क्यों खतरनाक है मायावती का यह बयान

                     (विचार अड्डा)


        मायावती ने बीजेपी से हार के बाद जो बयान दिया वह अप्रत्याशित नहीं था । लोकसभा चुनाव के बाद लालू प्रसाद यादव ने भी ऐसा ही बयान दिया था।  ऐसा बयान वह फिर कभी नहीं दिए क्योंकि बिहार चुनाव में उनका गठबंधन जीत गया । लेकिन मायावती के इस बयान से घातक परिणाम आ सकते है । एक बड़ी बात जो कि जाटव समाज में फैलाया जा रहा है कि ' बटन दबाता है हाथी पर,वोट जाता है कमल पर '। आज का मायावती का बयान पहले ही जाटव समाज में घोला जा रहा है। बहुत ही अचरज की बात है कि किसी बड़े पत्रकार  या समाचार वर्ग ने इस बात पर गौर नही किया । शायद चुनाव भ्रमण के दौरान इस बात का अनुभव न हुआ हो ।
                मेरे पास इसके अनुभव है । एक तो मेरे ख़ुद के गांव का । जहाँ हमारे पड़ोसी गांव का अखिलेश गौतम जो कि एक खेतिहर मजदूर है । मेरे चाचा के खेत में काम करता है। उसेंने एक दिन बात बात में बोला कि " तू सब बईमानी करत हय, मोदीओ वाले में और अबकी । बटन दबाव हाथी पर और जात ह मोदी पर 
       अब आप कह सकते है कि मायावती का वोटर इतना वोकल तो नहीं होता है । लेकिन 2007 के चुनाव के बाद बसपा का समर्थक न सिर्फ वोकल हुआ बल्कि मायावती के इस स्थिति का जिम्मेदार है । उन्होंने 2007 में रंगदारी व अवैध शराब जैसे कामो में हाथ बढ़ाया और लोगों खासकर सवर्ण समाज को परेशान भी किया । ब्राह्मण समाज का मायावती से दूर जाने का मुख्य  कारण है । भले ही वह पत्रकरों से न वोकल होता हो लेकिन अब वह खूब बोलता है ।  मार्च में मैं लखनऊ में था। गोमती नगर विस्तार में एक छोटा बाज़ार जो लगभग ग्रामीण क्षेत्र जैसा था । विधानसभा BKT में कोई ग्राम पंचायत में आता है । वहाँ डीप व्यक्ति आपस में बात कर रहे थे । आवाज बहुत ही धीमी थी पर कोनों तक पहुँच रही थी। चर्चा यही था कि बटन दबाता हाथी पर और जाता बीजेपी पर है । मैं उनकी जातिगत पृष्ठभूमि पर दावा तो नहीं कर सकता , लेकिन अनुमान से जाटव थे। 
         एक प्रकार का अविश्वास फ़ैलाने का कार्य समाज के बीच चल रहा है। वह भी लोकतंत्र के खिलाफ । परिस्थिति भले ऐसी हो कि 40% लोगों ने मिलकर बाकि 60% के पसंद के खिलाफ सरकार बनालिया हो, लेकिन लोकतंत्र के खिलाफ अविश्वास बहुत ही खतरनाक है । मयवायी का बयान व evm मशीन वाली तर्क सामान्य तर्कों पर  कभी नहीं खड़ा होगा। वह एक बड़े समाज की नेता है । यह नहीं भूलना चाहिए की वह उनके साथ खड़ा है , जो कि जाटव है । गैर जाटव समय के साथ खेमा बदलता रहा है।  इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि 19 सीटों के बावजूद भी 22.2% मत उनको प्राप्त हुए । जो कि सपा से ज्यादा है।  हो सकता विधानसभा अनुसार उनके समीकरण उनके साथ न रहे हो लेकिन इस प्रकार प्रचार काफी खतरनाक है।  इसका विरोध होना चाहिए । मैं नहीं जानता कि जाटव समाज के शिक्षित लोग इस तरह के बातों के साथ है या नहीं , परन्तु बड़ी मात्रा में लोग खेतिहर मजदूर है । ये लोग सिर्फ नीला झंडा हाथी निशान जानते है । इस बात पर विश्वास करने वाले लोगों के मन में अविश्वास पैदा होगा। जो लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है । 
   उम्मीद है कि लोग इस पर विश्वास न करेंगें।
      

         -रजत अभिनय

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