बेघर-बेसहरा बच्चियों की मां
(दूर दराज़)
कहता है आसमा में सुराग नहीं होते” एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारो, । आज के भागम-भाग वाली जिंदगी में हम लोग सिर्फ अपनी खुशी के लिए दौड़ लगा रहे हैं । सभी पर्व त्योहार सिर्फ अपने परिवार की खुशी मनाने के लिए मनाते हैं, परंतु इस दौरान हम यह भूल जाते हैं कि कई ऐसे घर हैं जहां पैसे नहीं रहने के चलते न पकवान बनते हैं और न खुशियां बटती हैं। “अंधेरे पर क्यों झल्लाएं अच्छा हो एक दीप जलाएं, वह जिंदगी किस काम की जो खुद के लिए गुजार दी। जीना उसी का नाम है जो औरों के काम आ सके।” “नई धरती ” सामाजिक संस्था की सचिव नंदिता बनर्जी के ऊपर यह बिलकुल ही फिट बैठता है । रेलवे में वरिष्ठ अधिकारी गोविन्द पद बराट की प्रथम सुपुत्री नंदिता बनर्जी उस महिला का नाम है जिसने अनाथ और बेसहारा कचरा चुनने वाली बच्चियों के लिए शिक्षा ही नहीं अपितु उनके व्यक्तित्व निर्माण में भी प्रभावी भूमिका निभा रही है।
सेवानिवृत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की वरिष्ठ महाप्रबंधक नंदिता बनर्जी ने 45 वर्ष की उम्र में स्टेट बैंक की नौकरी को लात मारकर इस पुनित कार्य को करने का बीड़ा उठाया । आज वर्ग 1-8 तक के बेसहरा-अनाथ बच्चों को नई धरती नाम की संस्था जिसकी सचिव नंदिता बनर्जी है शिक्षा के साथ इनका कौशल विकास भी कर रही है ।
वर्ष 2001 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया,दानापुर के चीफ मैनेजर पद को त्याग कर नंदिता बनर्जी एक ऐसी मंजिल पाने को चल दी ,जिसकी परिणीती क्या होगी इसका अंदाजा उन्हें कतई नहीं था । 2001 से 2005 समाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री सुधा वर्गिज के साथ काम के दौरान उनसे मिली प्रेरणा ने नंदिता को बिलकुल ही बदलकर रख दिया । चार वर्षों तक उनके साथ काम का अनुभव और उनसे मिली सीख ने नंदिता बनर्जी को वो हौसला दिया जिसके दम पर पर आज समाज की धारा से हटे बच्चों को राह दिखलाने के काम में आ रही है । 2005 में नंदिता बनर्जी ने सेवानिवृत बैंकरों के साथ मिलकर नई धरती नामक एनजीओ की शुरुआत की जो सोसायटी एक्ट के तहत पजीकृत है।
नई धरती एनजीओं के माध्यम से नंदिता ने ऐसे बीपीएल धारकों को स्वालंबी बनाने का काम शुरु किया जो जातिगत नहीं बल्कि आर्थिक रुप से गरीबी रेखा के नीचे थे । नंदिता ने 2005 में ही कुछ सेवानिवृत शिक्षकों और बैंकर्स को मिलाकर सामाजिक संस्था का गठन किया। प्रयास था कि समाज का जो भी कमजोर तबका इससे जुड़े, उसके लिए उसे अपना कल ज्यादा सुनहरा दिखे। संस्था ने शुरुआती दिनों में ही दानापुर ब्लॉक और पटना सदर के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के 25 स्वयं सहायता समूह को नाबार्ड के सहयोग से बनाया, जिससे इनसे जुड़ी 250 महिलाओं की जिंदगी में आर्थिक रूप से सशक्तीकरण आया। इन सब को बैंक से जोड़ा, लोन दिलवाया, रोजगार से जुड़े काम का प्रशिक्षण दिया गया और साथ ही सब को बेसिक शिक्षा भी दी गई। 2007 तक यह प्रोजेक्ट चला, इसके बाद 2007 में मसाला यूनिट की शुरुआत की गई। इसमें ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को जोड़ उनके द्वारा मसाला, सत्तू आदि उत्पादों का उत्पादन किया जाने लगा। इन उत्पादों की बिक्री के लिए नंदिता सड़कों पर भी घूमीं और अपने पहचान वालों को भी उद्देश्य बताते हुए इसके प्रति उत्साहित किया। अपार्टमेंटों में जाकर भी मसाले बेचे। पुराने सहकर्मियों, दोस्तों जानने वालों ने इनके पति से यहां तक कहा कि नंदिता पागल हो गई है क्या ? यह क्या सब कर रही है ? लेकिन, पति ने हर कदम पर पर साथ दिया । पति के साथ ही परिवार में एक बेटी महाश्वेता है। महाश्वेता इंफोसिस में एसोसिएट कंसलटेंट के पद पर है, पति और बेटी के सपोर्ट ने इन्हें हिम्मत दी और आज यह कई जिंदगी को नई धरती देने में कामयाब रही।
नंदिता ने 2007 में बेसहारा महिलाओं के लिए पुनर्वास केंद्र खोला । 2009 तक यह केंद्र चला । इस दौरान 26 महिलाओं को आश्रय दिया । अस्पताल, महिला हेल्प लाइन आदि से आई कई महिलाओं और बच्चियों को नई जिंदगी दी । 2009 से छोटी बच्चियों को अपनाना शुरू किया। कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के जरिये मुसहर समुदाय की बीस बच्चियां शुरुआत में इनके पास आईं, जो कल तक कचरा चुनने का काम करती थीं। इस प्रोजेक्ट का नाम दिया अंकुर। यहां शुरुआत में इन्हें जीवन की बेसिक ट्रेनिंग दी । इन्होंने समाज की खातिर जो काम किया है, वह सचमुच मिसाल है। बिना किसी प्रचार के नंदिता समाज के लिए अपने कामों में कई वर्षों से लगी हुई हैं । इनके प्रयासों से कई लोगों में एक सकारात्मक बदलाव आया है। एक संस्था बना कर इसके अधीन सिस्टर निवेदिता बालिका विद्यालय समेत कई सामाजिक कार्यों के प्रोजेक्ट चला रही नंदिता से मिलने मैं राजीव नगर रोड नम्बर 24 स्थित इनके कार्यालय पहुंचे।
