अफजल के हत्यारों को एक धक्का और दो
(हस्तिनापुर के बोल)
कमाल की बात है। बिलकुल सुबह में ही जब ज़बरन उठा कर दौड़ने के लिये भेज दिया गया। दौड़ते दौड़ते ही नोटिफिकेशन ने दौड़ाना हराम कर दिया। वैसे ,ऐसे रुक कर ही नोटिफिकेशन देखने का मजा अपना ही है। पहली ख़बर थी 'एक बार फिर देशविरोधी नारे लगे'। चिरपरिचित भारतीय अंदाज़ में मैंने आपने मुँह खोलकर जीभ निकाल कर प्रतिक्रिया दे दी।
प्रश्न यही होता है कि आप कहाँ खड़े इस पार या उस पार। जाधवपुर विश्वविधायल में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। उसमें आरएसएस के लोगों ने हिस्सा लिया। बात हो रही थी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर। दिन शनिवार था , छुट्टी थी तो कुछ (राजनितिक रूप से अल्पसंख्यक) बच्चे जो usdf नामक संस्था से जुड़े थे नारा लगाने लगे। वैसे जब ऐसी कोई घटना होती है तो हम बस यह कह खाली हो जाते है कि वामपंथी संघठन है। इसमें विचार धारा में कुछ समानता होते हुए भी कई अलग संघठन हैं। इसमें से एक संघठन है usdf। पूरा नाम यूनाइटेड स्टूडेंट डेमोक्रेटिक फ्रंट । कुछ गिनती के अंडर आर्म्स क्रिकेट टीम जितने लोग थे। उनको आरएसएस के बहस से दिक्कत थी। कहना था कि जो लोग गुजरात और मुज्जफरनगर में अल्पसंख्यकों की हत्या की वे आज यहाँ बांग्लादेश पर आँसू बहा रहे हैं।
बात जब आज़ादी की है तो आँसू उनके हैं , जहां मन करे वहाँ बहायें। यही बात हमनें aisa की सचिव सुष्मिता से पूछा। उन्होनें कहा कि यहां तो एक कड़ी है जो लगतार जेनयू से रामजस होते हुए यहाँ पंहुचा हैं। पहले यह लोग कैपस में सेमिनार के नाम पर आते हैं और फिर अपने विरोधी विचार धारा को नुकसान पहुँचाते ।जाधवपुर में भी ठीक इसी प्रकार की घटना हुई, जहाँ हम लोग शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। वहाँ पर आरएसएस वाले लोगों ने पोस्टर फाड़े और फिर हमला किया।तथागत रॉय का नाम भी उन्होंने ने लिया।
यही बात लेकर हम abvp के दरबार में पहुँचे। सावल उधर से भी आये। abvp के नेता सौरभ शर्मा ने कहा कि यह तो यह बिलकुल गलत बात है।किसी ने कोई पोस्टर नहीं फाड़े। अगर मान भी ले कि फाड़े तो विश्व विद्यालय प्रशासन में कोई शिकायत क्यों दर्ज़ नहीं कराया गया। यह विरोध के नाम पर देश विरोधी नारे स्वीकार्य नहीं हैं। कश्मीर बंगाल व केरल के आज़ादी के नारे लगाने वाले वामपंथियों और आतंकवादियों में कोई अंतर नहीं।
इतनी आज़ादी तो हमें सुबह सुबह खेत में न मिले यह तो विश्व विद्यालय परिसर हैं। अपनी आज़ादी का अहसास कराते हुए हमने सुष्मिता दीदी से पूछ लिया कि आख़िर आज़ादी के नाम पर इसे कैसे सहन करें। उन्होंने बस तपाक से जवाब दिया कि आज़ादी के इन नारों को aisa पूरा समर्थन करता है। कश्मीर में जो हो रहा है, वहाँ पर महिला के ऊपर ,बच्चे के ऊपर जो भी हो रहा है। हम सभी जानते है क्या हो रहा। हम सरकार से चाहते हैं कि बातचीत का एक मंच हो। उनकी बातें सुनों। उल्टा सरकार वहाँ जा कर पैलेट गन चला रहे हो और गोलियां बरसा रहे हो।हमको इस हिंसा से आज़ादी चाहिए। वो लोग अल्पसंख्यक समुदाय से है इसलिए ऐसा किया जा रहा है। वह भी भारत के नागरिक है । सरकार को उनसे बात करना चाहिए। यह नारे वहीँ से आये। सरकार उन पर अत्याचार कर रही है इसलिए सही हैं। आख़िर में यह बात जोड़ दी कि 'अफज़ल के हत्यारों को एक धक्का और दो ' इसका समर्थन हम नहीं कर सकते ।
अरे जाये मत सौरभ भैया अभी इनको ज़ुबानी छूरी से काट कर रख देंगें। उन्होंने कहा कि यह साज़िस है। कहाँ नारे लगते हैं कि ' कश्मीर मांगे आज़ादी' जो कि साफ साफ बता रहा है कि वे क्या चाहते हैं। अगर समस्यों से ही आज़ादी चाहतें हैं तो ' आतंकवाद से आज़ादी' ' अलगाववाद से आज़ादी ' नारे क्यों नहीं लगाते है। अगर इन लोगो को सज़ा नहीं दी जाती हैं तो वह देश की अखंडता के लिए बहुत बड़े ख़तरे के रूप में उभरेंगे।
