अपने आप से परेशान 'आप' !
(हस्तिनापुर के बोल)
चुनाव , चुनाव और चुनाव। 2014 से भारत चुनाव के मूड से बाहर ही नहीं आया। पहले तो सिर्फ देश के चुनाव को ही ज़्यादा प्रचार प्रसार मिलाता था लेकिन अब तो नगर निगम के चुनाव भी राजनीतिक दलों के भविष्य तय करने में लगें हैं। यूपी चुनाव के पहले मुंबई महानगर पालिका को भी ख़ूब तौला गया। फ़िलहाल अब चुनाव हैं दिल्ली राज्य के तीन नगर निगम चुनाव के। महत्ता तो यूँ हो गई हैं कि बीजेपी के स्टार प्रचारक की लिस्ट में कई राज्यों के मुख्य मंत्री शामिल हैं। देश के प्रधान मंत्री भी कोई रैली कर दें तो कोई अचरज की बात नहीं है। केजरीवाल जी ने अपना वादा - ऐ - ध्यान गुजरात से हटा कर नगर निगम पर कर लिया है। राहुल गांधी और योगेंद्र यादव भी कसरत में लगे हुए है। जब सब इतने कड़े परिश्रम से लगें है तो हमनें भी सोचा कि आराम कुर्सी से हम भी आप तक पहुँच लें।
MCD चुनाव में सबसे बड़ा दाव आम आदमी पार्टी पर लगा हैं। चुनाव इसलिए बहुत मायने रखते हैं कि जब विपक्ष के रूप में चेहरा ख़ोज प्रतियोगिता चल रही है तब केजरी का अस्तित्व पार्टी प्रदर्शन पर निर्भर करता है। आम आदमी पार्टी फ़िलहाल पंजाब और गोवा से हार कर लौटी है। लेकिन चुनाव के बाद कोई चिंतन शिविर आयोजित नहीं किया गया। आपको याद होगा कि लोक सभा हारने के बाद पूरी पार्टी ने रणनीति पर चर्चा की थी। मंथन हुआ और निकाला 67 सीटें।
तब भी बड़े बड़े मीडिया संस्थान अनुमान लगाने में असफल हो गए थे। लोग ने इसे केजरीवाल का हवा करार दिया। पत्रकार इस बात को कभी समझ ही नहीं पाए कि आप ने भी बीजेपी की भांति की एक काडर खड़ा किया। जिसने अपनी नौकरी , परिवार छोड़ कर चुनाव लड़ा। केजरीवाल को दिल्ली के घर घर तक घुसा दिया। आज नगर निगम के चुनाव में यही कोर काडर जीत के खिलाफ बहुत ही बड़ा रोड़ा बन सकता हैं। यह कोई अनुमान नहीं बल्कि हमने कई ऐसे लोगों से बात की जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के समय से साथ खड़े हैं। उनका कहना है कि49 दिन के सरकार में जो लोग थे वे ज्यादा लोग आंदोलन से आये थे। लेकिन दूसरी सरकार में और उसके बाद आये लोग ने पार्टी पर एक तरीके से कब्ज़ा कर लिया। संजय सिंह जो कि राष्ट्रीय प्रभारी है , लोग सबसे अधिक उनसे खफ़ा हैं। जीत के बाद संजय सिंह ने थोक के भाव में बहुत सारे लोगों को पार्टी में लाया। वे आज पार्टी के उच्च पदों पर आसीन हो गए। लेकिन उनका क्या जिनकी पूरा जीवन इसी विचार धारा के पीछे ख़त्म हो गई। राजनितिक जीवन लोग विचार धारा के साथ आते हैं लेकिन उनकी भी महत्वाकांक्षायें होती हैं। आज अंदोलन वाला कार्यकर्ता ही पार्टी के भीतर अपनी अलग लड़ाई लड़ रहा है। नगर निगम में नगर सेवक के टिकट वितरण में भी आम आदमी पार्टी ने जम कर उन्हें नकारा जो जमीन से जुड़े हुए हैं। लोग अपने लिए नहीं लेकिन पार्टी के लोगों के टिकट मांग रहे हैं। प्रश्न तो टिकट ख़रीद फ़रोख़्त की उठी हैं। बवाना के विधायक पर पार्टी यही आरोप लगा रही हैं।क्या केज़रीवाल फिर उन्हें साध पाएंगे? यह बहुत ही बड़ा प्रश्न हैं ?
चुनाव सिर्फ प्रचार के दम पर नहीं जीते जाते। कार्यकर्ता हमेशा अहम हिस्सा है इसका। यह बात आप भूल गई है।
तब भी बड़े बड़े मीडिया संस्थान अनुमान लगाने में असफल हो गए थे। लोग ने इसे केजरीवाल का हवा करार दिया। पत्रकार इस बात को कभी समझ ही नहीं पाए कि आप ने भी बीजेपी की भांति की एक काडर खड़ा किया। जिसने अपनी नौकरी , परिवार छोड़ कर चुनाव लड़ा। केजरीवाल को दिल्ली के घर घर तक घुसा दिया। आज नगर निगम के चुनाव में यही कोर काडर जीत के खिलाफ बहुत ही बड़ा रोड़ा बन सकता हैं। यह कोई अनुमान नहीं बल्कि हमने कई ऐसे लोगों से बात की जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के समय से साथ खड़े हैं। उनका कहना है कि49 दिन के सरकार में जो लोग थे वे ज्यादा लोग आंदोलन से आये थे। लेकिन दूसरी सरकार में और उसके बाद आये लोग ने पार्टी पर एक तरीके से कब्ज़ा कर लिया। संजय सिंह जो कि राष्ट्रीय प्रभारी है , लोग सबसे अधिक उनसे खफ़ा हैं। जीत के बाद संजय सिंह ने थोक के भाव में बहुत सारे लोगों को पार्टी में लाया। वे आज पार्टी के उच्च पदों पर आसीन हो गए। लेकिन उनका क्या जिनकी पूरा जीवन इसी विचार धारा के पीछे ख़त्म हो गई। राजनितिक जीवन लोग विचार धारा के साथ आते हैं लेकिन उनकी भी महत्वाकांक्षायें होती हैं। आज अंदोलन वाला कार्यकर्ता ही पार्टी के भीतर अपनी अलग लड़ाई लड़ रहा है। नगर निगम में नगर सेवक के टिकट वितरण में भी आम आदमी पार्टी ने जम कर उन्हें नकारा जो जमीन से जुड़े हुए हैं। लोग अपने लिए नहीं लेकिन पार्टी के लोगों के टिकट मांग रहे हैं। प्रश्न तो टिकट ख़रीद फ़रोख़्त की उठी हैं। बवाना के विधायक पर पार्टी यही आरोप लगा रही हैं।क्या केज़रीवाल फिर उन्हें साध पाएंगे? यह बहुत ही बड़ा प्रश्न हैं ?
चुनाव सिर्फ प्रचार के दम पर नहीं जीते जाते। कार्यकर्ता हमेशा अहम हिस्सा है इसका। यह बात आप भूल गई है।
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