जिसने अंग्रेजों के समय में नकली नोट छापे

                      (भूले बिसरे)

                        चित्र - कविता कोश

'अंगुली में डसलें विया नगिनीयां रे.... हाय ननदी सइयां के जगाई दे...
जैसी र्पूवी गीतों की धुन जब सुनाई देती है तो बरबस ही इन गीतों के रचयिता महान स्वतंत्रा सेनानी को उनके घर में गुमनाम करने का दर्द जलालपुर वासियों को आज भी है। आज उनका 130वां जन्म दिवस है। राज्य सरकार केवल नाम​ का ​ही इस दिन सरकारी कार्यक्रम आयोजित करता है। इनका जन्म सारण जिला के जलालपुर प्रखंड के मिश्रवलिया गांव में 16 मार्च, 1886 को हुआ था । पंडित मिश्र का भोजपुरी भाषा के उन्नयन में वैसा ही स्थान है जहां हिंदी के उन्नयन में भारतेंदु हरिशचंद्र की रचनाओं का है। यह विडंवना है कि आज भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की ज​द्दोजहद चल रही हैं । 
अंग्रेजी सत्ता के जाली नोट छाप कर उस​की अर्थव्यवस्था को डमाडोल कर देने वाले पंडित मिश्र हर रात को छापे गए नोट सुबह भिखारियों ​के वेश में आए स्वतंत्रता सेनानियों में बाट दिया करते थे। 
जब इस बात की जानकारी अंग्रेजी सरकार को लगी तो उन्होंने गोपीचंद नाम के सीबीआई अधिकारी को उनके पीछे लगा दिया जो उनके घर का काम—काज देखने लगा। मिश्र इतना गुपचुप तरीके से नोट छापने का काम करते थे कि उक्त अधिकारी को तीन साल का समय सिर्फ यह पता लगाने में लग गया कि पंडित मिश्र नोट ​कब छापते हैं। आखिरकार 1924 को गोपीचंद के निशानदेही पर पंडित मिश्र को गिरफ्तार कर लिया तथा उनका छापाखना जब्त कर लिया गया जो आज भी सीआईडी के दफ्तर मे रखा गया है । 
गिरफ्तारी के वक्त पंडित मिश्र ने एक गीत गाया—
              हंसी—हंसी पनवां खियवले गोपीचनवां 
              पिरीतिया लगा के पहुंचवले जेहलखनवां
                                                   
               

                 -   विपुल सिंह व अलका रानी 




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