अब समस्या यह है कि सरकार बीजेपी के और कार्रवाई न होने के कारण नाराज़ abvp।आख़िर में बोल कर गए कि अगर सरकार उचित कार्रवाई नहीं करती है तो वे सड़क पर आने वाले हैं।
प्रश्न यही होता है कि आप कहाँ खड़े इस पार या उस पार। जाधवपुर विश्वविधायल में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। उसमें आरएसएस के लोगों ने हिस्सा लिया। बात हो रही थी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर। दिन शनिवार था , छुट्टी थी तो कुछ (राजनितिक रूप से अल्पसंख्यक) बच्चे जो usdf नामक संस्था से जुड़े थे नारा लगाने लगे। वैसे जब ऐसी कोई घटना होती है तो हम बस यह कह खाली हो जाते है कि वामपंथी संघठन है। इसमें विचार धारा में कुछ समानता होते हुए भी कई अलग संघठन हैं। इसमें से एक संघठन है usdf। पूरा नाम यूनाइटेड स्टूडेंट डेमोक्रेटिक फ्रंट । कुछ गिनती के अंडर आर्म्स क्रिकेट टीम जितने लोग थे। उनको आरएसएस के बहस से दिक्कत थी। कहना था कि जो लोग गुजरात और मुज्जफरनगर में अल्पसंख्यकों की हत्या की वे आज यहाँ बांग्लादेश पर आँसू बहा रहे हैं।
बात जब आज़ादी की है तो आँसू उनके हैं , जहां मन करे वहाँ बहायें। यही बात हमनें aisa की सचिव सुष्मिता से पूछा। उन्होनें कहा कि यहां तो एक कड़ी है जो लगतार जेनयू से रामजस होते हुए यहाँ पंहुचा हैं। पहले यह लोग कैपस में सेमिनार के नाम पर आते हैं और फिर अपने विरोधी विचार धारा को नुकसान पहुँचाते ।जाधवपुर में भी ठीक इसी प्रकार की घटना हुई, जहाँ हम लोग शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। वहाँ पर आरएसएस वाले लोगों ने पोस्टर फाड़े और फिर हमला किया।तथागत रॉय का नाम भी उन्होंने ने लिया।
यही बात लेकर हम abvp के दरबार में पहुँचे। सावल उधर से भी आये। abvp के नेता सौरभ शर्मा ने कहा कि यह तो यह बिलकुल गलत बात है।किसी ने कोई पोस्टर नहीं फाड़े। अगर मान भी ले कि फाड़े तो विश्व विद्यालय प्रशासन में कोई शिकायत क्यों दर्ज़ नहीं कराया गया। यह विरोध के नाम पर देश विरोधी नारे स्वीकार्य नहीं हैं। कश्मीर बंगाल व केरल के आज़ादी के नारे लगाने वाले वामपंथियों और आतंकवादियों में कोई अंतर नहीं।
इतनी आज़ादी तो हमें सुबह सुबह खेत में न मिले यह तो विश्व विद्यालय परिसर हैं। अपनी आज़ादी का अहसास कराते हुए हमने सुष्मिता दीदी से पूछ लिया कि आख़िर आज़ादी के नाम पर इसे कैसे सहन करें। उन्होंने बस तपाक से जवाब दिया कि आज़ादी के इन नारों को aisa पूरा समर्थन करता है। कश्मीर में जो हो रहा है, वहाँ पर महिला के ऊपर ,बच्चे के ऊपर जो भी हो रहा है। हम सभी जानते है क्या हो रहा। हम सरकार से चाहते हैं कि बातचीत का एक मंच हो। उनकी बातें सुनों। उल्टा सरकार वहाँ जा कर पैलेट गन चला रहे हो और गोलियां बरसा रहे हो।हमको इस हिंसा से आज़ादी चाहिए। वो लोग अल्पसंख्यक समुदाय से है इसलिए ऐसा किया जा रहा है। वह भी भारत के नागरिक है । सरकार को उनसे बात करना चाहिए। यह नारे वहीँ से आये। सरकार उन पर अत्याचार कर रही है इसलिए सही हैं। आख़िर में यह बात जोड़ दी कि 'अफज़ल के हत्यारों को एक धक्का और दो ' इसका समर्थन हम नहीं कर सकते ।
अब समस्या यह है कि सरकार बीजेपी के और कार्रवाई न होने के कारण नाराज़ abvp।आख़िर में बोल कर गए कि अगर सरकार उचित कार्रवाई नहीं करती है तो वे सड़क पर आने वाले हैं।
-रजत अभिनय और दिवाकर
(सौरभ शर्मा और सुष्मिता दीदी से बातचीत पर आधारित हमारे दिमाग़ की उपज)
आपके के दिमाग़ी उपज का इंतज़ार है।पूरी ख़रीदारी होगी
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