ये 'आप' को क्या हुआ ?
(विचार अड्डा)
आम आदमी पार्टी ने जब दिल्ली का चुनाव जीता तो लगा कि राजनीति में नए विकल्प उभर रहें हैं। आज भी इसकी उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम एक नई पार्टी खड़ी हो सकती है । पंजाब हार को मैं केजरीवाल से ज़्यादा सकारात्मक देख रहा हूं। अगर पंजाब जैसे बड़े प्रान्तों में आप मुख्य विपक्षी पार्टी बन कर उभरी है तो उम्दा बात है। बस एक बहुत ही गौर करने की बात है कि कार्यकर्त्ता क्या सोच रहा है। आज लोग बीजेपी को जिस रूप में देख रहे हैं , वह उन लाखों कार्यकर्तों की देन है जो बिना किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के पूरी ज़िंदगी काट दी। असम में बीजेपी सरकार है पर आप आप्टे साहब को नहीं भूल सकते हैं। आज की पूरी चुनावी समीक्षा सिर्फ मोदी लहर पर ख़त्म हो जाती है। उनका क्या जो 2 सीटों से लेकर दो तिहाई का सफ़र तय किया। बीजेपी सबको अपनाती है पर आपने काडर को हमेशा आगे लेकर बढ़ती है। वही जो घर नौकरी सब त्याग कर आया। मोदी से लेकर मनोहर लाल तक सब वही लोग है जो पार्टी के लिए सर्वस्व त्याग दिया ।
आम आदमी पार्टी भी कुछ ऐसी ही पार्टी थी। वहा भी लोग थे जो नौकरी छोड़ कर आये थे। नई राजनीति की तलाश में। बीजेपी हमेशा हिन्दुत्व को साथ रखकर चलती रही। क्योकि जो लड़ रहा वह सिर्फ विकास के लिए घर नहीं छोड़ा था। ठीक आप का वह कार्यकर्त्ता जो नौकरी छोड़ कर आये वे सिर्फ केजरीवाल को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनाने नहीं आये थे। उनकी एक लड़ाई थी , वह लड़ाई उप राज्यपाल या मोदी से नहीं थी। वह एक विचार की लड़ाई थी। हुआ यूँ कि लोग जो ऊपर से आये वो तो ठीक था , परन्तु नीचे वाले का क्या हुआ ? पंजाब में ही लोग बहार से आये और ऊपर से भी आये लेकिन वहाँ के काडर का क्या हुआ ? आप को इन बातों पर सोचना चाहिए, evm को लेकर बच्चों जैसी बातें नहीं करनी चाहिए। एक चिठ्ठी हमारे हाथ लगी जो बहुत कुछ बयां कर जाती है। एक कार्यकर्त्ता की नाम हमने छुपा दिया है ताकि पार्टी वालों को पता न चले।
आम आदमी पार्टी भी कुछ ऐसी ही पार्टी थी। वहा भी लोग थे जो नौकरी छोड़ कर आये थे। नई राजनीति की तलाश में। बीजेपी हमेशा हिन्दुत्व को साथ रखकर चलती रही। क्योकि जो लड़ रहा वह सिर्फ विकास के लिए घर नहीं छोड़ा था। ठीक आप का वह कार्यकर्त्ता जो नौकरी छोड़ कर आये वे सिर्फ केजरीवाल को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनाने नहीं आये थे। उनकी एक लड़ाई थी , वह लड़ाई उप राज्यपाल या मोदी से नहीं थी। वह एक विचार की लड़ाई थी। हुआ यूँ कि लोग जो ऊपर से आये वो तो ठीक था , परन्तु नीचे वाले का क्या हुआ ? पंजाब में ही लोग बहार से आये और ऊपर से भी आये लेकिन वहाँ के काडर का क्या हुआ ? आप को इन बातों पर सोचना चाहिए, evm को लेकर बच्चों जैसी बातें नहीं करनी चाहिए। एक चिठ्ठी हमारे हाथ लगी जो बहुत कुछ बयां कर जाती है। एक कार्यकर्त्ता की नाम हमने छुपा दिया है ताकि पार्टी वालों को पता न चले।
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