपने उत्तर से वह मैडम को इत्मिनान करना चाहा था अथवा इम्प्रेस, यह तो उसे ही पता होगा।

-’’अरे भाई, टिकट बेच रहे हो या इंटरव्यू दे रहे हो!’’ अधीर होती पंक्ति में से कोई बोल पड़ा। इस बार युवती इशारा समझ गई एवं झट काउंटर से खिसक कर साइड में आ गई। अब वह फोन करने की तैयारी में थी।

-’’भाई जल्दी से दो टिकट दे दो, कहीं का भी। मुझे काॅर्नर-वाॅर्नर से कोई मतलब नहीं है।’’ कहीं का भी टिकट दे दो- यहां तक तो ठीक था, लेकिन ’काॅर्नर-वाॅर्नर’ जानबुझकर कहा गया था। पंक्ति हँस पड़ी।    

        

प्रशांत रंजन



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