लो एक और टपका
(विचार अड्डा )
भले ही यह वाक्य आप को अच्छा न लगे , पर यह छात्रों की आत्महत्या पर रोक लगाने में असमर्थ सरकार व विश्व विद्यायल प्रशासन को देखकर सार्थक लगता है । पिछले लगभग तीन सालों में अकेले हैदराबाद विश्वविद्यालय में लगभग 9 छात्रों ने आत्महत्या कर ली । इनमे ज़्यादातर छात्र मMPHIL या पीएचडी के छात्र थे । वैसे ये आत्महत्याएँ जिन विश्व विधायल में घटित हुए उनके बारे में आम धरना क्या यह सब जानते है ।
खैर परसों JNU के छात्र ने आत्म हत्या कर ली । तमिलनाडु का छात्र कृष को दलित बताया जा रहा है । फौरी पूछताछ में व मीडिया खबरों के अनुसार बात आर्थिक तंगी व रिलेशन को लेकर थी । उसके मित्रो के अनुसार वह किसी सम्बन्ध को लेकर परेशान था । एक ऐसे बालक की मौत जो कि शोधार्थी था । जिसके कंधो पर विश्व निर्माण की जिम्मेदारी थी । वह आखिर आत्महत्या क्यों कर लेता है । आत्महत्या के एक दी पहले उसने अपने फेसबुक पोस्ट में प्रशासन द्वारा भेदभाव की बात लिखी थी । इसी बात को बतौर उदाहरण पेश कर आइसा की नेता शैला रशीद ने विश्व विद्यालय प्रशासन पर आरोप लगाए । यह पहला मौका नहीं जब बिना तथ्य जाने राजनीति शुरू हो गई हो । वैसे तो उच्च शिक्षा को उत्सुक छात्र बड़े ही विचारो से लबरेज इन विश्व विद्यालयों में प्रवेश लेते है । वे कुछ पूर्वाग्रहों से और बदलाव की बयार से प्रेरित रहते है । वैसा समझते है वैसा सब कुछ नहीं होता है । वे उतने सही नहीं होते जितना वे सोचते है । वह विषय राजनैतिक भी हो सकता है । इन सब बातों से एक खीज पैदा होती है जो इन आत्महत्यों का एक कारण है। विचार हो , बदलाव हो परन्तु घृणा न हो । इसे बदलना होगा ।
👌👌👍👍
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