मुन्नवा फिल्म देखने गया है!
(फ़िल्मची)
चच्चा, मुन्ना को कहीं देखें हैं का? मोबाईल बनावाना था।
देखना का है! कुछ करना धरना तो है नहीं। गया होगा फिल्म देखने।
अच्छा, फिल्म देखना कौनो गुनाह थोड़े है!
गुनाह तो नहीं है बबुआ, लेकिन अवारागर्दी से कम ना है।
चच्चा, सिनेमा एतना भी खराब नहीं होता।
तू तो कहबे करोगे! तुम्हारी पूरी पीढ़ी सिनेमा देख-देख के बरबाद हुई है।
ठीकठाक कमा-खा लेते हैं, बरबाद कहां हुए?
कौनो कलक्टर भी तो नहीं बने!
उ तो किस्मत-किस्मत का बात है चच्चा। इसमें सिनेमा का क्या दोष?
दोष! अरे...आज जेतना चोरी, डकैती, व्याभिचार, नशाखोरी हो रहा है, उ सब के पीछे सिनेमा का हाथ है।
इ कइसे?
अरे कइसे का! सिनेमा में रहता का है? भौंडापन, फूहड़ता, नशा और अपराध का महिमामंडन। और तो और, औरत जात सरेआम तमाषा बने फिरती है। नया लड़कन इ सब देख के पगला जाता है और फिल्मी स्टाइल में कर्म-कुकर्म करने लगता है।
अच्छा चच्चा, इ सिनेमा केतना साल पुराना होगा?
हमको का मालूम? हमको इहे एगो काम रह गया है!
हम बताते हैं। सिनेमा करीब सवा सौ साल पुराना है। अब आप इ बताइये कि सिनेमा के आने से पहले हमारे यहाँ चोरी, डकैती, व्याभिचार, नशाखोरी आदि नहीं होता था का?
हाँ, इ सब तो पहले भी था।
तब इसमें आप सिनेमा को काहे दोषी मानते हैं? खिसियाइयेगा नहीं।
खिसियाने का कौनो बात नहीं है, लेकिन फिल्म-इल्म कोई अच्छी चीज़ नहीं है।
रुकिये, अभिये आप मार्का का बात बोले हैं। दरअसल हमलोग को फिल्म का कोई इल्म नहीं है।
एकरा में इल्म का कौन बात है रे?
है न। जइसे, बाजार में अच्छा और बुरा दोनों तरह का किताब मिलता है, वैसे ही बाजार में अच्छा और बुरा दोनों तरह का सिनेमा उपलब्ध। अब हमको चुनना है कि हम का देखते हैं, अच्छा या बुरा। इल्म इसी बात में है कि हम चुनकर सिर्फ अच्छा सिनेमा देखें और बुरे को नकार दें।
बबुआ, सत्तर पार गए लेकिन आजतक कौनो अच्छा सिनेमा का नाम नहीं सुने।
उ इसलिए काहे कि अच्छा सिनेमा आप तक पहुंचिए नहीं पाया। हमको पूरा विश्वास है चच्चा कि जब आप एक बार अच्छा सिनेमा देख लीजियेगा, तब उसके बारे में आपकी सोच बदल जायेगी। गीत, संगीत, चित्रकला, साहित्य आदि की तरह सिनेमा भी तो एगो कला विधा ही है।
ठीक है। त देखाओ कबो एगो अच्छा सिनेमा। देख लेंगे। तू भी याद रखोगे।
ठीक है चच्चा। पक्का। प्रणाम।
जीते रहो।
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प्रशांत रंजन
लाजवाब
ReplyDeleteSahi kaha
ReplyDeleteHaha.. kya baat hai
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