एक आजादी ऐसी भी

 महिलाओं की आज़ादी के नए पैमाने पर पहले छमा शर्मा की कुछ बातें लिख रहा हूं
  पहले घूंघट और बुर्के में तुम सिर्फ पुरषों की देह थीं और अब तुम एक सार्वजानिक देह हो।
तुम चाहो भी तो हम तुम्हें इससे बाहर नहीं निकलने देंगे।
राधिका आप्टे जब एक फ़िल्म में कपड़े उतार देती हैं तो उन्हें असली स्त्रीवाद का प्रतीक बनाया जाता है। पहले बिकनी पहनने या लिप लॉप को कहानी और भूमिका की माँग बताकर वैधता प्रदान की जाती थी अब फ़िल्म को सेक्स के हथियार से सफल बनाने का आसान सा रास्ता ढूढ़ लिया गया है।


   यह भी एक विचार है। यह भी एक महिला हैं। हमने आपने टीम के लगभग सदस्यों से चर्चा की , कुछ एक मेहमान भी थे। चर्चा के मुद्दे था आखिर कितना दिखया जाय। क्या यह अपनी आज़ादी को व्यक्त करने का तरीका है? चर्चा और विषय दोनों ही पुराने है। हम जैसे 1990 के बाद पैदा हुए लोग अपने पूरी जिंदगी में इस बहस को सुना है। घर से लेकर नुक्कड़ तक , बेड से लेकर कॉलेज के कैम्पस तक। फ़िल्मो की दुनिया ने ही इस बहस को हमेशा छेड़ा है। शायद इसकी आवश्यकता भी फिल्म को ही ज़्यादा थी। उसे इसकी उपयोगिता पता थी।
    वैसे तो कई बिंदु उठ कर आये और हमने पूरी सहिष्णुता से रखा है। अल्का जी का कहना है कि "पहले तय करें कि आज़ादी क्या है? कैसी आज़ादी चाहिये। लैंगिक शब्द अपने आप में एक तरफ तो नहीं है , इसमें पुरुष भी है और महिलाएं भी। अगर पुरुष अर्धनंग प्रदर्शन करते हैं तो अगले दिन अखाबर में बिना धुंधला किये तस्वीर छपती है। वही जब महिलाएं टॉप लेस प्रदर्शन करती है तो वह एक रोजक कहानी होती है , तस्वीरें धुंधुली होती है। हम इन बातों को स्वीकार करना पड़ेगा कि पहनावा एक निजी फैसला है। कोई क्लीवेज दिखाये तो कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन ये बातें घर से आनी चाहिए।"
सिल्लु जी  का तो साफ़ कहना है कि क्या शादी में हम दादी की साल पहन कर जाऊ।
   हमारे दो मेहमान भी थे , लक्ष्मी शर्मा जी व उड़ान ट्रस्ट की सचिव हीना माथुर
   लक्ष्मी को लगता है कि इस तरह के पहनावा उचित नहीं है। "लोग भले ही इस बात को ओछी मानसिकता बात दें लेकिन अंगप्रदर्शन से उत्तेजना तो पैदा होती। हालांकि कि इसके लिए वह परिवेश जिम्मेदार है जिसे नीले वाली मेरी और पीली वाली तुम्हरी होती है। समाज में लड़कियों की ऐसा वर्णन किया है कि लड़के उस मानसिकता से उभर ही नहीं पाए । वह अब भी देह है। क्लीवेज के मामले में भी उसे खाँचे में ढाला जा रहा है। महिला की आज़ादी का अंगप्रदर्शन से कोई लेना देना नहीं। वही हीना कहती है माता पिता को लड़की के बजाय लड़को को ज्यादा सुसंस्कृत बनाने से समाज ज्यादा  बेहतर होगा।

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