किराए के मकान में चलने वाला कार्यालय विद्यालय में ही था । प्रांगण में मासूम बच्चियों की किलकारी गूंज रही थी। एक सामान्य से कार्यालय में हमारी भेंट नंदिता से होती है। इनकी बातों में सच्चाई है, साथ ही चेहरे पर बच्चों-सी मुस्कान। कल तक स्टेट बैंक में मैनेजर की नौकरी करने वाली नंदिता अपनी इस जिंदगी से खुश हैं, जहां वह हर रोज 16 घंटे से ज्यादा बेहतर समाज बनाने के लिए काम करती हैं । आज इनके द्वारा संचालित इस आवासीय बालिका विद्यालय में 69 ऐसी बच्चियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं, जो कल तक कचरा चुनने का काम करती थीं या फिर उनका इस दुनिया में कोई नहीं। कई ऐसी भी हैं, जो अपने घर परिवार से बिछड़ गई थीं और यहां आश्रय पाकर बेहतर जिंदगी की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
नंदिता बनर्जी द्वारा चलाये जा रहे स्कूल की जिन-जिन कक्षाओं में गए, बच्चियों ने खड़े होकर मेरा अभिनंदन किया। बच्चियों के चेहरे पर आत्मविश्वास और उनका ज्ञान देखकर कोई भी चकित हो सकता है। इसके बाद हमने नंदिता से जानना चाहा कि आखिर अच्छी खासी बैंक की नौकरी को छोड़ समाज सेवा में क्यों गई ? नंदिता का जवाब था कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 20 साल तक नौकरी करने के बाद बैंक की दानापुर साखा में बतौर वरिष्ठ प्रबंधक (चीफ मैनेजर) के पद पर थीं । इस दौरान लगा कि समाज के लिए जो कुछ करना चाहती हूं वह नौकरी में रह कर नहीं कर सकती। पति आरके बनर्जी भी स्टेट बैंक में ही कार्यरत थे। उनसे सलाह लेने के बाद नौकरी से त्यागपत्र देने का निर्णय लिया। यह फैसला लेना इसलिए भी जरूरी था कि अगर 60 वर्ष की उम्र के बाद कुछ करना शुरू करती तो तब तक बहुत देर हो जाती । इसलिए 2001 में करीब 45 साल की उम्र में नौकरी से सेवानिवृती ले लिया। उन्होंने बातचीत में कहा कि यह सब करना मुझे अच्छा लगता है इसलिए मैं करती हूं। इसके अलावा और कुछ भी नहीं है ।
नंदिता ने 2009 के मई में आठ अनाथ बच्चों के साथ अंकुर प्रोजेक्ट की शुरुआत किया । तीन माह तक उनको पाला-पोशा उनकी गाली सुनी जो उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी का पहले हिस्सा था । इसमें से सात बच्चियों का नामांकन किया और उन्हें सेयरिंग-र्केयरिंग करना सिखाया । जिसके बाद इसका परिणाम अपेक्षित मिला । तीन माह की कठिन मेहनत के बाद स्लॉम बस्तियों से 12 और बच्चे मिले । जिसके बाद इनकी संख्या 20 पहुंची । जिन आठ कचरा बिनने वाली बच्चियों को पहले नामांकन के बाद जो कुछ सिखाया था उन आठों बच्चियों ने बाकी के 12 बच्चों को भी उसकी सीख दी जिसमें नंदिता की टीम ने भरसक मदद की ।
2011 अप्रैल 05 को कक्षा 1-5 तक सारदा संघ स्कूल 2014 तक चलाया ।उसके बाद आसपास के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले अभिभावकों ने उनकी संस्था में अपने बच्चे को पढ़ाने और ले जाने की पेशकश की । 2015 में नंदिता बनर्जी ने पटना के गोला रोड में इस स्कूल को रेसिडेंसियल स्कूल का स्वरुप दिया । जहां 58 बच्चे घर से और 20 अनाथ कचरा चुनने वाली थी । वर्तमान में नंदिता बनर्जी के विद्यालय में 69 बच्चें है जिनमें से 20 बेघर है बाकि कचरा चुनने वाली हैं ।
नंदिता बनर्जी अपनी संस्था नई धरती के माध्यम से एक स्कूल बेघर कचरा चुनने वाली बच्चियों के लिए निर्माण कर रही है जिसके लिए इन्होंने अपनी जीवन भर की जमा पूंजी जमीन की खरीदी में लगा दी । अब इनके सामने वर्तमान में उस जमीन पर कंस्ट्रक्शन करने की बात है जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता-सह राज्यसभा सांसद रविंद्र किशोर सिन्हा ने आगे बढ़कर मदद की पेशकश की है । श्री सिन्हा ने उन्हें प्रत्येक वर्ष अपने कोष से तीन चार कमरे बनावाने की हामी भर दी है। नंदिता के इस प्रयास को हम सलाम करते हैं । साथ ही श्री सिन्हा का भी सम्मान करते हैं ।
विशेष आभार -गोविन्द कुमार चौधरी
प्रधान संवादाता ,हिन्दुस्थान समाचार (पटना)
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