हिन्दी दिवस...
( विचार अड्डा )
क्या बात है, आज सोशल मीडिया पर सभी लोगों का हिन्दी के प्रति अटूट प्रेम देखकर मेरा मन भर आया। ऐसा प्रेम सिर्फ १४सितम्बर को न होकर वर्ष भर रहेगा तो वह दिन दूर नहीं मित्रों जब हिन्दी राष्ट्रभाषा बन जायेगी।
लोग कहते है कि हम आज़ाद है, हमें तो आज़ाद हुए 70 साल हो चुके है, मैं पूछता हूँ कि कैसे आज़ाद हो गए भाई? आज भारत में कहा जाता है कि "अगर आगे बढ़ना है तो अंग्रेजी सीखो.." यही वाक्य दिल में गहरी चोट कर जाता है। नौकरी चाहिए तो अंग्रेजी, सरकारी या निजी दफ्तरों में अंग्रेजी, सदनों में अंग्रेजी, न्यायिक मामलों में अंग्रेजी। और उससे भी बड़ी बात यह है कि ये सब भारत में हो रहा है। और इसे जो लोग आज़ादी समझते है, उन्हें ऐसी आज़ादी की बधाई।
वो लोग नहीं रहे जो हिन्दी के लिए मर मिटने को तैयार थे।और वास्तव में उन्होंने हिन्दी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी,फिर भी देश की जनता नहीं समझ पा रही है। आज भी कुछ लोग है जो आज भी हिन्दी के लिए जी रहे है। कल मुझे हिन्दी के महान लेखक, पद्मश्री अलंकृत डॉ. नरेन्द्र कोहली जी को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके एक-एक वचन मेरे रोंगटे खड़े कर रहे थे। उन्होंने कहा कि "आज जिस प्रकार से हिन्दी के खिलवाड़ हो रहा है, वह भयावह है। दूसरी भाषाओं के शब्दों को जिस प्रकार हिन्दी में जोड़ा जा रहा है वह हिन्दी तथा भारत दोनों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हमारी हिन्दी इतनी समृध्द हो कि दूसरी भाषाएँ इसमें हस्तक्षेप न कर सके। हिन्दी के प्रत्येक शब्द के अपने अलग अर्थ है, जिनकी उपयोगिता दूसरे शब्दों से पूरी नहीं होती।
भाषा सरल या कठिन नहीं होती है, भाषा तो परिचित या अपरिचित होती है। जिन शब्दों को हम जानते है वे परिचित है तथा जिन्हें हम नहीं जानते वे अपरिचित शब्द होते है।"
साहब अंग्रेज तो चले गए इस देश से, लेकिन एक ऐसा हथियार छोड़ गए जिससे उन्होंने हमें आजीवन गुलाम बना दिया।यह हथियार कुछ और नहीं अंग्रेजी है।
यह ठीक है कि हमें कम से कम २ या इससे अधिक भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए, यह मैं भी मानता हूँ। लेकिन प्राथमिकता तो हमारे देश की ही भाषा को दी जानी चाहिए ना?
बचपन से हम हिन्दी पढ़ते , सुनते, बोलते आ रहे है। लेकिन क्या हम हिन्दी को सही रूप में बोल या लिख पा रहे है क्या? नहीं।
क्योंकि हमें जो बचपन से सिखाया गया, वही बोलते आ रहे है।
आज के समय हम हिन्दी बोलते समय या लिखते समय कई भाषाओं के शब्द उसमें मिश्रित कर देते है।
कई अखबार भी हिन्दी में और भी भाषाओं का मिश्रण कर देते है।
हम हिन्दी बोलें....
विशुद्ध हिन्दी बोलें....
गर्व से हिन्दी बोलें......
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा बनें......
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी को हिन्दी दिवस की बधाई...
राहुल
क्या बात है, आज सोशल मीडिया पर सभी लोगों का हिन्दी के प्रति अटूट प्रेम देखकर मेरा मन भर आया। ऐसा प्रेम सिर्फ १४सितम्बर को न होकर वर्ष भर रहेगा तो वह दिन दूर नहीं मित्रों जब हिन्दी राष्ट्रभाषा बन जायेगी।
लोग कहते है कि हम आज़ाद है, हमें तो आज़ाद हुए 70 साल हो चुके है, मैं पूछता हूँ कि कैसे आज़ाद हो गए भाई? आज भारत में कहा जाता है कि "अगर आगे बढ़ना है तो अंग्रेजी सीखो.." यही वाक्य दिल में गहरी चोट कर जाता है। नौकरी चाहिए तो अंग्रेजी, सरकारी या निजी दफ्तरों में अंग्रेजी, सदनों में अंग्रेजी, न्यायिक मामलों में अंग्रेजी। और उससे भी बड़ी बात यह है कि ये सब भारत में हो रहा है। और इसे जो लोग आज़ादी समझते है, उन्हें ऐसी आज़ादी की बधाई।
वो लोग नहीं रहे जो हिन्दी के लिए मर मिटने को तैयार थे।और वास्तव में उन्होंने हिन्दी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी,फिर भी देश की जनता नहीं समझ पा रही है। आज भी कुछ लोग है जो आज भी हिन्दी के लिए जी रहे है। कल मुझे हिन्दी के महान लेखक, पद्मश्री अलंकृत डॉ. नरेन्द्र कोहली जी को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके एक-एक वचन मेरे रोंगटे खड़े कर रहे थे। उन्होंने कहा कि "आज जिस प्रकार से हिन्दी के खिलवाड़ हो रहा है, वह भयावह है। दूसरी भाषाओं के शब्दों को जिस प्रकार हिन्दी में जोड़ा जा रहा है वह हिन्दी तथा भारत दोनों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हमारी हिन्दी इतनी समृध्द हो कि दूसरी भाषाएँ इसमें हस्तक्षेप न कर सके। हिन्दी के प्रत्येक शब्द के अपने अलग अर्थ है, जिनकी उपयोगिता दूसरे शब्दों से पूरी नहीं होती।
भाषा सरल या कठिन नहीं होती है, भाषा तो परिचित या अपरिचित होती है। जिन शब्दों को हम जानते है वे परिचित है तथा जिन्हें हम नहीं जानते वे अपरिचित शब्द होते है।"
साहब अंग्रेज तो चले गए इस देश से, लेकिन एक ऐसा हथियार छोड़ गए जिससे उन्होंने हमें आजीवन गुलाम बना दिया।यह हथियार कुछ और नहीं अंग्रेजी है।
यह ठीक है कि हमें कम से कम २ या इससे अधिक भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए, यह मैं भी मानता हूँ। लेकिन प्राथमिकता तो हमारे देश की ही भाषा को दी जानी चाहिए ना?
बचपन से हम हिन्दी पढ़ते , सुनते, बोलते आ रहे है। लेकिन क्या हम हिन्दी को सही रूप में बोल या लिख पा रहे है क्या? नहीं।
क्योंकि हमें जो बचपन से सिखाया गया, वही बोलते आ रहे है।
आज के समय हम हिन्दी बोलते समय या लिखते समय कई भाषाओं के शब्द उसमें मिश्रित कर देते है।
कई अखबार भी हिन्दी में और भी भाषाओं का मिश्रण कर देते है।
हम हिन्दी बोलें....
विशुद्ध हिन्दी बोलें....
गर्व से हिन्दी बोलें......
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा बनें......
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी को हिन्दी दिवस की बधाई...
राहुल
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