​हमहु आंदोलन करब

                  ( विचार अड्डा -[यूं हीं ] )


''महात्मा गांधी कैसे आंदोलन के सीख लेले रहन'' ऐसी बातें उत्तर प्रदेश के गलियों में गाहे—बगाहे गूंजती रहती है। घर का एक आधा दिमाग का बालक बार—बार कह रहा था हमहुं आंदोलन करब—2 । वैसे बंगाल के बाद कहीं सबसे ज्यादा आंदोलन हुए या यूं कहें उत्तर प्रदेश में आंदोलनों की सूची लंबी है। खैर, वो लड़का जो कह रहा था वो शायद जेएनयू और डीयू (रामजस कॉलेज) में हो रहे प्रदर्शन को आंदोलन समझ लिया है। और समझे भी क्यों नहीं? भाकपा—माले की नेता तथा आॅल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेंस एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन कहती है— दिल्ली विश्वविद्यालय आंदोलनरत हैं। पता नहीं, किस प्रकार की अभिव्यक्ति की आजादी की बात ये लोग कर रहे हैं? उधर जेएनयू की आयशा की छात्र नेता शेहला राशिद कहती हैं उनका बाल कैंपस में नोचा गया, लात—घूसे मारे गये , तो वहीं राकेश सिन्हा (रास्वसंघ के स्वघोषित विचारक) कहते हैं कि जेएनयू का नाम आते हीं मन में जो धारणा बनती है वो बताने की आवश्यकता नहीं है। सामाजिक विज्ञान के विषयों में माक्र्सवादी का विचारधारा का वर्चस्व है। वे इतिहासकार या सामाजिक विज्ञान के लोग हाशिये पर हैं जो इनसे सहमति नहीं रखते हैं। वैसे महापंडित उमर खालिद को बुलाने का मंसा बस्तर पर बहस कराने की नहीं थी। जिसपर देशद्रोही होने का केस कोर्ट में हो, ऐसे इंसान को अगर बस्तर पर बहस में बुलायेंगे तो संघर्ष होगा ही। वैसे जनसत्ता एवं अन्य अखबारों में इस विषय पर  संपादकीय और चंपकूदकीय लिखने वालों की बाढ़ आ गयी है। वैसे इस लड़के की परेशानी एक और बात से है। उसने शुरू से ही राशन न मिलने से लेकर पोशाक के पैसे तक के लिए आंदोलन होते देखा है। अब ये देखकर घर का बबुआ भी कह रहा है कि 'हम हूं आंदोलन करब।'


                    -दिवाकर

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