वह मुस्लिम नेता जो इमाम बुखारी से सीधा भीड़ गया !

                            (भूले बिसरे )

                   Photo- two circles

यदि वें दुनिया छोड़ कर न गए होते तो भी आने वाली पीढ़ी उन्हें कभी न कभी याद जरूर कर लेती । वैसे तो यदि आप राजनीति में बिहार से नेता के तौर पर शाहबुद्दीन का नाम ले तो लोग साहेब को याद करते है । इसमें लोगों की कोई गलती नहीं है । मीडिया है जिसे बेच दे , आप खरीद  लेते है । एक और शहाबुद्दीन का नाम  बिहार की राजनीती में लिया जाता है। टश वह शहाबुद्दीन है जिन्होंने 2008 में इंडिया गेट में वोट क्लब में शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी से हाथापाई कर ली थी । पंडित नेहरू जिन्हें 'नॉटी' कहा करते थे । हम बात कर रहे है ख़ुद को समाजवादी कहने वाले सैयद शहाबुद्दीन की । 
  राजनीति की गलियारों में कहानियां खूब चर्चित हैं। कुछ कहा सुना हुआ और कुछ प्रमाणिक है जैसे बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद लोकसभा से इस्तीफ़ा देना । किशनगंज से सासंद रहे सैयद  साहब का जन्म 4 नवम्बर 1935 को हुआ । 1958 को भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए चुने गए । दक्षिण पूर्वी एशिया , हिन्द महासागर और प्रशांत के सँयुक्त सचिव रहे । 
         1978  में इस्तीफ़ा दे कर राजनीति में आ गए। लग कहते हैं कि सैयद साहब को अपने पाले में लाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी ने काफ़ी प्रयास किया । इंदिरा जी ने भी कुछ ऑफर दिए थे पर उन्हें ठुकरा दिया । सैयद शहाबुद्दीन तो यह कहते है कि वाजपेयी ने तो उन्हें राजनीति में न जाने के9 सलाह दी थी । लेकिन पटना को अपनी राजनीति का अड्डा बनाने वाले शाहबुद्दीन लगातार राजनीति में सक्रिय रहे । मुस्लिम राजनीति में दो मुख्य घटनाए हुई , जिससे वे जुड़े रहे । पहला शाह बानो केस । इस बार वे शाह बानो के खिलाफ थे । कोर्ट के फैसले के बाद राजीव सरकार पर दबाव बनाने वाले में यह एक बड़े किरदार थे । आज शायद आप उन्हें महिला विरोधी या इस्लाम का पैरोकार के खाँचे में बाँट सकते है , परन्तु वे संघीय ढांचे के बड़े पैरोकार थे। 
                              Shah Bano 

   बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान वे लगातार सक्रिय रहे । वह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने मुखिया भी रहे । एक बार महंत गोपाल दास से बोलो कि यदि कोर्ट में यह सिद्ध जो जाता है कि वहाँ मंदिर है , तो वह अपना केस वापस ले लेंगे । हुआ भी कुछ ऐसा ही । एक बार लोकसभा में  वह बोले कि यदि वह केस जीत जाते है तो उस जगह चारदीवारी बनायेंगे । वह तख़्त लगा कर उस पर लिखगें कि 'rest  in peace , here right secularism' 
        वैसे कहने वाले कहते है कि मौलाना आजाद के बाद मुस्लिमो के सबसे बड़े नेता थे । उन्होंने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के पहले ही अपनी मैगज़ीन मुस्लिम इंडिया के माध्यम से बाकायदा तथ्यों के आधार पर इन कमियों को उजागर कर चुके थे । हालांकि उन्ह पर कट्टर होने के आरोप लगाते रहे । अब वह नहीं रहे पर मुस्लिम राजनीति में बड़े चेहरें जरूर रहे ।

                 - रजत अभिनय और दिवाकर 

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