यूपी के बाहुबली ......

               (हस्तिनापुर के बोल)

हरिशंकर तिवारी

'गॉड फॉदर' फ़िल्म के अभिनेता अल पचीनो ने परदे पर इटली के माफ़ियाओं की कहानी को जीवंत कर दिया । उत्तर प्रदेश के सिकागो कहे जाने वाले गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी ने सभी माफ़ियाओं को राजनीति में उतार दिया। और गुंडे बन गए बाहुबली। इस बार चिल्लूपार से विनय शंकर तिवारी 3359 वोट से जीत गए । विनय शंकर तिवारी हरिशंकर तिवारी के बेटे हैं। 

कौन है हरिशंकर तिवारी -------

      गोरखपुर विश्वविद्यालय के कार्य समिति की बैठक में गोरक्ष धाम के महंत दिग्विजय नाथ और गोरखपुर विश्वविद्यालय के स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सूरतमणि त्रिपाठी के बीच हुई कहा सुनी में सूरतमणि त्रिपाठी के समर्थन में दर्शक दीर्घा से चिल्लाने वाले हरिशंकर तिवारी की कहानी यही शुरू होती है । कभी विश्वविद्यालय के बगल में कमरा किराये पर ले कर रहने वाले हरिशंकर , आज उसे कमरे से कई एकड़ों में फैले तिवारी के हाता में रहते है । पहली बार अपराध को भी जाति के खाँचों में ढालने का काम किया ।  पहली बार जेल के अंदर से चुनाव जीतने कारनामा किया । इसी घटना को लोग अपराध का राजनीति करण कहते हैं । 23 साल लगातार चिल्लूपार से विधायक रहे हरिशंकर तिवारी 1997 से 2007 तक राजनीति के कद्दावर खिलाड़ी रहे । लगभग सभी सरकारों में मंत्री रहे । चिल्लूपार से तिवारी 3 बार निर्दलीय विधायक रहे। बाद में 2 बार कांग्रेस के टिकट पर जीते । 1998 में कल्याण सिंह की सरकार में वो साइंस और टेक्नॉलजी मंत्री रहे। 2000 में रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री रहे हैं। 2001 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे। फिर 2002 की मायावती सरकार में भी मंत्री रहे। 2003-07 की मुलायम सरकार में भी मंत्री रहे। ख़ुद तो मैदान में आये ही पूरा खानदान भी ले कर आये । बेटे विनय शंकर तिवारी फिलहाल चिल्लूपार से विधायक हैं । दूसरे बेटे भीम शंकर तिवारी संत कबीर नगर से सांसद रह चुके हैं। भतीजे गणेश शंकर तिवारी विधानपरिषद के अध्यक्ष हैं । कमाल की बात यह कि त्रिनिदा एंड टोबैगो के प्रधाममंत्री रहे कमला प्रसाद ( 26 मई 2010 से 9 सितम्बर 2015) को भी इनका रिश्तेदार बताया जाता है । 

     राजेश त्रिपाठी

   ख़त्म होती ताकत ----      



    70 के दशक में जब जेपी भारत को बदलने के लिए छात्रों को आंदोलित कर रहे थे तब गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने तमंचों को गरमाना शुरू किया । पहले लड़ाई थी ठाकुर बनाम पण्डित की । बलवन्त सिंह छात्र नेता थे और ठाकुरो की लॉबी उनके साथ थी । पंडितों की लॉबी हरिशंकर तिवारी के साथ । बलवन्त को साथ मिला अपने ही जाति के वीरेंद्र प्रताप शाही का । यहाँ से शुरू हुई लड़ाई वर्चस्व की । अपराध, जूनून बनकर सर चढ़ गया । रूदल सिंह , श्रीप्रकाश शुक्ला , रवींद्र सिंह , वीरेन्द्र प्रताप शाही जैसे न जाने कितने मर गए । लोग बताते है कि इस पहले गैंगवार में लगभग 50 लोग मरे । एक दौर वह भी था जब बीबीसीें गोरखपुर से रोज़ नई कहानी ले कर आता था । 90 के दशक में बातें पैसों तक ही सीमित हो गई। रेलवे के ठेके इसके अड्डे बने । यहीं से जाति की लड़ाई ख़त्म हो गई । पैदा होने लगे नए लोग । 2007 में चिल्लूपार से बसपा के श्मशान बाबा के नाम से मशहूर राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को हरा दिया । 2012 में भी हरिशंकर हार गए । लोग कहते है कि दक्षिण की इस सीट पर बीजेपी ने बसपा को वोट कर दिया। इस बार बीजेपी से लड़े श्मशान बाबा 3359 वोटों से चुनाव हार गए ।
अब जब हरिशंकर तिवारी ढ़लान पर है तब उनके ही पैदा किये हुए नए लड़के पूर्वांचल में तमंचे लहरा रहे हैं । मुख़्तार से लेकर बृजेश सिंह तक , सब इसे दादा की देन हैं ।

- रजत अभिनय  और  दिवाकर


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