एक बार बात करके देखिये

                    (विचार अड्डा )




जब आप किसी बारे में एक धारणा बनाते हैं,तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। आप को आप के परिवार ने क्या बताया है।आपका समाज आपको क्या सुनाया हैं। जैसे कि एक ख़बर छपी थी एक न्यूज़ वेबसाइट पर की 'क्या शिया मुस्लिम थूक कर खिलाते हैं?' आपको पढ़ना चाहिए कैसे कोई धारणा बिना आधार के फ़ैल जाती है। समस्या यह है कि क्या हम बात करने को तैयार हैं?
      
      मुद्दे पर आते हैं कि नोएडा में कुछ नाइजीरिया के निवासियों को पीटा गया।ऐसे यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले एक नाइजीरियन को पीट कर पिछले सितम्बर में मार डाला। इससे पहले दिल्ली के 49 दिन सरकार में मंत्री रहे सोमनाथ भारती ने खिड़की एक्सटेन्शन में जम कर बवाल काटा। लेकिन इन घटनाओं को पीछे क्या कारण हैं? यह एक बोरिंग मुद्दा है पर बहुत ही जरुरी।क्यों कि जब आप किसी भी भारतीयों पर विदेश में हुए हमले पर चिल्लाते हैं, तब आपको इस मुद्दे पर सोचना बहुत ही आवश्यक हो जाता है। 
     किसी भी हमले के पीछे एक सोच होती हैं। वह सोच कुछ समय के लिये भी हो सकती हैं और काफी समय से भी चला आ रहा भी हो।अगर आप इसी नोएडा वाली घटना को ले लें। वहाँ एक मनीष नाम के लड़के की मौत ड्र्ग्स के ओवर डोज़ से हुआ। अब धारणा यह कि यह काम नाइजीरियन ही करते हैं। धारणा यूँ नहीं बनी है। हमने इस बात जानने के लिए इलाहबाद के एक इंस्टीट्यूट के छात्रों से बात की। वहाँ बीफार्मा में लगभग 35 नाइजीरियन बच्चे पढ़ते हैं। बच्चा कहना थोड़ा सा गलत है क्योंकि उसमें कई छात्र कई बच्चों के बाप हैं। नाइजीरियन हमसे बात करने को तैयार नहीं थे। क्योंकि वे इस बात से डरे हुए थे। उनका कहना था कि ग़लती उनकी निकली हैं इसलिए वो कुछ भी नहीं बोलेंगे। वहाँ कि एक छात्र ने हमसे खुल कर इस मुद्दे पर बात की । बताया कि उनमें एक समूह बना कर रहने की आदत हैं। उस समूह का सरदार भी होता है, किसी भी कार्यक्रम में उनको शामिल करने से पहले सरदार से अनुमति लेनी पड़ती है। चन्दा वैगरह भी उसी मुखिया के ही जरिये ही मिलता हैं। अगर वे कक्षा से गैर हाज़िर होते हैं तो सब साथ। आते भी सभी साथ हैं और जाते भी साथ भी हैं। 
दुनिया के बड़े पत्रकारों का मनना है कि अल्पसंख्यक समुदाय जहाँ भी हो समूह में रहता हैं । वह चाहें बांग्लादेश में रहने वाला हिन्दू हो या म्यांमार के रोहंगिया मुस्लिम।
  कुछ ऐसी ही बातें यहाँ भी नज़र आती है। वहीं अगर बात समूह के मुखिया की करें तो यहाँ ज्ञानेंद्र पाण्डेय ने सबर्टन स्टडीज़ में लिखा है कि आज गुण मनुष्य को जानवरों से मिला है। जिनका विकास अभी कुछ सौ वर्षों शुरू हुआ वे इस गुण से ज़्यादा सम्बंधित है। हम कुछ भी दावा नहीं कर रहें हैं बस समझने की कोशिश कर रहें हैं। 
      एक बात और उभर कर जो आई। बात करते हुए छात्रा ने बताया कि वे लोग भारतीयों से झगड़ा नहीं करते हैं । लेकिन आपस में बहुत तगड़ा लड़ते हैं।जब वे लड़ते है तो काफ़ी हिंसक होते हैं। वैसे उत्तर प्रदेश पूर्वांचल से लेकर झारखंड के धनबाद तक हिसा में गोलियां चलती है।अमेरिका तो अपने गन संस्कृत से परेशान हैं।तो इस प्रकार के झगड़े को लेकर इन्हें हिंसक तो नहीं कह सकते हैं।
आगे उस छात्रा ने बताया कि वे गर्मियों में वे दिल्ली जाते है। सब नही पर कुछ तो जाते है। वे लड़कियों के चक्कर में जाते हैं। यह बात वह बहुत गर्व से कहते हैं। वे नशा भी करते हैं, लगभग सभी ।पर उसने कभी उन्हें ड्रग्स लेते नहीं देखी। लेकिन दुनिया भर में नाइजीरियन और मैक्सिकन इसके लिए बदनाम हैं। शायद यूँ ही बदनाम नहीं हैं।


           हम किसी की धारणा नहीं बना रहे हैं । हम जानना चाहते हैं कि वे कैसे हैं।और क्यों उन पर हमलें हो रहें हैं। हमने विहिप के बड़े नेता और एक वाम विचार के समाजशास्त्री से बात की।  दोनों ने इस घटना को तात्कालिक प्रतिक्रिया ही करार दिया। इसमें अस्मिता की कोई बात नज़र नहीं आती है। विहिप के नेता जी ने कहा कि हमें उन्हें तहे दिल से स्वीकारना चाहिए। हम पालक है। हम उनकी कमियों को दूर कर सकते हैं।
   
      लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इन प्रवासी विदेशियों से बात करनी चाहिए। कभी दिखे तो hi बोल देना।


-दिवाकर और रजत अभिनय

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